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राजस्थान के आबू की सौंफ है खास, विदेश तक पहुंच रही महक

माउंट आबू की विशेष जलवायु ना सिर्फ पर्यटकों को आकर्षित करती है, बल्कि यहां की कृषि उपज को भी प्रभावित करती है। ’वन डिस्ट्रीक्ट-वन प्रोडक्ट’ प्रोग्राम के तहत सिरोही जिले की पहचान बन चुकी सौंफ की खास महक भी आबू के क्लाइमेट की देन है।

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पंकज वैष्णव/भरत कुमार प्रजापत

माउंट आबू की विशेष जलवायु ना सिर्फ पर्यटकों को आकर्षित करती है, बल्कि यहां की कृषि उपज को भी प्रभावित करती है। ’वन डिस्ट्रीक्ट-वन प्रोडक्ट’ प्रोग्राम के तहत सिरोही जिले की पहचान बन चुकी सौंफ की खास महक भी आबू के क्लाइमेट की देन है। तलहटी क्षेत्र में पैदा हुई खास महकदार सौंफ से गुजरात की मंडियां महक रही है।

राजस्थान में जोधपुर और सवाईमाधोपुर के अलावा सिरोही जिले में सौंफ का उत्पादन अधिक होता है। प्रदेश में सौंफ की कुल पैदावार का 10 फीसदी उत्पादन सिरोही जिले का है, जिसकी देश-दुनिया में खास मांग भी है। नतीजा ये कि फसल बुवाई के दौरान ही स्थानीय आड़तिये और गुजरात के व्यापारी सौदा कर लेते हैं। सिरोही जिले में इस साल 6 हजार 254 हेक्टेयर में सौंफ का उत्पादन हुआ है, जो यहां आबू रोड, सिरोही, रेवदर, शिवगंज क्षेत्र में बहुतायत में उगाई गई।

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यहां की सौंफ इसलिए खास
सौंफ लम्बी अवधि की फसल है। सिरोही जिले के आदिवासी किसान परंपरागत रूप से सौंफ की खेती करते हैं। धैर्य के साथ फसल को संवारते हैं।
सिरोही जिले के उत्पादित क्षेत्र आबू पर्वत के तलहटी क्षेत्र हैं, जिससे नमी और ठंडक बनी रहने से सौंफ की फसल को विशेष लाभ मिलता है।


किसान हो रहे मालामाल
पिछले साल जहां सौफ 120 रुपए किलो में बिकी थी, जो इस बार 200 रुपए और हाई क्वालिटी की सौफ 400 रुपए प्रति किलो में गई है। यहां की सौंफ में महक का राज जानने के लिए कृषि विभाग के साथ ही नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर सीड स्पाइसीज के कृषि वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं।
संजय तनेजा, संयुक्त निदेशक, कृषि विभाग

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कई देशों में एक्सपोर्ट
सौंफ की गुणवत्ता सुधार के लिए कई प्रयास किए। उपज को छायादार जगह में सुखाकर गुणवत्ता बनाए रखी, जिससे महक बनी रही और अच्छे दाम मिले। यहां की सौंप की गुजरात में इतनी मांग है कि व्यापारी एडवांस बुकिंग कराते हैं। गुजरात की मंडियों से एशियाई देशों में एक्सपोर्ट होती है।
इशाक अली, उन्नत कृषक, काछोली