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राजस्थान में यहां बना जहाजनुमा जैन मंदिर, 108 अभिषेक के साथ कल होगी प्राण-प्रतिष्ठा

Ship Temple of Lord Munisuvrat Swami : 9वीं शताब्दी के अति प्राचीन जैन तीर्थ मीरपुर पार्श्वनाथ की नगरी में श्री जैन श्वेताम्बर पार्श्वचन्द्रसूरीश्वर धाम ट्रस्ट में भगवान मुनिसुव्रत स्वामी का भव्य जहाज मंदिर का निर्माण करवाया है।

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Ship Temple of Lord Munisuvrat Swami : सिरोही। 9वीं शताब्दी के अति प्राचीन जैन तीर्थ मीरपुर पार्श्वनाथ की नगरी में श्री जैन श्वेताम्बर पार्श्वचन्द्रसूरीश्वर धाम ट्रस्ट में भगवान मुनिसुव्रत स्वामी का भव्य जहाज मंदिर का निर्माण करवाया है। मंदिर जहाजनुमा आकृति में बना है, जो कि अत्यंत आकर्षक है। जिसकी प्राण-प्रतिष्ठा 7 मार्च को होगी। आचार्य भगवंत अशोक सागरसूरी जी म.सा. एवं मीरपुर जहाज मंदिर प्रेरिका साध्वी सुनंदिता श्रीजी की निश्रा में विधि विधान के साथ होगी।

ट्रस्ट के मंत्री प्रेमचन्द्र छल्लाणी ने बताया कि यह नूतन जिनालय नागौर-निवासी निर्मला देवी विजयराज चौधरी परिवार ने अपने स्वद्रव्य से बनाया हैं। उन्होंने बताया कि मीरपुर उनके गुरुदेव पार्श्वचन्द्रसूरीजी की जन्मभूमि होने के कारण यहां उनका गुरू मंदिर भी बनाया हैं। इस भूमि पर मंदिर बनाने के लिए 2016 में भूमि खरीदी गई और यहां जहाजनुमा मंदिर व गुरू मंदिर बनाने का कार्य आचार्य भगवंत अशोक सागरसूरीजी, साध्वी सुनंदिताश्रीजी, मौन वरिष्ठ मुनिराज श्री पुण्यरत्नचन्द्रजी एवं मुनिराज नयशेखर विजयजी म.सा. के मार्गदर्शन में शुरू किया गया।

दीक्षा कल्याणक का आज भव्य वरघोड़ा निकाला गया, उसके बाद दीक्षा विधान हुआ। सुविज्ञ संगीतकार नीलेश राणावत रोजाना भक्ति संगीत के साथ भक्तों को परमात्मा की भक्ति में लीन कर उत्साह बढ़ा रहे हैं। अहमदाबाद के विधिकारक संजयभाई सोमभाई पाइप वाले प्रतिष्ठा की तमाम विधि करवा रहे हैं।

अंजन शलाका के बाद गुरुवार को 108 अभिषेक के साथ नूतन जिनालय की प्रतिष्ठा होगी। जिनालय में मुनिसुव्रत स्वामी मूलनायक होंगे और भगवान वासुपुज्य स्वामी, आदिनाथ प्रभु, हमीरपुरा पार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभस्वामी नेमीनाथप्रभु, सुविधिनाथप्रभु एवं शांतिनाथप्रभु की प्रतिमा विराजित की गई। गुरूदेव श्री पार्श्वचन्द्रसूरी की गुरूमुर्ति भी स्थापित की गई हैं।

मंदिर में एक मार्च से प्राण-प्रतिष्ठा का कार्यक्रम शुरू हुआ, जिसमें भगवान का जन्म कल्याणक, च्यवन कल्याणक, प्रभूजी की सांजी, राज्याभिषेक कार्यक्रम विधि विधान के साथ सम्पन्न हुआ। मंगलवार को राज्याभिषेक कार्यक्रम में पावापुरी ट्रस्ट के चेयरमैन किशोर एच. संघवी व मैनेजिंग ट्रस्टी महावीर जैन ने भाग लिया तथा आचार्य भगवंत अशोक सागरसूरीजी व अन्य साधु साध्वी भगवन्तों को वंदन कर उनका आशीर्वाद लिया। इस अवसर पर नूतन जिनालय बनाने वाले ट्रस्ट के चेयरमैन विजयराज चौधरी एवं प्रेमचंद छल्लानी ने किशोर भाई संघवी का बहुमान किया। ट्रस्ट की ओर से नूतन जिनालय बनाने वाले विजयराज चौधरी परिवार को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि इस प्राचीन तीर्थ भूमि में नूतन जिनालय बनाकर उन्होंने परमात्मा व गुरुभक्ति का एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है।

ट्रस्ट मंडल के अध्यक्ष विजयराज चौधरी ने बताया कि ट्रस्टी पदमचंद चौधरी, प्रेमचंद छल्लानी, मनोज चौधरी, निर्मला देवी, शिल्पा देवी, निर्मलचंद चौधरी, लाभचंद समदडिया, जयचंदलाल, संजय चौधरी, अनिल बोहरा, दिनेश चौधरी एवं लवेश चौधरी सम्पूर्ण व्यवस्था को सम्भाल रहे है। देश के विभिन्न भागों से पधारे भक्तों की आवास व्यवस्था पावापुरी, राजेन्द्र धाम, भेरूतारक धाम एवं मीरपुर में की गई है। कोलकाता से भी अनेक धर्म प्रेमी महोत्सव में शामिल हो रहे हैं।

भगवान महावीर की विहारभूमि मीरपुर में श्री वीर वंशावली के अनुसार सम्प्रति राजा ने पार्श्वनाथजी का जिनमंदिर बनवाया था। मीरपुर का प्राचीन नाम हमीरपुर था और राजस्थान की धरा पर संगमरमर का यह सबसे प्राचीन जिन मंदिर हैं। यहां पर पहले जिलापल्ली नगर था और यहां संवत 821 में यह मंदिर राजा के मंत्री सामंत ने बनवाया था। हमीरपुर एक समय में जैन समाज का मुख्य सांस्कृतिक एवं व्यापार केन्द्र हुआ करता था। इस भूमि पर संवत 1576 में पार्श्वगच्छ के संस्थापक श्री पार्श्वचन्द्रसूरीजी का जन्म हुआ था और उनकी स्मृति में अब यहां गुरुदेव का गुरू मंदिर चौधरी परिवार ने बनवाया हैं।

108 पार्श्वनाथ तीर्थों में हमीरपुरा पार्श्वनाथ का नाम अंकित होने से जो भी भक्त 108 पार्श्वनाथ दादा की यात्रा करते हैं, वो यहां भी आकर सेवा-पूजा व दर्शन का लाभ लेते हैं। ई.सं. 1904 में सेठ कल्याणजी परमानंदजी पेढी सिरोही ने नांदिया दरबार में कीमत चुका कर इस मंदिर व धर्मशाला की व्यवस्था अपने हाथों मे ली थी तथा आज भी यही ट्रस्ट इसका संचालन करता हैं। 9वीं शताब्दी के इस प्राचीन तीर्थ में भीडभंजन पार्श्वनाथ की प्रतिमा बहुत ही अलौकिक व प्रगट प्रभावी हैं। अनेक तपस्वी यहां साधना व तप करने आते हैं। पहाड़ियों के बीच बने इस तीर्थ का प्राकृतिक सौंदर्य अनूठा हैं ओर राष्ट्रीय पक्षी मोर यहां पर बड़ी तादाद में हैं।