
वास्तु के हिसाब से बनाए गए थे जुड़वां पांच तालाब, बिराजीं थीं चामुंडा लेकिन आज ये है हाल
शहडोल. पौनांग तालाब कभी हिंदू और जैन धर्मावलम्बियों के आस्था का केन्द्र रहा है। जिसका गवाह चंड-मुंड दैत्यों का संहार करने वाली नवदुर्गा स्वरूपा चामुण्डा माता आज भी विराजमान हैं। वहीं तालाब से निकली तीर्थांकर पाश्र्वनाथ भगवान की प्रतिमा पुरातत्व विभाग में संरक्षित है। तीर्थांकर पाश्र्वनाथ भगवान की प्रतिमा 2012 में पौनांग तालाब में मिली थी।
पौनांग तालाब की मेड़ पर बना चामुण्डा माता का मंदिर कल्चुरी कालीन दसवीं शताब्दी का माना जाता है। यहां शैव और जैन दोनों धर्मों की प्रतिमाएं मिल चुकी हैं। शैव देवों में शाक्त प्रतिमाएं और जैनों में तीर्थांकर पाश्र्वनाथ भगवान की। पुरातत्वविद् पौनांग तालब के नाम पर अपभ्रंश मानते हैं। उनका मानना है कि भगवान शिव और तीर्थांकर पाश्र्वनाथ दोनों के प्रतीक नाग होता है। पुरातत्वविद् यह भी मानते हैं कि पहले शिव भक्तों में लकुलीज सम्प्रदाय दिगम्बर थे। वे वस्त्र धारण नहीं करते थे। इसी तरह जैन धर्म में दिगम्बर साधना और तपस्या से इंद्रियों को वश में कर लेने के बाद वस्त्र त्याग देते हैं। पौनांग तालाब के बगल में शिव मंदिर भी है। जो आज भी हिंदुओं के आस्था का केन्द्र बना हुआ है।
सौन्दर्यीकरण से लुप्त न हो पुरातन स्वरूप
तालाब के मेड़ पर खड़े खजूर और ताड़ के वृक्ष तालाब के हजारों वर्ष पुराने होने के गवाह बने हुए है। खजूर और ताड़ के वृक्षों का समूह वहीं मिलेंगे जहां के मंदिरों और तालाबों में हजारों वर्ष का इतिहास छिपा होगा। पौनांग तालाब के अगल- बगल पांच ऐतिहासिक तालाब हैं। जिनकी आपस में अंडरग्राउंड जलस्रोत से जुड़े हैं। पुरातत्वविदों का मानना है कि तालाबों का संरक्षण कार्य कराने से पहले जलविदों और पुरातत्व विशेषज्ञों से राय ली जाए। पौनांग और उसके इर्द-गिर्द के तालाब वास्तु शास्त्र के हिसाब से बनाए गए थे। इसलिए वास्तु शास्त्र के जानकारों का भी सहयोग लिया जाए।
इनका कहना है
पौनांग तालाब हजारों वर्ष पुराना है। यहां नवदुर्गा रूप चामुण्डा माता विराजमान हैं। यहां से 2012 में तीर्थांकर पाश्र्वनाथ भगवान की प्रतिमा मिली थी। जो आज भी पुरातत्व विभाग में संरक्षित है। यहां अगल-बगल के पांचों तालाबों के जलस्रोतों की आपस में कनेक्टीविटी है।
रामनाथ परमार
पुरातत्व विशेषज्ञ शहडोल
Published on:
25 Jul 2018 07:39 pm
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