‘हॉकी के जादूगर’ मेजर ध्यानचंद के बारे में कई किस्से मशहूर हैं, लेकिन इसमें एक किस्सा काफी चर्चित है जो तानाशाह हिटलर से जुड़ा है। वर्ष 1936 में जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने ध्यानचंद को जर्मनी की नागरिकता और अपने देश की सेना में कर्नल बनाने का प्रस्ताव दिया था। मजर ध्यानचंद ने हिटलर के इस ऑफर को ठुकरा दिया था। उन्होंने हिटलर से कहा था कि उन्होंने भारत का नमक खाया है और वह भारत के लिए ही खेलेंगे। वहीं ध्यानचंद के बारे मेंं एक किस्सा और मशहूर है। कुछ लोगों को लगता था कि उनकी हॉकी स्टिक में कोई चुंबक लगी है, जिसकी वजह से बॉल उनकी हॉकी स्टिक से चिपक जाती है। ऐसे में मेजर ध्यानचंद की हॉकी स्टिक को तोड़कर देखा गया था।
मेजर ध्यानचंद ने आजादी से पहले भारत को तीन बार ओलंपिक में गोल्ड दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वर्ष 1928, 1932 और 1936 में भारत ने हॉकी में ओलंपिक गोल्ड मेडल जीते। इन तीनों ओलंपिक में मेजर ध्यानचंद ने कमाल का प्रदर्शन किया। वहीं वर्ष 1936 के बर्लिन ओलंपिक में ध्यानचंद ने भारतीय हॉकी टीम की कमान संभाली थी। मेजर ध्यानचंद ने वर्ष 1926 से 1949 के बीच इंटरनेशनल स्तर पर कई मैच खेले। उन्होंने 185 मैचों में 570 गोल दागे। हॉकी में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 1956 में पद्म भूषण से नवाजा थ।
मेजर ध्यानचंद के पिता समेश्वर सिंह भी हॉकी के बेहतरीन प्लेयर थे। उनके पिता ब्रिटिश इंडियन आर्मी में थे। वहीं बचपन में मेजर ध्यानचंद को बचपन में हॉकी से कोई लगाव नहीं था। बचपन में ध्यानचंद को कुश्ती खेलना बहुत पसंद था। जब ध्यानचंद सेना में भर्ती हुए तब उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया था। इसके बाद उन्होंने हॉकी के इतिहास में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज कराया।