21 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

शहीदी दिवस: तय वक्त से पहले दी गई थी भगत सिंह को फांसी, जानें उस काली रात का सच

असल में इन तीनों क्रांतिकारियों को फांसी के लिए 24 मार्च का वक्त तय किया गया था लेकिन अंग्रेजों को पूरे देश में बवाल होने का डर सता रहा था।

2 min read
Google source verification
bhagat singh

नई दिल्ली: 23 मार्च 1931, यही वो तारीख है जब भारत मां के सपूत क्रांतिकारी भगत सिंह को राजगुरू और सुखदेव के साथ लाहैर के सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी।असल में इन तीनों क्रांतिकारियों को फांसी के लिए 24 मार्च का वक्त तय किया गया था लेकिन अंग्रेजों को पूरे देश में बवाल होने का डर सता रहा था।इसी वजह से अंग्रेजों ने भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को तय वक्त से 12 घंटे पहले 23 मार्च को शाम 7:33 मिनट पर तीनो क्रांतिकारियों को फांसी की सजा दे दी गई।

चूंकि फांसी समय से पहले और गुप्त तरीके से दी जा रही थी, इसलिए उस वक़्त बहुत ही कम लोग शामिल हुए थे। जो लोग वहां मौजूद थे उसमें यूरोप के डिप्टी कमिश्नर शामिल थे। फांसी के तख्ते पर चढ़ने के बाद, गले में फंदा डालने से ऐन पहले भगत सिंह ने डिप्टी कमिश्नर की और देखा और मुस्कुराते हुए कहा, ‘मिस्टर मजिस्ट्रेट, आप बेहद भाग्यशाली हैं कि आपको यह देखने को मिल रहा है कि भारत के क्रांतिकारी किस तरह अपने आदर्शों के लिए फांसी पर भी झूल जाते हैं।’

कहा तो ये भी जाता है कि जिस वक्त भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी दी जानी थी, उस वक्त ये तीनो क्रांतिकारी भले ही आजादी के तराने गा रहे हों लेकिन इनके साथ जेल में बंद बाकी सभी कैदी जार-जार रो रहे थे।

आखिरी पलों में क्या हुआ था

अंग्रेजों ने आनन-फानन में फांसी देने का फैसला कर लिया।जब पुलिसवाले भगत सिंह को फांसी के लिए ले जाने आए, उस वक्त भगत सिंह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे।तब उन्होने पुलिसवाले से कहा 'रूको, पहले एक क्रांतिकारी को दूसरे क्रांतिकारी से मिल लेने दो'।एक मिनट के बाद किताब बंद कर उसे छत की तरफ उछालते हुए बोले अब चलो।

अंग्रेजों ने भले ही बवाल और प्रदर्शन के डर से क्रांतिकारियों को वक्त से पहले फांसी दे दी गई । लेकिन अगली सुबह जब लोगों को इस बात का पता चला तब इन तीनों शहीदों के सम्मान में नीला गुंबद से लगभग 3 मील लंबा जुलूस निकाला गया। इस जुलूस में पुरूषों ने काली पट्टियां बांधी थी, तो औरतों ने काली साड़ियां पहनकर विरोध प्रदर्शन किया था।