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इंद्र देव ने रावण को दिया चकमा और राजस्थान में यहां स्थापित कर दिया ऐतिहासिक शिवलिंग, जानिए पूरा इतिहास

होली नजदीक आते ही सिरोही के मंडार क्षेत्र में चंग की थाप पर गीतों का चलन व नृत्य शुरू हो जाता है।

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होली नजदीक आते ही सिरोही के मंडार क्षेत्र में चंग की थाप पर गीतों का चलन व नृत्य शुरू हो जाता है। महा शिवरात्रि पर्व के बाद फाल्गुन शुक्ला ग्यारस यानी आमलकी ग्यारस को लीलाधारी महादेव का बुधवार को विशाल मेला भरा, जिसमें मंडार समेत आस पास गांवों के लोग पहुंचे। पहाड़ी स्थित लीलाधारी महादेव के दर्शन व पूजा के बाद चंग की थाप पर जमकर नृत्य हुआ।

भगवान विष्णु ने ग्वाले के रूप में आकर पहाड़ी को किया था स्थापित
गुजरात सीमा से सटे मंडार कस्बे में पहाड़ी स्थित लीलाधारी महादेव के चमत्कार आज भी चर्चित हैं। मंदिर में पहाड़ी पर 84 फीट के स्वयंभू शिवलिंग की सदियों से पूजा देव क्षत्रिय रावल ब्राह्मण करते आ रहे हैं। मान्यता है कि शिवलिंग समेत पूरी पहाड़ी को भगवान विष्णु ने अपने हाथों से ग्वाले के रूप में आकर स्थापित किया था। इसका उल्लेख शास्त्रों व पुराणों में भी है। किंवदंती के अनुसार लंकाधिपति रावण महादेव का परम भक्त था। रावण की भक्ति से प्रसन्न होकर महादेव ने वरदान दिया। रावण ने कैलाश पर्वत स्थित मंदा शिखर को ले जाकर लंका में स्थापित करना चाहा। महादेव ने तथास्तु कहा। रावण मंदा शिखर को हाथों में धारण कर ले जाने लगा तो देवताओं में हड़कंप सा मच गया।

इंद्र ने किया था स्थापित
देवता ब्रह्मा के बाद विष्णु भगवान के पास गए। विष्णु ने इंद्र के पास जाने की सलाह दी। देवताओं के आग्रह पर इंद्र ने रावण को लघुशंका के लिए आतुर किया। उस दौरान मंदिर स्थल पर भगवान विष्णु ग्वाले का रूप धारण कर गाय चरा रहे थे। रावण की दृष्टि पड़ी तो ग्वाले से कहा, मैं तुझे अपार शक्ति देता हूं। इस पर्वत को धारण कर। यह कहकर ग्वाले के हाथ में मंदा शिखर थमा दिया। रावण थोड़ी दूर जाकर लघुशंका कर लौटा तो भगवान उसी स्थान पर मंदा शिखर को स्थापित कर चले गए थे। रावण को वहां से निराश लौटना पड़ा था। बताया जाता है कि मंडार का नाम भी मंदा शिखर से मंदा, मदार, मडार से अपभ्रंश होकर मंडार हुआ है।

शिवालय प्रगाढ़ आस्था का केन्द्र
राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र समेत समूचे भारतवर्ष में लीलाधारी महादेव के भक्त हैं। आज भी लोग संतान सुख तथा शरीर पर मस्से होने पर घी का रेला मानते हैं। भक्तजन आस्था के अनुसार पूजा कर मन्नतें भी करते हैं। क्षेत्र के किसान लीलाधारी महादेव को कुल देवता मानते हैं। किसान महाशिवरात्रि पर चूरमे तथा नए गेहूं की बालियों का भोग लगाते हैं। वहीं आमलकी ग्यारस पर मेले में नवजात शिशु को धोक लगवाने पहुंचते हैं।

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