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हर्ष पर 1048 साल पहले सावन में स्थापित हुई थी भगवान शिव की दुर्लभ मूर्ति

हर्ष का भगवान शिव व उनके सावन महीने दोनों से गहरा संबंध है। यहां भगवान शिव की न केवल दुर्लभतम पंचमुखी मूर्ति है, बल्कि अजमेर के म्यूजियम में संरक्षित लिंगोद्भव की एकमात्र मूर्ति भी यहीं मिली थी।

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सीकर

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Sachin Mathur

Aug 08, 2021

हर्ष पर 1048 साल पहले सावन में स्थापित हुई थी भगवान शिव की दुर्लभ मूर्ति

हर्ष पर 1048 साल पहले सावन में स्थापित हुई थी भगवान शिव की दुर्लभ मूर्ति

सीकर. हर्ष का भगवान शिव व उनके सावन महीने दोनों से गहरा संबंध है। यहां भगवान शिव की न केवल दुर्लभतम पंचमुखी मूर्ति है, बल्कि अजमेर के म्यूजियम में संरक्षित लिंगोद्भव की एकमात्र मूर्ति भी यहीं मिली थी। यही नहीं शिव मंदिर का लोकार्पण भी चौहान राजा सिंहराज ने संवत 1030 में आषाढ पूर्णिमा को सावन की शुरुआत के साथ किया था। वहीं, मान्यता के अनुसार सावन में जल बरसाने वाले इंद्र देव भी वृत्तासुर संग्राम में बाकी देवताओं के साथ इसी पहाड़ पर आकर छुपे थे। जिसे मारने पर देवताओं की हर्ष से की गई भगवान शिव की स्तुति के कारण ही इस पर्वत शिखर का नाम हर्ष व यहां विराजने वाले शिव हर्षनाथ कहलाए।

विश्व की एकमात्र लिंगोद्भव व पंचमुखी मूर्ति

हर्ष मंदिर में लिंगोद्भव की मूर्ति भी प्रतिष्ठित की गई थी। जो विश्व की एकमात्र मूर्ति थी। जो अब अजमेर के संग्रहालय में स्थित है। वहीं, हर्ष पर भगवान शिव की पंचमुखी मूर्ति अब भी विराजित है। जो भी दुर्लभतम मानी जाती है। संभवतया यह प्रदेश की एकमात्र व सबसे प्राचीन शिव प्रतिमा है। पुराणों में जिक्र है कि भगवान विष्णु के मनोहारी किशोर रूप को देखने के लिए भगवान शिव का यह रूप सामने आया था।

सावन से गहरा संबंध, 1048 साल पहले हुआ रुद्राभिषेक

हर्षनाथ मंदिर का सावन से गहरा संबंध है। इतिहासकारों के अनुसार 1048 साल पहले आषाढ पूर्णिमा पर सावन महीने में ही मंदिर का लोकार्पण हुआ था। जिसके बाद एक महीने तक मंदिर में रुद्राभिषेक करवाया गया। अब भी इस महीने में हरियाली से आच्छादित हर्ष सौंदर्य व आस्था दोनों दृष्टि से आकर्षित करता है। जिसकी वजह से इस महीने यहां पर्यटकों व श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ता है। हालांकि अभी टूटी सड़क की वजह से वाहनों की आवाजाही पर रोक की वजह से शिखर तक पहुंचने वाले लोगों की संख्या कम हो गई है।

रानोली के ब्राह्मण के आग्रह पर 1030 में रखी नींव
प्रागैतिहासिक काल का शिव मंदिर संवत एक हजार में अजमेर सांभर के चौहान वंश के शासक सिंहराज के क्षेत्राधिकार में था। जय हर्षनाथ- जय जीण भवानी पुस्तक के लेखक महावीर पुरोहित लिखते हैं कि इस काल में रानोली का नाम रणपल्लिका था। यहां के एक ब्राह्मण सुहास्तु रोजाना पैदल चलकर इस पर्वत पर शिव आराधना किया करते थे। इन्हीं सुहास्तु के कहने पर राजा सिंहराज से हर्ष पर हर्षनाथ मंदिर निर्माण व वहां तक पहुंचने के लिए सुगम रास्ते की मांग की। इस पर महाराज सिंहराज ने विक्रम संवत 1018 में हर्षनाथ मंदिर की नींव रखी। जिसके संवत 1030 में लोकार्पण के साथ उन्होंने पहाड़ की गोद में हर्षा नगरी बसाई। इतिहासकार डा. सत्यप्रकाश ने इसे अनन्ता नगरी भी कहा। यहां सदा बहने वाली चंद्रभागा नदी भी थी। मंदिर का निर्माण सुहास्तु के सलाहकार सांदीपिता के मार्गदर्शन में वास्तुकार वाराभद्र ने वैज्ञानिक ढंग से किया था।

इसलिए पंचाचन कहलाए शिव
भगवान शिव के पांच मुंह पंचतत्व यानी जल, वायु, अग्नि, आकाश, पृथ्वी की उत्पत्ति व जगत कल्याण की कामना से विभिन्न कल्पों में हुए उनके सद्योजात, वामदेव, तत्पुरुष, अघोर और ईशान अवतार के प्रतीक माने जाते हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु का मनोहारी किशोर रूप देखने के लिए भी भगवान शिव इस रूप में प्रकट हुए थे। पांच मुखों के कारण शिव 'पंचाननÓ और 'पंचवक्त्रÓ कहलाते हैं।