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#valentine day#पत्नी ने कहा-इस नदी में मेरा लहंगा भीग जाएगा, तो पति ने बनवा दिया पुल

प्रेम का अनूठा प्रतीक है श्योपुर का बंजारा डेम, पांच सौ साल पूर्व लक्खी बंजारे ने अपने पत्नी के प्रेम के वशीभूत होकर बनवाया था

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#valentine day#पत्नी ने कहा-इस नदी में मेरा लहंगा भीग जाएगा, तो पति ने बनवा दिया पुल

#valentine day#पत्नी ने कहा-इस नदी में मेरा लहंगा भीग जाएगा, तो पति ने बनवा दिया पुल

श्योपुर,
आज श्योपुर की पहचान बन चुका बंजारा डैम को भले ही रियासतदांओं ने संवारा हो, लेकिन इसे पति पत्नी के अटूट प्रेम की निशानी कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। ऐसा इसलिए कि एक लक्खी नाम के बंजारे से इसका निर्माण महज इसलिए करवाया था, क्योंकि उसकी पत्नी ने कह दिया था मैं नदी पार नहीं करूंगी, क्योंकि मेरा लहंगा भीग जाएगा। पत्नी के प्रेम के वशीभूत होकर लक्खी बंजारे ने ये पुल बनवाया।

बताया गया है कि पहले बंजारे ही घूमघूम कर व्यापार किया करते थे और विभिन्न प्रकार की वस्तुएं (खड़ी, गेरू सहित अन्य कई सामान) बेचा करते थे। इसी के तहत लक्खी बंजारा भी अपनी पत्नी के साथ श्योपुर से गुजरा तो सीप नदी का पानी देखकर बंजारन अड़ गई कि पानी में मेरा लहंगा भीग जाएगा और इसलिए तुम नदी पर पुल बनवाओ तभी मैं उस पार जाऊंगी। चूंकि लक्खी अपनी पत्नी से अटूट प्रेम करता था, लिहाजा उसकी शर्त मानकर उसने यहां पुल का निर्माण कराया और श्योपुर को प्रेम की अद्वितीय निशानी दे गया, जो भावनाओं के लिहाज से ताजमहल से कम नहीं हैं। शायद यही वजह है कि श्योपुरवासियों ने भी लक्खी की निशानी को जिंदा रखा है और बाद में डैम बनने के बाद भी श्योपुर ने इसे बंजारा डैम ही पुकारा।

राजाओं ने पुल पर बनवाया डैम
कुछ साल पूर्व बंजारा डैम के गहरीकरण में निकले शिलालेखों मुताबिक विक्रम संवत् 1785 में डेम के निर्माण का जिक्र है। वहीं सिंधिया शासकों के समय का भी एक शिलालेख लगा है जिसमें विक्रम संवत 1889 (सन् 1832) में राजा जनकूजीराव शिंदे के शासनकाल में श्योपुर के शासक जयसिंह भाऊ पाटिल व राजे वासुदेव अनंत द्वारा डैम के निर्माण का जिक्र है। कहा जाता है कि रियासतों के समय लक्खी बंजारा द्वारा बनवाए गए पुल पर डेम बनवाया गया और उसका जीर्णोद्धार किया गया।

लक्खी बंजारे ने उसकी पत्नी की जिद पूरी करने के लिये बनवाया था। जनता ने तो बंजारे के उस निश्छल प्रेम को ही याद रखा, जैसे ताज मुमताज की याद दिलाता है तो बंजारे डेम उस बंजारिन की याद दिलाता रहेगा।
कैलाश पाराशर
पुरातत्ववेत्ता श्योपुर


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