
नई दिल्ली। देश की आजादी और उसके स्वरूप को लेकर सरदार वल्लभ भाई पटेल की दृष्टि स्पष्ट और साहसिक माना जाता है। यही कारण है कि आजादी से पूर्व ही वो दोनों मोर्चे पर काम शुरू कर चुके थे। उन्होंने न केवल आजादी के लड़ाई के दौरान अंग्रेजी हुकूमत के समक्ष कठिन चुनौतियां पेश की बल्कि जनता की मांगों को मानने के लिए मजबूर किया। साथ ही दुनिया में शांतिपूर्ण तरीके से सैकड़ों रियासतों को भारत में विलय कराने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है यही कारण है कि उन्हें देश को सुदृढ़ एवं संगठित करने के लिए बिस्मार्क कहा जाता है।
भारत के बिस्मार्क थें पटेल
कुछ इतिहासकार उन्हें बिस्मार्क से भी आगे का मानते हैं। क्योंकि बिस्मार्क ने जर्मनी का एकीकरण ताकत के बल पर किया और राज्यों के प्रमुखकों को जर्मनी में विलय के लिए बाध्य किया। जबकि पटेल ने यह काम लोकतांत्रिक पद्धति से अपनी राजनीतिक दृढ़ता का परिचय देते हुए किया। रियासतों का भारत संघ में विलय कर उन्होंने सही मायने में आधुनिक भारत की नींव रखने का काम किया था। ऐसा वो इसलिए कर पाए कि अखंड भारत को लेकर उनकी नीति स्पष्ट, दूरदर्शी व व्यावहारिक थी। इसके पीछे भारत को एक मजबूत राष्ट्र बनाना उनका मकसद था।
स्वतंत्रता आंदोलन में निभाई अहम भूमिका
स्वतंत्रता आंदोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला और बड़ा योगदान खेड़ा संघर्ष में हुआ। गुजरात का खेड़ा उन दिनों भयंकर सूखे की चपेट में था। जब यह स्वीकार नहीं किया गया तो सरदार पटेल, गांधीजी एवं अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हें कर न देने के लिए प्रेरित किया। इसमें उन्हें सफलता भी मिली। इसी तरह बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहां की महिलाओं ने सरदार की उपाधि प्रदान की।
562 रियासतों को किया एक
इसके अलावा सरदार पटेल की महानतम देन थी 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में मिलाकर भारतीय एकता का निर्माण करना। विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा न हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो। भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। देसी रियासतों के एकीकरण की समस्या को पटेल ने बिना खून खराबे के बड़ी खूबी से हल किया। देशी राज्यों में राजकोट, जूनागढ़, वहावलपुर, बड़ौदा, कश्मीर, हैदराबाद को भारतीय महासंघ में सम्मिलित करने में पटेल को कई पेचीदगियों का सामना करना पड़ा।
पटेल ने आजादी के ठीक पूर्व ही पीवी मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिए कार्य आरंभ कर दिया था। पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को समझाया कि उन्हें स्वायत्तता देना संभव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन को ठोड़कर शेष सभी रजवाड़ों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। केवल जम्मू और कश्मीर , जूनागढ़ तथा हैदराबाद के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा। जूनागढ़ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ़ भी भारत में मिल गया। जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार रि दिया तो सरदार पटेल ने वहां सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया। किन्तु नेहरू ने कश्मीर को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है।
Updated on:
31 Oct 2017 01:42 pm
Published on:
31 Oct 2017 01:38 pm
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