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रसोई में इस्तेमाल होने वाली जड़ी-बूटी दुनिया की सबसे खतरनाक चींटी से निपटने में मदद कर सकती है

फायर ऐंट्स (आग जैसी काटने वाली चींटियां) लगातार नए इलाकों में फैल रही हैं। कई समुदाय उनसे परेशान हैं और ऐसे उपाय चाहते हैं जो मिट्टी, पालतू जानवरों या बगीचों को नुकसान न पहुंचाएं।

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जयपुर। फायर ऐंट्स (आग जैसी काटने वाली चींटियां) लगातार नए इलाकों में फैल रही हैं। कई समुदाय उनसे परेशान हैं और ऐसे उपाय चाहते हैं जो मिट्टी, पालतू जानवरों या बगीचों को नुकसान न पहुंचाएं। इसी तलाश में वैज्ञानिकों ने एक अप्रत्याशित दिशा में काम किया, रसोई में इस्तेमाल होने वाली एक आम हर्ब (जड़ी-बूटी) इन घुसपैठी चींटियों की रफ्तार कम करने में मदद कर सकती है।

फायर ऐंट्स कैसे फैलीं

फायर ऐंट्स 20वीं सदी की शुरुआत में अमेरिका के मोबाइल पोर्ट के ज़रिए देश में पहुंचीं और तेजी से फैलती चली गईं। आज भी खेत, बगीचे और चरागाह इनके असर से जूझ रहे हैं।

  • किसान फसलों का नुकसान झेलते हैं।
  • बच्चे खेलते समय चींटियों के टीले पर पैर रख देते हैं।
  • इनके काटने से गंभीर जलन और कभी-कभी खतरनाक प्रतिक्रिया भी होती है।

हर साल ये चींटियां अरबों डॉलर का नुकसान कर रही हैं और इनका क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है। अधिकतर उपचार सिंथेटिक रसायनों पर आधारित होते हैं। वे काम तो करते हैं, लेकिन लोग उन्हें भोजन, पालतू जानवरों या पानी के पास इस्तेमाल करने से हिचकिचाते हैं। यही वजह है कि वैज्ञानिक ऐसे हल ढूंढ रहे हैं जो प्राकृतिक हों और असल जिंदगी में कारगर भी।

ओरिगैनो तेल की तेज महक

मिसिसिपी विश्वविद्यालय की एक टीम ने एक सरल प्रयोग किया, उन्होंने रसोई में खूब इस्तेमाल होने वाली जड़ी-बूटी ओरिगैनो पर ध्यान दिया। ओरिगैनो के तेल की महक बहुत तेज़ होती है। वैज्ञानिकों ने देखा कि फायर ऐंट्स इस महक से बचती हैं। प्रयोगों में चींटियाँ उस मिट्टी से दूर रहीं, जिस पर तेल लगाया गया था। शोध में शामिल वैज्ञानिक जिंग कांग ली ने कहा, हमारा अध्ययन दिखाता है कि ऐसा प्राकृतिक यौगिक, जो भोजन में स्वाद देने के लिए सुरक्षित है, दुनिया की सबसे आक्रामक चींटियों में से एक को नियंत्रित करने में भी मदद कर सकता है। उन्होंने पाया कि तेल में मौजूद कार्वाक्रॉल नामक यौगिक इस प्रभाव के लिए जिम्मेदार है। चींटियां ऐसी मिट्टी में न तो खुदाई करतीं, न वहां बसना चाहतीं। यह तरीका बगीचे, शेड और घरेलू जगहों की सुरक्षा में उपयोगी साबित हो सकता है। हालांकि, यह परीक्षण मानव त्वचा पर नहीं किया गया है, इसलिए सावधानी जरूरी है।

ओरिगैनो तेल चींटियों पर कैसे असर करता है?

टीम ने कार्वाक्रॉल जैसे 21 समान रासायनिक यौगिकों को इकट्ठा किया, हर यौगिक की संरचना थोड़ी अलग थी। कुछ का असर बहुत कम था, जबकि कुछ लगभग कार्वाक्रॉल जितने प्रभावी थे। इसके बाद वैज्ञानिकों ने कंप्यूटर मॉडल बनाए ताकि समझ सकें कि ये यौगिक चींटियों के फेरोमोन संकेतों को कैसे प्रभावित करते हैं। फायर ऐंट्स अपनी लगभग हर गतिविधि के लिए फेरोमोन पर निर्भर रहती हैं। यदि संकेत बिगड़ जाए तो कॉलोनी दिशाहीन हो जाती है। ली के अनुसार, कार्वाक्रॉल और उससे जुड़े यौगिक पौधों पर आधारित नए रोधक (repellent) बनाने की मजबूत संभावना दिखाते हैं।

व्यवहार बदल कर चींटियों को रोकना

फायर ऐंट्स फसलों, उपकरणों, पालतू जानवरों और इंसानों तक को नुकसान पहुंचा सकती हैं। इसलिए लोग ऐसा समाधान चाहते हैं जो भूमि की रक्षा करे लेकिन कठोर रसायन न छोड़े। पौधों से बने पदार्थों का फायदा यह है कि मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीव उन्हें जल्दी तोड़ देते हैं, जिससे पर्यावरण पर कम दबाव पड़ता है। शोधकर्ता अब्बास अली बताते हैं कि उनका लक्ष्य चींटियों को मारना नहीं, बल्कि उनके व्यवहार को बदलना है। वह कहते हैं कि हमारे उत्पाद चींटियों को रोकते हैं, उन्हें खुदाई करने से रोककर। इससे चींटियां उस जगह घोंसला नहीं बना पातीं और दूसरी जगह चली जाती हैं। मिट्टी की बनावट भी नतीजे बदल देती है। चिकनी मिट्टी (clay) महक को लंबे समय तक पकड़े रहती है। रेतीली मिट्टी (sand) इसे जल्दी खो देती है। गर्मी, नमी और हवा भी असर बदलते हैं। इसीलिए वैज्ञानिक इन सभी स्थितियों में परीक्षण कर रहे हैं। टीमें खेतों में यह भी देखती हैं कि टीले कहां बने हैं, मिट्टी कैसी है, मौसम कैसा है फिर उसी हिसाब से उपचार लगाया जाता है।

भविष्य के शोध

आगे बड़े स्तर पर बगीचों, पार्कों और बस्तियों में परीक्षण किए जा सकते हैं। शोधकर्ता कई पौधों से बने यौगिकों को मिलाकर ज्यादा मजबूत समाधान विकसित करना चाहते हैं। यह शोध बताता है कि हर समाधान जटिल तकनीक से नहीं आता, कभी-कभी रसोई की एक साधारण जड़ी-बूटी भी नए रास्ते खोल देती है। ओरिगैनो तेल समुदायों को फायर ऐंट्स से निपटने का एक सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल तरीका दे सकता है। शोध जारी है और उम्मीद भी बढ़ रही है। यह अध्ययन Pest Management Science जर्नल में प्रकाशित हुआ है।