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श्रीगंगानगर.
आज किसी भी मार्केट में जाएं तो व्यापारी मंदे का रोना रोते हैं। कारण पूछा जाए तो जुबान पर एक ही बात आती है नोटबंदी और जीएसटी।सुखाडिय़ा सर्किल पर प्रत्येक रविवार को लगने वाले पुराने कपड़ों का बाजार भी मंदे की चपेट में है।
इस मार्केट में छोटी-मोटी दुकान लगातार अपना पेट पालने वाले लोग भी मायूस हैं। सभी जबर्दस्त मंदे की चपेट में हैं। इन वस्त्र विक्रेताओं का कहना है कि इस बार दीपावली भी फीकी रही।
स्टील के बर्तन देकर जुटाते हैं कपड़े
पुराने कपड़ों का व्यवसाय करने वाले जरूरतमंद लोग रविवार के अलावा सामान्य दिनों में साइकिल आदि पर फेरी लगाकर घर-घर जाकर स्टील के छोटे-मोटे बर्तनों के बदले पुराने कपड़े जुटाते हैं। घर लाकर ये इन कपड़ों की मरम्मत कर प्रेस आदि करके पहनने लायक बनाते हैं। इसके बाद हर रविवार को ये सुखाडिय़ा सर्किल पर अस्थायी दुकान लगाकर पुराने कपड़े बेचते हैं।
दिवाली पर भी नहीं छंटे मंदे के बादल
पुराना वस्त्र विक्रेताओं से इस संवाददाता ने बातचीत की तो वे काफी निराश नजर आए। उनका कहना था कि उन्हें उम्मीद थी कि दिवाली पर उन्हें ठीक-ठीक आय होगी लेकिन इस बार दिवाली पर भी अपेक्षा से आधी बिक्री भी नहीं हुई।
नोटबंदी के बाद डूबे
नोटबंदी के बाद लगभग सभी व्यवसाय प्रभावित हुए हैं। हमारा काम तो बिलकुल ही बर्बाद जैसा हो गया है। अब तो घर खर्च निकालना भी मुश्किल हो गया है।
-कंवरलाल, वस्त्र विक्रेता
खर्च निकालना भी मुश्किल
अब तो हालत यह हो गई कि यहां लगाने वाली अस्थायी दुकान का खर्चा निकालना भी मुश्किल हो गया है। फट्टे का किराया और चाय-पानी का खर्चा मिलाकर दिनभर में 300 रुपए खर्च हो जाते हैं।
-बादल सिंह, वस्त्र विक्रेता
अब 30 रुपए में भी नहीं बिकती शर्ट
अब तो हालत यह हो गई कि यहां लगाने वाली अस्थायी दुकान का खर्चा निकालना भी मुश्किल हो गया है। पहले 50 से 100 रुपए में शर्ट बेचते थे परन्तु अब कोई 30 रुपए में भी खरीदने को तैयार नहीं।
-रानी, वस्त्र विक्रेता
दो साल से है मंदा
हम चार साल से पुराने कपड़े का काम कर रहे हैं। दो साल से मंदे से जूझ रहे हैं। नोटबंदी के बाद तो काम ठप जैसा ही हो गया है। अब तो जैसे-तैसे गुजारा चला रहे हैं।
-कमल, वस्त्र विक्रेता
Published on:
22 Oct 2017 09:21 pm
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