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Sikar News: कोचिंग की दिशा में दौड़ते कदम, छोटी कक्षा के बच्चे भी स्कूल की चौखट से हो रहे दूर

आठवीं से दसवीं तक के छात्र अब स्कूल की बजाय कोचिंग की फाउण्डेशन कक्षाओं में भविष्य तलाश रहे हैं। स्कूलों में नामांकन तो है, लेकिन उपस्थिति नहीं है।

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स्कूलों में छोटी कक्षाओं में भी डमी का खेल, पत्रिका फोटो

Dummy students in lower classes: राजस्थान में सीकर और कोटा जिले में सिर्फ बोर्ड कक्षाएं ही नहीं, छोटी कक्षाएं भी डमी खेल का हिस्सा बनती जा रही हैं। आठवीं से दसवीं तक के छात्र अब स्कूल की बजाय कोचिंग की फाउण्डेशन कक्षाओं में भविष्य तलाश रहे हैं। स्कूलों में नामांकन तो है, लेकिन उपस्थिति नहीं है। सीबीएसई ने जहां बोर्ड कक्षाओं में 75 प्रतिशत उपस्थिति अनिवार्य कर दी है, वहीं कक्षा 6 से 9 तक के छात्रों में फाउण्डेशन कोर्स का क्रेज इस कदर बढ़ा है कि स्कूलों से उनका जुड़ाव खत्म हो गया है। कई स्कूलों में नियमित छात्रों से ज्यादा डमी छात्र हैं, जिनका स्कूल से रिश्ता सिर्फ नामांकन तक सीमित है।
राज्य सरकार के नए कोचिंग कानून और अब सीबीएसई की सख्ती ने अभिभावकों की चिन्ता बढ़ा दी है। सीकर में तो यह हाल है कि कई स्कूलों में तो नियमित विद्यार्थियों के मुकाबले डमी विद्यार्थियों की संख्या तीन से चार गुना तक हो चुकी है।

सीबीएसई का निरीक्षण: मान्यता रद्द करने की चेतावनी

सीबीएसई ने नए आदेश में साफ कहा कि है कि निरीक्षण व्यवस्था को और प्रभावी बनाया जाएगा। वहीं रिकॉर्ड में गड़बड़ी मिलने पर स्कूल की सम्बद्धता रद्द करने की चेतावनी भी दी है। ऐसे में डमी अभ्यर्थियों के साथ स्कूल संचालकों की चिन्ता यह है कि यदि निरीक्षण होता है तो क्या सफाई देंगे।

अभिभावक आते नहीं, कैसे रखेंगे संवाद का रिकॉर्ड

शिक्षा नगरी सीकर के कई स्कूलों में डमी का खेल इतना है कि वहां 60 से 90 फीसदी तक अध्ययनरत विद्यार्थी डमी हैं। उनके परिजनों की ओर से कभी भी स्कूल की शिक्षक - अ भिभावक बैठक सहित अन्य कार्यक्रमों में सहभागिता नहीं निभाई जाती। ऐसे में विद्या र्थियों की चिन्ता है कि वह कैसे अपना रिकॉर्ड समय पर अपडेट कराएंगे। पत्रिका ने इस मामले की पड़ताल की तो सामने आया कि सीकर की ज्यादातर कोचिंग में डमी स्कूलों की सूची विद्यार्थियों व अभिभावकों को आसानी से मिल जाती है। कई स्कूलों में प्रायोगिक परीक्षाओं में भी बेहतर अंक दिलाने का वादा किया जाता है। कई स्कूलों में 15 से 25 हजार रुपए में डमी के तौर पर दाखिला दिया जाता है।

स्कूलों में डमी बनाने से बचना चाहिए

स्कूल और कोचिंग के अपने अलग-अलग मायने हैं। बच्चों का स्कूल से जुड़ाव होना बेहद जरूरी है। स्कूली माहौल में विद्यार्थियों में कई तरह गुणों का विकास होता है। इसलिए विद्यार्थियों को स्कूलों में डमी बनाने से बचना चाहिए।
मुकेश सोनी, कॅरियर काउंसलर, सीकर