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CG News: पिता ने छोड़ी बंदूक, अब बेटी बचाएगी मरीजों की जान, नीट क्वॉलीफाई कर डॉक्टर बनने की राह में रखा कदम

CG News: सुकमा जिले में 46 आदिवासी छात्रों ने नीट और जेईई जैसी प्रतिष्ठित परीक्षाएं पास कीं। इनमें से 43 ने नीट और 3 ने जेईई क्वॉलीफाई की। ये सभी बच्चे उसी बस्तर के हैं जहां कभी स्कूलों पर ताले लटकते थे।

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सुकमा

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Love Sonkar

Jul 04, 2025

CG News: पिता ने छोड़ी बंदूक, अब बेटी बचाएगी मरीजों की जान, नीट क्वॉलीफाई कर डॉक्टर बनने की राह में रखा कदम

माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ संध्या कुंजाम (Photo Patrika)

CG News: @मोहन ठाकुर। बस्तर अब गोलियों और बंदूकों के साए से बाहर निकलकर किताबों और सपनों की राह पर चल पड़ा है। कभी नक्सली खौफ के लिए देशभर में पहचाने जाने वाले सुकमा जिले में आज बच्चों के हाथों में बंदूक नहीं, मेडिकल और इंजीनियरिंग की किताबें हैं। इसी बदलाव की जीती-जागती मिसाल है संध्या कुंजाम, जिसने नीट क्वॉलीफाई कर डॉक्टर बनने की राह में पहला कदम रख दिया है।

संध्या इसलिए भी खास है क्योंकि उसके पिता रमेश कुंजाम कभी नक्सल संगठन में थे। रमेश ने 2001 में आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में कदम रखा। पुलिस के गोपनीय सैनिक बने, फिर आरक्षक बने और अब हेड कॉन्सटेबल हैं। रमेश कुंजाम कहते हैं कि मैं सिर्फ पांचवीं तक पढ़ा हूं, लेकिन चाहता था कि मेरे बच्चे अफसर बनें। इसी सोच के साथ संध्या को पढ़ाई के लिए हर सहूलियत दी।

पहले नक्सली स्कूल खुलने नहीं देते थे

इसी साल सुकमा जिले में 46 आदिवासी छात्रों ने नीट और जेईई जैसी प्रतिष्ठित परीक्षाएं पास कीं। इनमें से 43 ने नीट और 3 ने जेईई क्वॉलीफाई की। ये सभी बच्चे उसी बस्तर के हैं जहां कभी स्कूलों पर ताले लटकते थे। नक्सली स्कूल नहीं खुलने देते थे। जिला प्रशासन के क्षितिज कोचिंग सेंटर’ ने बच्चों को एक नई दिशा दिखाने का काम किया है।

प्रेरणादायी है संध्या की कहानी

जहां कभी बंदूक और बारूद की गंध से लोग सहमे रहते थे, वहीं अब घरों में बच्चों की पढ़ाई की चर्चा होती है। रमेश कुंजाम की कहानी बताती है कि कैसे एक नक्सली भी अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर समाज की मुख्यधारा में ला सकता है। संध्या की सफलता यह संदेश भी देती है कि बदलते बस्तर में अब बंदूक नहीं, किताबें और सपने पल रहे है।

संध्या ने सुकमा और दंतेवाड़ा में पढ़ाई की। कोचिंग के लिए प्रशासन के क्षितिज कोचिंग सेंटर का साथ मिला। पहले प्रयास में सीट नहीं मिलने पर भी हिम्मत नहीं हारी। दूसरी बार नीट पास कर अपने डॉक्टर बनने के सपने की दिशा में पहला कदम बढ़ाया। वे बताती है कि बचपन में खेल-खेल में डॉक्टर बनतीं थीं। तब मेरे पिता ने 11वीं में नीट की किताबें दिला दी थीं। तभी से सपना था कि डॉक्टर बनूं और अब उसे सच होते देख रही हूं। यह मेरे माता-पिता के सपनों की भी जीत है।