न्यायालय में रहा कमजोर पक्ष
ग्रामीणों ने भी चारागाह जमीन पर कॉलोनी बसाने को लेकर काफी विरोध किया। कॉलोनी को न्यायालय में भी चुनौती दी गई। इस दौरान न्यायालय में भी सीकर यूआइटी का पक्ष काफी कमजोर रहा। वहीं तत्कालीन यूआइटी अध्यक्ष ने राज्य सरकार से कानून बनवाकर छूट दिलवाने का आश्वासन दिया।
एक महीने बाद ही मांगे थे आवेदन
पिछली कांग्रेस सरकार के समय सीकर में यूआइटी बनी थी। यूआइटी अपना आशियाना भी नहीं तलाश सकी इससे पहले ही यहां के जनप्रतिनिधियों ने कॉलोनी की विज्ञप्ति जारी करा दी। योजना के तहत फतेहपुर रोड पर भैरूपुरा के पास गोविन्द नगर आवासीय योजना बननी थी। इसमें 400 से अधिक भूखण्ड आवंटित होने थे।
खुद ने 12 करोड़ कमाए, दो फीसदी को भी नहीं दिया ब्याज
यूआइटी गोविन्द नगर आवासीय योजना के आवेदनों की राशि से अब तक 12 करोड़ से अधिक का ब्याज कमा चुकी है। लेकिन 12 हजार में महज दो फीसदी को भी ब्याज सहित राशि नहीं लौटाई गई है। दूसरी तरफ लोगों का कहना है कि यदि उस समय निजी कॉलोनी में भूखण्ड लेते तो अब तक आशियाने का सपना कब का पूरा हो गया होता।
लापरवाही: जमीन की किस्म देखे बिना ही आवेदन लिए
यूआइटी के तत्कालीन सचिव व अध्यक्ष ने गोविन्द नगर आवासीय योजना के आवेदनों में काफी जल्दबाजी दिखाई। इसका खामियाजा सीकर शहर अब तक भुगत रहा है। राजस्व मामलों से जुड़े एक्सपर्ट के अनुसार जमीन की किस्म चारागाह होने की वजह से यहां उस समय कॉलोनी नहीं बस सकती थी। भूमि की किस्म परिवर्तन के पेंच को सुलझाने के बजाय सभी ने यूआइटी को मालामाल बनाने की दिशा में काम किया।