
वो भी एक दौर था जब कॉलेज छात्रसंघ चुनाव में राजनीति व विवाद के लिए नहीं थी कोई जगह
सीकर. छात्रसंघ चुनाव में सभी कॉलेज राजनीति का अखाड़ा बने हुए हैं। पढ़ाई की जगह वोट की लड़ाई ने ले ली है, लेकिन आज का विद्यार्थी शायद ही यह जानता है कि एक दौर में छात्रसंघ चुनाव राजनीति और विवाद से बिल्कुल दूर थे। बल्कि, शिक्षा का माहौल बनाने और बढ़ाने वाले थे। इसकी वजह थी छात्रसंघ चुनाव की प्रक्रिया और इसके साथ चुनी जाने वाली परिषद। वो परिषदें जो विषय से संबंधित कार्यक्रमों का आयोजन कर विषय की जानकारी बढ़ाती थी। उस दौर के छात्रसंघ चुनावों में बनने वाली समितियों की जानकारी हम इतिहास के पन्नों से लेकर आए हैं। जो फिर से शुरू हो जाए तो कॉलेजों में लड़ाई की जगह पढ़ाई और फसाद की जगह हाथों में किताबें बढ़ सकती है।
एसके कॉलेज की 1964 की एक विवरणिका के मुताबिक परिषदें सालभर विषय से संबंधित कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं आयोजित करती थीं। मसलन राजनीति विज्ञान परिषद की ओर से संसद का आयोजन होता था। जिसमें विद्यार्थी सरकार और विपक्ष के रूप में बैठकर स्थानीय से लेकर अन्तरराष्ट्रीय मुद्दों पर बहस करते। हिंदी परिषद कवि सम्मेलन से लेकर नाटक, भाषण और वाद विवाद प्रतियोगिताओं के साथ कवियों की जयंती और पुण्यतिथि आयोजित करती। विज्ञान परिषद सिद्धांतों और अनुसंधान से संबंधित कार्यक्रम आयोजित कराती ।
1950 के दशक में शुरू हुईं परिषदें
विषयवार परिषदों का गठन आजादी के बाद 1950 के आसपास ही कॉलेजों में शुरू हो गया था। इस दौर में कॉलेज में विज्ञान परिषद, वाणिज्य परिषद, राजनीति विज्ञान परिषद, हिंदी परिषद, अंग्रेजी परिषद और उर्दू परिषद प्रमुख परिषदें थी। जिनके लिए बकायदा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, उपसचिव और कोषाध्यक्ष का चुनाव होता था। चुनाव के बाद होता था। इन परिषदों का संचालन लगभग 1992 तक चला।
योग्यता के आधार पर चयन
कॉलेज के शुरुआती सालों में छात्रसंघ चुनाव में छात्र संगठनों की भूमिका नहीं थी। छात्र संघ और परिषदों के पदाधिकारी योग्यता के आधार पर चुने जाते थे। चुनाव में मतदान पर्चियों से होता था।
उपब्धियों का होता था प्रकाशन
कॉलेज परिषदों की सालभर की गतिविधियां समाचार पत्रों के साथ कॉलेज की वार्षिक पुस्तक में प्रकाशित होती। जिसमें परिषदों के पूरे विवरण के साथ उनकी उपलब्धियां प्रकाशित होती थी।
पांच भाषाओं में लेख
1960 में कॉलेज के शैक्षिक माहौल का अंदाजा भी एसके कॉलेज की विवरणिका से लगाया जा सकता है। जो ज्ञान का भंडार थी। विवरणिका में सालभर की गतिविधियों के अलावा देश, प्रदेश और विदेश से जुड़े उच्च स्तरीय लेख होते थे। हिंदी के अलावा अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू और मारवाड़ी भाषा में भी होते थे।
Published on:
21 Aug 2019 05:43 pm
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