
tigress T-74
रणथंभौर की क्वीन 'मछली' के दुनिया से अलविदा होने के बाद वन विभाग के अधिकारियों व रणथंभौर अभयारण्य के पर्यटन से जुड़े लोगों में शुक्रवार दूसरे दिन भी मायूसी छाई रही। सबका मानना है कि भले ही रणथंभौर बाघों से आबाद है, लेकिन मछली की कमी सबको खलेगी। पर्यटकों व वन्यजीव प्रेमियों के लिए चर्चा का विषय बना हुआ है कि आमाघाटी से बाघों की 'अम्मा' की मौत के बाद टेरेटरी की सल्तनत किसके पास होगी।
अधिकतर का मानना है कि 'मछली' उसकी नवासी टी-73 उसकी उत्तराधिकारी होगी। टी-73 को 'मछली' की बेटी टी-17 ने जन्म दिया था। इसकी उम्र करीब साढ़े चार साल है। लेडी ऑफ लेक के नाम से मशहूर 'मछली' के अलविदा होने के बाद आमाघाटी वन क्षेत्र सूना हो गया है। ज्यादा उम्र के कारण 'मछली' टेरीटरी में अधिक सक्रिय नहीं थी, लेकिन अन्य बाघिनें उसके खौफ खाती थीं। इस क्षेत्र में नर बाघ टी-28 का विचरण भी था। 'मछली' के समय कभी-कभी उसकी नवासी टी-73 का आना-जाना रहता था। टी-73 की 'मौसी' बाघिन टी-19 की बड़ी बेटी कभी कभार आमाघाटी वन क्षेत्र में आती थी। ऐसे में उम्मीद लगाई जा रही है। इस क्षेत्र में बाघिन टी-73 ही क्षेत्र की सम्राज्ञी होगी।
18 साल तक रहा मछली का जादू
रणथम्भौर बाघ परियोजना के नेचर गाइड पंकज जोशी ने बताया कि मछली ने रणथम्भौर पार्क में 18 साल तक पर्यटकों को लुभाया। किसी भी जोन में बाघों की साइटिंग नहीं होने पर मछली ही पक्का विकल्प होता था। आत्माविश्वास से भरी मछली पर्यटक वाहनों के निकट आ जाती थी। एेसे में पर्यटक घंटों तक उसकी अठखेलियों का लुत्फ उठाते थे।
उम्रदराज झुमरू रणथंभौर का राजा
रणथम्भौर में मछली का बेटा झुमरू उम्र के लिहाज से सबसे बड़ा बाघ है। उसकी उम्र्र 14 साल है। वह बाघों का मुखिया होगा। उसका विचरण क्षेत्र खण्डार रेंज के ओदी खोह से लाहपुर व थूमका तक है। 'मछली' की टेरेटरी में बेटे की आवाजाही नहीं होने से नानी के इलाके में नवासी की ही दहाड़ गूंजेगी।
आमाघाटी से खांडोज खोह तक वन क्षेत्र में टी-73 का विचरण क्षेत्र है। ऐसे में नानी के साम्राज्य को नवासी के संभालने की उम्मीद है। जून में धाकड़ा क्षेत्र में टी-73 के शावक दिखाई दिए थे। रणथम्भौर का राजा झूमरू होगा।
संजीव शर्मा, एसीएफ, रणथम्भौर बाघ परियोजना, सवाईमाधोपुर
Published on:
20 Aug 2016 08:01 am
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