scriptउपेक्षा के चलते दम तोड़ रहा सुलतानपुर का प्रसिद्ध बाध उद्योग, सरकारी संरक्षण के अभाव में सिमट रहा यह कुटीर उद्योग | Sultanpur badh udyog reality check | Patrika News

उपेक्षा के चलते दम तोड़ रहा सुलतानपुर का प्रसिद्ध बाध उद्योग, सरकारी संरक्षण के अभाव में सिमट रहा यह कुटीर उद्योग

locationसुल्तानपुरPublished: Aug 04, 2019 03:46:27 pm

Submitted by:

Hariom Dwivedi

– आधुनिकता के बहाव में भुखमरी की कगार पर पहुंच गए बाध बनाने वाले निषाद समुदाय के लोग- भाजपा सांसद वरुण गांधी ने बाध उद्योग को बढ़ावा देने का किया था वादा, अब मेनका गांधी से उम्मीदें

Sultanpur badh udyog

उपेक्षा के चलते दम तोड़ रहा सुलतानपुर का प्रसिद्ध बाध उद्योग, सरकारी संरक्षण के अभाव में सिमट रहा यह कुटीर उद्योग

पत्रिका एक्सक्लूसिव
राम सुमिरन मिश्र
सुलतानपुर. जनपद में बाध निर्माण गोमती नदी के दोनों तटों पर बसने वाले लगभग 400 पुरवों के लगभग 20 हजार परिवारों का मुख्य पेशा है। इसका वार्षिक कारोबार लगभग 03 करोड़ रुपये का है। यहां का बाध यूपी के विभिन्न शहरों के साथ-साथ दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान व मध्य प्रदेश तक जाता है। इस व्यवसाय से निषाद जाति के लोग बड़ी संख्या में जुड़े हैं, जो लंबे समय से अपने परिवार का भरण पोषण नदियों-नालों के किनारे पैदा होने वाली घास, कासा, सरपत, भरूही आदि से रस्सी बनाकर करते आ रहे हैं। चुनाव के वक्त जन प्रतिनिधियों द्वारा इनकी समस्याओं पर विचार करने की बात कही जाती है, लेकिन वोटिंग के बाद इनकी ओर कोई ध्यान नहीं देता। यूपी में बाध निर्माण का कार्य सुलतानपुर के अलावा प्रतापगढ़, इलाहाबाद, रायबरेली और उन्नाव आदि जनपदों में होता है। सुलतानपुर में साल भर बाध निर्माण का काम होता है, जबकि अन्य जिलों में दिसम्बर से जून माह के बीच ही यह काम होता है।
सरकारी संरक्षण के अभाव में जनपद का दूसरा सबसे बड़ा कुटीर उद्योग बाध निर्माण सिमटता जा रहा है। कुटीर उद्योगों के विकास का दावा करने वाली केंद्र व राज्य की सरकार इस व्यवसाय से जुड़े लोगों की सुध नहीं ले रही है, नतीजन इससे जुड़े कारीगर भुखमरी की कगार पर हैं। दिन-रात मेहनत के बावजूद इनके लिए परिवार का पेट पालना मुश्किल हो रहा है, वहीं बिचौलिये मालामाल हो रहे हैं। इस धंधे से जुड़े निषाद परिवारों के बच्चे मूलभूत सुविधाओं से भी महरूम हैं। उन्हें शिक्षा के साथ पीने का साफ पानी भी मुहैया नहीं हो पा रहा है। बाध व्यवसाय से जुटे लोगों ने कई बार शहर से बाहर बाधमंडी बनाने की मांग की, पर इस तरफ शासन प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया।
यह भी पढ़ें

पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट को जिम्मेदार ही लगा रहे पलीता, सामने आ रहा बड़ा घोटाला

सुलतानपुर से वर्ष 2014 में चुनाव लड़ने आये पूर्व सांसद वरुण गांधी ने बाध उद्योग को बढ़ावा देने और बाध उद्योग की पहचान देश भर में कराने एवं बाध कारीगरों को बाध मंडी बनवाने का भरोसा दिया था, लेकिन 5 साल बीत जाने के बाद भी बाधमंडी नहीं बन सकी। अलबत्ता सांसद वरुण गांधी ने बाध रखने के लिए गोदाम बनवा दिया। अब वह गोदाम अनुपयोगी एवं निष्प्रयोज्य है, क्योंकि बाद बाध विक्रेताओं को बैठने की जगह नहीं है।
लाभ ले रहे आढ़तिये
बाध कारीगर बड़ी मेहनत से तो बाध तैयार करते हैं, लेकिन उसे बेचने में और इन्हें और भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। साप्ताहिक बाजार मंगलवार व शनिवार को शहर में लगती है। उस दिन पूरे जिले भर से बाध रिक्शे व वाहनों पर लादकर शहर की मंडी में लाए जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्र की बाजारों में भी व्यवसायी इसकी खरीद-फरोख्त करते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा लाभ आढ़तियों को होता है। इसे बनाने वाले बाध मंडी में आढ़तियों के हाथ बेचने को मजबूर होते हैं। यही कारण है कि करीब 70 रुपये किलो की दर से यहां बिकने वाला बाध 50 रुपये में खरीदकर आढ़तिये पड़ोस के प्रांतों में ज्यादा दामों में बेचते हैं।
यह भी पढ़ें

Supplementary Budget 2019-20 : योगी सरकार ने पेश किया तीसरा अनुपूरक बजट, जानें- क्या है खास

Sultanpur
बाध निर्माण प्रक्रिया
बाध कारीगर जंगलों से कच्चा माल कांसा, सरपत व भरूही काटकर लाते हैं। पत्तियों को डंठलों से अलग कर थोड़ा सुखाते हैं। सूख जाने के बाद छोटी पोटली बांध कर लकड़ी की मुंगरी से पिटाई की जाती है। रेशा बन जाने के बाद पानी में भिगोकर हाथ से बरना प्रारम्भ किया जाता है। प्रायः सुबह शाम एक महिला या बच्चे दो बाध बर पाते हैं। जब 5-6 बाध यानी 2-3 किलो हो जाता है तो फिर पानी में भिगोकर चर्खी के सहारे जिसमें एक महिला चर्खी चलाती है, दूसरा बाध का छोर पकड़ता है, ऐठन दिया जाता है। सूख जाने के बाद पेड़ की डाली पर माज कर बाध को चिकना बनाया जाता है। तत्पश्चात बाजार की मांग के अनुसार पिडी या लच्छी बनाई जाती है। बाध कारीगर गांव के करीबी बाजारों में बिक्री के लिए जाते हैं। जहां पर कुछ गांव के लोग चारपाई बुनने के लिए खरीदते हैं। शेष गंवई व्यापारी इनकी गरीबी व मजबूरी का लाभ लेकर मनमाने भाव पर खरीदते हैं। घर का खर्च चलाने के लिए कारीगर बाध को औने-पौने दामों में बेचने को मजबूर हो जाते हैं।
कहां-कहां बनता है बाध
सुलतानपुर जिले के हेमनापुर, बरासिन, रामपुर, हलियापुर, कांपा, नौगवांतीर, मिठनेपुर, भंडरा, चंदौर, अगई, मुडुुआ सड़ाव, चंद्रकला, नीरसहिया, कटावां, महमूदपुर, मऊघड़वा, वलीपुर, आमकोल, अंगनाकोल, इमिलिया, कबरी, चुनहा, टेढुई, ओदरा, सैदपुर, टांटियानगर, मोलनापुर, भोएं, कठार, सिरवारा, बहाउद्दीनपुर, सुरौली, बेलहरी, वजूपुर, बरगदवा, करोमी, बभनगवां आदि दर्जनों गांवों में यह व्यवसाय वर्षो से फल-फूल रहा है।
यह भी पढ़ें

सुलतानपुर में हेलिकॉप्टर से गिराये जाएंगे 10 लाख सीड बम, मिलेगी प्रदूषण से मुक्ति


अब मेनका गांधी से उम्मीदें
निषादों के नेता एवं मोस्ट कल्याण संस्थान के निदेशक श्यामलाल निषाद ने कहा कि आजादी के बाद से ही सभी पार्टियों के नेताओं ने निषादों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया है। सभी ने बाधमंडी बनवाने का वादा किया, लेकिन बनवाया किसी ने नहीं। अब सांसद एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी से अपेक्षा है कि देर-सवेर वह निषादों की सुध लेंगी। क्योंकि, लोकसभा क्षेत्र में एक लाख से अधिक मतदाता की संख्या वाले निषादों ने इस बार के लोकसभा चुनाव में मेनका गांधी को ही वोट किया था।
देखें वीडियो…

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो