वर्षभर में अक्सर यहां आने वाले देसी-विदेशी विशिष्ट व्यक्तियों के आवागमन को सुविधापूर्वक बनाने व बरसात के दौरान बार-बार सडक़ टूटने से होने वाली परेशानियों से बचाव को किवरली-गुरुशिखर मार्ग को अस्तित्व में लाने की निहायत जरूरत है। माउंट आबू में आर्मी, एयरफोर्स स्टेशन, सीआरपी की आंतरिक सुरक्षा अकादमी, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, इसरो व वीएसएफ, जैसे महत्वपूर्ण केंद्र स्थित हैं।
ब्रिटिश हुकूमत के दौरान बना था सड़क मार्ग
तत्कालीन रियासतकाल दौर में राजा-महाराजाओं के अपनी रियासतों से ग्रीष्मकालीन अवकाश पर आने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने कार्टरोड सडक़ मार्ग को एकतरफा वाहनों के लिए बनाया था। हालांकि किवरली-गुरुशिखर मार्ग को अस्तित्व में लाने के लिए केंद्रीय सरकार ने कवायद भी शुरू की थी।
यह थी प्रस्तावित परियोजना
केंद्र सरकार की ओर से संचालित पर्वतमाला परियोजना के तहत आस्था स्थलों को राष्ट्रीय राजमार्ग से जोडऩे की योजना के तहत गुरुशिखर को राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़ने की कार्ययोजना थी। जो मार्ग में आ रही रेलवे लाइन पर ओवरब्रिज बनाने को एनएच व रेलवे की ओर से संयुक्त रूप से किए जाने वाले कार्य में आने वाली अड़चन से योजना अधरझूल में लटक गई।
परियोजना में बिलंब की मुख्य वजह
जानकार सूत्रों के मुताबिक योजना के अनुसार मार्ग का चयन किया गया था। जिसके लिए संबंधित विभागों से कई दौर की बैठकों के बाद किवरली से तलहटी तक फोरलेन में तबदील करने, तलहटी से गुरुशिखर तक डबल लेन करने का निर्णय लिया था। जिसकी तैयारियों को पूर्ण कर डीपीआर बनाकर सक्षम स्वीकृति को भेजनी थी। इसी बीच एक प्रस्ताव आया कि मार्ग किवरली के बजाय तरतोली से साईंबाबा मंदिर मानपुर क्षेत्र होते हुए तलहटी की ओर से लिए जाने से मार्ग अधिक उपयोगी होगा। जिस पर इस मार्ग को किवरली के बजाय तरतोली की ओर से तब्दील करने की योजना बनी।
इसलिए लटकी योजना अधरझूल में
नई योजना तहत मार्ग में रेलवे लाइन आ गई, जिस पर पुल बनाया जाना तय हुआ। किसी का मानना था कि यह पुल अंडरग्राउंड बनाया जाए, जबकि किसी ने ओवरब्रिज बनाने की मंशा जाहिर की। जिसके लिए रेलवे व एनएचएआई की ओर से संयुक्त रूप से निरीक्षण करने का निर्णय लिया। निरीक्षण में आ रही देरी से अंबाजी से लेकर गुरुशिखर तक के आस्था स्थलों को जोडऩे वाली यह जनोपयोगी, महत्वाकांक्षी परियोजना अधरझूल में लटक गई।
यह है योजना का प्रारूप
पूर्व में तयशुदा प्रारूप के अनुसार करीब 41 किलोमीटर के इस मार्ग पर बनास नदी के बड़े पुल से लेकर पांच छोटे पुलों का जीर्णोद्धार किया जाना था। मार्ग पर 33 संकरें व अंधे मोड़ों को सीधे करने, बनास व तलहटी पर बड़ा जंक्शन बनाने, 38 सार्वजनिक व निजी संपत्तियों की आवप्ति, बरसाती पानी की निकासी का ध्यान व मजबूत सुरक्षा दीवार आदि बनाकर भारत माला योजना को अमलीजामा पहनाया जाना था।