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Earning from Stubble : सर्दियों के आगमन के साथ ही उत्तर भारत में वायु प्रदूषण की समस्या गंभीर हो जाती है। इसका सबसे बड़ा कारण माना किसान का पराली जलाना माना जाता है। मामला इतना गंभीर है कि इसे लेकर राज्य/केंद्र सरकार के साथ सुप्रीम कोर्ट तक दखल दे चुका है, पर समस्या कायम है। ऐसे में चूरू जिले का साहवा कस्बा पराली निपटान के मामले में नजीर बन गया है। यहां पराली से चारा बनाया जाता है, इसके एवज में 25 रुपए क्विंटल तक की कमाई भी हो जाती है। हालांकि, पराली कटाव से उठने वाली डस्ट का ग्रामीण वर्ष 2006 से विरोध भी कर रहे हैं।
सैकड़ों मजदूरों को मिलता है रोजगार
साहवा पराली मण्डी से चूरू, हनुमानगढ, सीकर, जयपुर, नागौर व बीकानेर आदि जिलों के पशुपालक जुडे़ हैं। साहवा भादरा व साहवा नोहर सड़क किनारे चलने वाले इस पराली रीसाइकलिंग उद्योग से करीब चार दर्जन व्यापारी जुड़े हैं। आस-पास के गांवों के अलावा बिहार और उत्तर प्रदेश के सैकड़ों मजदूरों को भी इससे रोजगार मिल रहा है। यहां अधिकांश पराली हरियाणा के फतेहबाद, जींद, एलनाबाद, सिरसा, कैथल से आती है। हनुमानगढ़ व श्रीगंगानगर जिलों से लगते हरियाणा और पंजाब के सीमावर्ती गांवों से भी पराली आती है। पराली का भाव मांग-आपूर्ति के अनुपात में घटता-बढ़ता है।
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10 से 25 रुपए प्रति क्विंटल की बचत
टाल मालिक गुणवत्ता के अनुसार पराली की ट्रॉली 350 से 450 रुपए प्रति क्विंटल के भाव से खरीद रहे हैं। मशीनों से काटने के बाद लोडिंग मजदूरी सहित 450 से 550 रुपए प्रति क्विंटल के भाव से इसे बेचा जा रहा है। इस काम में करीब 10 से 25 रुपए प्रति क्विंटल तक की बचत हो जाती है। पराली की बम्पर आवक अक्टूबर, नवम्बर व दिसम्बर माह में होती है। वहीं, स्टॉक कर रखी हुई पराली की आवक सालभर होती रहती है।
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Updated on:
13 Jan 2024 10:37 am
Published on:
13 Jan 2024 10:36 am
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