
335 साल का हुआ सीकर: जयपुर शहर से पहले बसा, शिक्षानगरी की अब पूरी दुनिया में धाक
सीकर. शिल्प और भित्ति चित्रों की हवेलियों के शहर सीकर ने आज 335 साल का सफर पूरा कर लिया है। शानदार विरासत के साथ अतीत की सुनहरी यादों के बीच त्याग..संघर्ष और जुनून भी हमारी पहचान है। शिक्षा के दम पर आगे की कदमताल करने वाले सीकर की धाक देश-दुनिया में शिक्षानगरी के तौर पर है। मेडिकल कॉलेज से लेकर बॉडग्रेज का मुकाम हासिल करने के बाद भी सीकर शहर और तेजी से विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है। स्थापना के दौर में महज परकोटे तक सीमित रहने वाला सीकर शहर का आबादी विस्तार आठ किलोमीटर से ज्यादा में हो गया है। इतिहासकार महावीर पुरोहित का कहना है कि जयपुर शहर से लगभग 40 साल पहले सीकर की स्थापना हुई थी। सीकर शहर के कोचिंग हब बने पिपराली रोड और नवलगढ़ रोड क्षेत्र में देशभर के विद्यार्थी अध्यनरत है।
इसलिए मिला सीकर नाम
संवत 1744 विक्रम सन 1687 ई. में पर्वतराज माल केतु एवं रघुनाथगढ़ की गोद अद्र्ध रेगिस्तान के दरवाजे पर एक नवीन नगर का अभ्युदय हुआ। जिसे सीकर, शिखर, शिवकर नाम मिला। इतिहासकारों मानना है कि शिखर नाम का अपभ्रृश होते हुए सीकर नाम हुआ। यहां के संस्थापक दूजोद के कुंवर जसवंत सिंह के पुत्र राव दौलत सिंह थे। जिन्होंने संवत 1744 से 1778 तक 34 वर्ष सीकर का शासन संभाला। उनके 10 वंशजों ने 267 वर्षों तक सीकर रियासत पर शासन किया।
विरासत: बैर भूलने पर कहलाया बीरबान का बास
सीकर शहर की स्थाना की कहानी एक भेड़ के हौंसले की इबारत पर लिखी गई। इसकी शुरुआत खंडेला और कांसली रियासत की दुश्मनी से शुरू हुई। संवत 1735 में खंडेला राजा बहादुर सिंह ने कांसली शासक जसवंत सिंह की बहादुरी के चर्चे सुन उन्हें शिश्यूं में बुलाकर धोखे से मरवा दिया और उनके बेटे दौलतसिंह व फतेहसिंह के सामने आत्म समर्पण करते हुए सिहोट के राजा भोपतसिंह पर हत्या का दोष मढ़ दिया। समर्पण पर बहादुरसिंह को छोड़ दिया गया। जिससे खुश बहादुर सिंह ने वीरभान का बास (मौजूदा सीकर शहर) दोनों राजकुमार को उपहार में दिया। दोनों रियासतों के बीच वेर खत्म होने पर यह स्थान बैर भान का बास कहलाया। दौलत सिंह जब एक दिन घूमते हुए मौजूदा सुभाष चौक पहुंचे तो यहां एक भेड़ को अपने बच्चों की सुरक्षा में भेडिय़े को हराते देखा। जिसे वीर धरा माते हुए उन्होंने वहीं भाला गाड़कर संवत 1744 में सीकर शहर की नींव रखी। 1954 तक 11 राजाओं के शासन के बाद अंतिम राजा रावराजा कल्याण सिंह ने 15 जून 1954 को शासन की बागडोर राज्य सरकार को सौंप दी।
(जैसा कि इतिहासकार महावीर पुरोहित ने पत्रिका को बताया)
वर्तमान: जयपुर की सेटेलाइट सिटी के तौर पर विकास की रफ्तार
जयपुर से नजदीक होने के कारण सीकर शहर का भविष्य सेटेलाइट सिटी के तौर पर जुड़ा है। समय के साथ शहर की विकास की तस्वीर भी बदल रही है। कभी उड़ती धूल वाली सडक़ों का स्थान अब हाईवे ने ले लिया है। पहले यहां के ज्यादातर युवा खाड़ी देशों में रोजगार की राहें तलाशते थे। लेकिन अब स्वरोजगार के जरिए यहां रोजगार की भी राहें खुल रही है।
भविष्य: शिक्षा में और बढ़ेगी धाक
सुनहरी विरासत को सहेजे शिक्षनगरी का भविष्य भी सुनहरा है। बेहतर स्कूल एज्युेशन के साथ कोचिंग सेक्टर में भी हमारी धाक बढ़ती जा रही है। बोर्ड परीक्षाओं से लेकर इंजीनियरिंग व मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं का सक्सेस रेट काफी अच्छा है। इसके अलावा प्रतियोगी परीक्षाओं की कोचिंग ने पिछले आठ सालों में बेहतर परिणाम के दम पर अलग पहचान बनाई है। इससे भविष्य में शिक्षानगरी की धाक और मजबूत होगी। इससे सीकर के विकास के अरमानों को पंख लगेंगे।
फैक्ट फाइल:
सीकर की स्थापना के समय आबादी: 500
वर्तमान में आबादी: 5 लाख
सीकर में कितने राजाओं का शासन: 11
कितने साल शासन रहा: 267
कोचिंग: 38
सीकर शहर में वार्ड: 65
मेडिकल कॉलेज: 1
विश्वविद्यालय: 01
भविष्य में निजी मेडिकल व विवि: 02 संभावित
दूसरे जिलों के अध्ययनरत विद्यार्थी: 80 हजार
छात्रावास: 287 से अधिक
सबसे ज्यादा खिलाड़ी दिए: 100 से ज्यादा बास्केटबॉल के राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय स्तर
गर्व करने के लिए बहुत कुछ...
1. सीकर स्टेट के पास था अपना हवाई जहाज
सीकर रियासत के पास अपना एक अलग हवाई जहाज था, जो पोलोग्राउंड से उड़ान भरता था। मोट प्लेन नाम के इस छोटे हवाई जहाज में चार यात्री सफर कर सकते थे। यहां हवाई जहाज की एक फैक्ट्री भी थी, जहां खराब व क्रेश विमान पहुंचते थे।
2. बंधेज से भी कमाया नाम:
सीकर जिले की कारीगरी भी खास रही है। देशभर में नाम कमा चुके सीकर के बंधेज के पीले ओढऩे व चुनड़ी के अलावा रियासत काल में बनने वाली यहां की बंदूक व ताले भी देशभर में अलग पहचान रखते थे। सीकर में उस समय कई फैक्ट्रियां थी।
Published on:
10 Apr 2022 04:06 pm
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