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इक्कीसवीं सदी में भी इस जानलेवा पुल से सफर करते हैं देश के नौनिहाल, माननीयों का नहीं गया ध्यान

बच्चों को स्कूल पहुंचने के लिए रोजाना खतरनाक जानलेवा रास्ते से होकर स्कूल जाना पड़ता है...

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Kids crosses deadly bridge for school in Sultanpur

इक्कीसवीं सदी में भी इस जानलेवा पुल से सफर करते हैं देश के नौनिहाल, माननीयों का नहीं गया ध्यान

सुल्तानपुर. इकीसवीं सदी में भी स्कूली बच्चों को स्कूल पहुंचने के लिए लकड़ी से बने जानलेवा पुल का सहारा लेना पड़ रहा है। यह सिलसिला एक दो दिन नहीं, बल्कि यह सिलसिला यूं ही हर दिन, हर माह और हर वर्ष निरन्तर चल रहा है। आजादी के बाद से अब तक माननीयों का ध्यान नहीं पहुंच सका है। हालांकि क्षेत्रीय लोगों ने सैकड़ों बार जिम्मेदारों को बताया, दिखाया और विद्यालय पहुचने के लिए एक पुल बनवाने की मांग की, लेकिन यहां एक पुल आज तक न बन सका।

जानलेवा रास्ते से जाते हैं बच्चे

जिले में बच्चों को स्कूल पहुंचने के लिए रोजाना खतरनाक जानलेवा रास्ते से होकर स्कूल जाना पड़ता है। दरअसल, स्कूल जाने के लिए और कोई रास्ता न होने के कारण बच्चों के जाने के लिए गांव वालों ने लकड़ी का पुल बनाया है। लेकिन यह किसी भी दशा में खतरों से खाली नहीं है। हालांकि, मरता क्या न करता की तर्ज पर मजबूरी के चलते लोगों के सामने और कोई उपाय नहीं होने से इसी लकड़ी के पुल से गुजरने की चुनौती है। लेकिन इसके बावजूद करीब सात दशकों से तीस हजार की आबादी के लिए यह जुगाड़ू पुल ही आवागमन का एकमात्र साधन है।

नहर पार करना मजबूरी

जिले के भदैंया विकास क्षेत्र अंतर्गत पाल्हनपुर और नहरपुर गांव के बीच से सिंचाई खंड अंतर्गत रामगंज रजबहा गुजरता है। ज्यादातर विद्यालय नहर के दक्षिणी-उत्तरी छोर पर हैं। यहां तक की हनुमानगंज और कंधईपुर को जोड़ने वाला मुख्य संपर्क मार्ग भी इसी छोर से होकर निकला है। इसके लिए दक्षिणी छोर पर बसे गावों से लोगों को रोजमर्रा के कामकाज निपटाने के लिए नहर पार करना मजबूरी है।


गांव वालों ने बना लिया लकड़ी का पुल

गांव वालों और स्कूली बच्चों को गांव, शहर और स्कूल जाने के लिए चाहे वह प्राथमिक विद्यालय नरहरपुर, प्राथमिक विद्यालय पाल्हनपुर, प्राथमिक विद्यालय पूरेकिरता, जंजीरादास शंभूनाथ सिंह इंटर कॉलेज एवं कई अन्य निजी कॉलेजों और स्कूलों तक जाने के लिए लोगों को इसी लकड़ी के जुगाड़ू पुल से ही होकर गुजरना पड़ता है और उसके लिए करीब एक किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता था। लोगों ने प्रशासन और स्थानीय प्रतिनिधियों से बीच में एक अदद पुल बनवाने की मांग कई बार रखी। यह मांग दशकों से की जाती रही है। इसके बावजूद जब शासन और प्रशासन ने ग्रामीणों की मजबूरी को नजरंदाज किया तो ग्रामीणों ने जुगाड़ को ही रास्ता बना लिया। बांस, बल्ली रखकर पाल्हनपुर और नरहरपुर गांव में आने-जाने के लिए जुगाड़ू पुल तैयार किया कर लिया। बता दें कि इसी जानलेवा पुल से होकर करीब 30 हजार की आबादी प्रतिदिन गुजरती है। इसकी वजह से सबसे ज्यादा परेशानी स्कूली बच्चों और बुजुर्गों को उठानी पड़ती हैं। अब यह पुल काफी जर्जर हो चुका है। इस जानलेवा लकड़ी के पुल से जब भी इससे कोई गुजरता है तो यह लकड़ी का पुल हिलने लगता है।

अब तक तीन लोगों की नहर से गिरकर हो चुकी है मौत

सत्यदेव पांडेय का कहना है कि कई बार विधायकों और प्रशासनिक अधिकारियों को नहर पर पुल बनवाने के लिए शिकायती पत्र दिया गया लेकिन आज तक पुल नहीं बन सका। लोगों को अपने खेत में जाने के लिए मजबूरन इसी लकड़ी के पुल का सहारा लेना पड़ता है। प्रधान प्रतिनिधि हरिहर सिंह ने बताया कि लकड़ी के पुल से आवागमन हमारी मजबूरी है। हालांकि, यह लकड़ी का जर्जर हालत में मौजूद पुल हमेशा खतरे को दावत देता है। अभी तक तीन लोगों की पुल से गिरकर मौत हो चुकी है।