इसके अलावा कुश्ती ओपन कब्बडी बॉलीबाल प्रतियोगिता के आयोजन के साथ साथ महिला कब्बडी प्रतियोगिता आयोजित करवाई जाएगी। आस्था तथा श्रद्धा की प्रतीक मज़ारे लैला मजनू की मजारों के प्रति हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख तथा प्रत्येक धर्म के लोग आस्था रखते है। वैसे तो रोज ही कोई ना कोई इन मजारों पर नमक, प्रसाद, झंडी आदि चढ़ाकर मन्नत मानते है, लेकिन 11 से 15 जून के बीच पंजाब, हरियाणा, दिल्ली सहित राजस्थान के विभिन्न भागों से इन मजारों पर लोग मन्नत मांगने के लिए पहुंचते है तथा श्रद्धा से शीश नवाते है।
भारत- पाक अंर्तराष्ट्रीय सीमा पर स्थित मज़ारे हिन्दू मुस्लिम एकता तथा सद्भावना का संदेश देती है।गांव के बुजुर्ग बताते है कि तारबंदी से पूर्व यहां पाकिस्तान से लोग आकर मन्नते मानते थे। बढ़ रही मान्यता यह दो मज़ारे लैला मजनू की है इसका कोई आधिकारिक प्रमाण नही मिले है। लेकिन लैला मजनू के नाम से प्रसिद्ध इन मजारों की मान्यता दिन बदिन बढ़ रही है।
पहले यह मेला एक दिन का लगा करता था, लेकिन धीरे धीरे बढ़ती भीड़ के कारण मेला कमेटी ने इसे पिछले कुछ वर्षों से 5 दिन का कर दिया है, मेले के अंतिम दो दिन बहुत ज्यादा भीड़ हो जाती है। इनकी मौत कैसे हुई इसका भी कोई प्रमाण नही है। कुछ लोगों का मत है कि घर से भाग कर दर.दर भटकने के बाद वे यहां तक पहुंचे, प्यास से उन दोनों की मौत हो गई।इसी कारण यह मान्यता भी बनी कि घग्घर नदी में आने वाला पानी पूरे उफान के बावजूद इन मजारों को नही छूता।