
#Dussehra spacial#यहां सोने से कम नहीं है रावण के पुतले की मिट्टी
श्योपुर,
आदिवासी विकासखंड कराहल के गांव पहेला केे ग्रामीणों के लिए लंका की मिट्टी सोने से कम नहीं है यही कारण है कि वहां के लोग दशहरे को जलने वाली लंका की मिट्टी को सोने से भी ज्यादा अच्छे ढंग से संभालकर रखते हैं। सालों से चली आ रही इस परंपरा का निर्वहन ग्रामीण विजयादशमी के अवसर पर हर साल करते हैं।
आदिवासी विकासखंड मुख्यालय कराहल से तीस किलोमीटर दूर स्थित ग्राम पहेला में दशहरे के दिन रावण वध के लिए भी एक अलग तरह की प्रथा है। इसके तहत रावण का वध जलाकर नहीं किया जाता है बल्कि उसे मारा जाता है। मिट्टी के बने इस पुतले को पहले तो लोग मारते हैं और फिर इस मिट्टी को ग्रामीण सोना मानकर लूटते हैं, जिसे वह पूरे साल संभालकर रखते हैं। लंका लूटने की इस परंपरा को लेकर ग्रामीणों में विशेष उत्साह रहता है और वह रावण के मरने के बाद ही मिट्टी को लूटना शुरु कर देते हैं। इस लंका की मिट्टी से थोड़ी सी मिट्टी पाने के लिए ग्रामीण जी-जान लगा देते हैं। प्राचीन परंपरा के तहत रावण को मारने से पहले ग्रामीण रामजानकी के मंदिर पर एकत्रित होते है, जहां गीली मिट्टी से भरा हुआ मटका गांव वाले शंख, झालर और ढोल ढमाकों के साथ एक चबूतरे पर पहुंचते है। इस चबूतरे पर मिट्टी से भरे मटके को रखकर ग्रामीण उस पर पत्थर से निशाना साधते है और मटका फूटने के बाद वे उस मिट्टी को लूटने के लिए टूट पड़ते है।
पीढिय़ों से चल रही परंपरा
पहेला में कई पीढिय़ों से मिट्टी के रावण के पुतले केा मारने की परंपरा है। इस मिट्टी को ग्रामीण लूट कर ले जाते हंै, जिसे सोना समझकर अनाज के भंडार में रखते हैं।
बाबू सिंह गुर्जर
स्थानीय निवासी, ग्राम पहेला
Published on:
08 Oct 2019 12:23 pm
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