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निकहत जरीन ने गलत साबित की पिता की बात, समाज की कट्टर सोच को दिया गोल्डन पंच

locationनई दिल्लीPublished: Aug 09, 2022 11:04:16 am

Submitted by:

Siddharth Rai

हर खिलाड़ियों को इस मुकाम तक पहुंचे के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। लेकिन लड़कियों के लिए ये संघर्ष कई गुना बढ़ जाते हैं। अक्सर उन्हें पहले परिवार के सामने संघर्ष करना पड़ता है फिर समाज और फिर इस व्यवस्था से भी लड़ना पड़ता है। ऐसी ही कहानी भारतीय मुक्केबाज निकहत ज़रीन की भी है।

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Nikhat zareen Struggle story: हमारे समाज में कई तरह की असमानताएं हैं। स्त्री और पुरुष के बीच असमानता भी उन में से एक है। पितृसत्ता के इस माहौल में एक महिला खिलाड़ी होना कितना कठिन है। यह भारतीय मुक्केबाज निकहत ज़रीन की कहानी में साफ दिखाई देता है। निकहत ने कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में लाइट फ्लाईवेट (48-50 किग्रा) स्पर्धा में शानदार प्रदर्शन करते हुए गोल्ड मेडल जीता है। लेकिन इस मेडल के लिए निकहत को न सिर्फ बॉक्सिंग रिंग में मजबूती से लड़ना पड़ा बल्कि समाज की कट्टर सोच और अपने माता पिता के तानों का भी सामना करना पड़ा है।

2009 में ‘वर्ल्ड अर्बन गेम्स’ में बॉक्सिंग में कोई महिला प्रतिभागी नहीं थी। निकहत ने अपने पिता से पूछा था की बॉक्सिंग में महिलाएं क्यों नज़र नहीं आती। इसपर उनके पिता ने कहा, ‘महिलाएं इतनी मजबूत नहीं होती। मुक्केबाजी उनके लिए नहीं है।’ निकहत ने अपने पिता के इस बात को चैलेंज की तरह लिया और उन्हें गलत साबित कर दिया।

निकहत ने साबित किया कि हिम्मत, हौसले और कड़ी लगन से कामयाबी का मुक़ाम हासिल किया जा सकता है। यही नहीं निकहत एक बार ट्रेनिंग से खून से सने चेहरे और आंखों में चोट के साथ घर लौटीं। बेटी को इस हालत में देख मां रो पड़ी। उनकी मां ने कहा कि कोई लड़का उनसे शादी नहीं करेगा। इस पर निखत ने कहा था कि नाम होगा तो दूल्हों की लाइन लग जाएगी। हाल में निकहत ने अम्मी को उनके जन्मदिन पर गिफ्ट में गोल्ड लाने का वादा किया था, जो उन्होंने बर्मिंघम में पूरा कर दिया।

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CWG में निकहत की यह जीत उन लड़कियों के लिए बड़ा मोटीवेशन है, जो टैलेंटिड होने के बावजूद इस समाज के चलते बंद कमरों में ही दम दम तोड़ देता है। हर खिलाड़ियों को इस मुकाम तक पहुंचे के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। लेकिन लड़कियों के लिए ये संघर्ष कई गुना बढ़ जाते हैं। अक्सर उन्हें पहले परिवार के सामने संघर्ष करना पड़ता है फिर समाज और फिर इस व्यवस्था से भी लड़ना पड़ता है।

बॉक्सिंग चुनने पर निकहत और उनके परिवार वालों को काफी ताना सुनना पड़ा। इसे लेकर उन्होंने कहा था, “मैं रूढ़िवादी समाज से हूं, लोग सोचते हैं कि लड़कियों को घर का काम करना चाहिए। शादी करनी चाहिए और परिवार की देखभाल करनी चाहिए। मेरे पिता एक एथलीट थे, वह हमेशा मेरा समर्थन करते और मेरे साथ खड़े रहते। यहां तक कि जब लोग मेरे पिता जमील से कहते थे कि तुमने अपनी बेटी को बॉक्सिंग में क्यों डाला। आपकी चार लड़कियां हैं। पापा ने मुझसे कहा कि बॉक्सिंग पर फोकस करो और ये लोग (ऐसी बातें कहने वाले) ही तुम्हें बधाई देंगे। मैं अपने जीवन में ऐसे माता-पिता को पाकर धन्य महसूस करता हूं।”

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निकहत ज़रीन हैदराबाद से करीब 200 किलोमीटर दूर तेलंगाना के एक शहर निजामाबाद की रहने वाली हैं। ज़रीन के चाचा शमशुद्दीन ने ही उन्हें बॉक्सिंग की दुनिया से रूबरू कराया। शमशुद्दीन एक बॉक्सिंग कोच थे। वह अपने बेटों और निकहत के चचेरे भाई को बॉक्सिंग की ट्रेनिंग देते थे। उन्हें देखते हुए निकहत ज़रीन की भी बॉक्सिंग में रुचि बढ़ने लगी। बॉक्सिंग के लिए उसके जुनून को देखकर उनके चाचा ने उसे भी कोचिंग देना शुरू कर दिया, उस वक्त वो 13 साल की थीं।


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