
New life given to the patient by operating the main vein of the throat
सूरत।भागल क्षेत्र निवासी एक युवक के साथ मारपीट के दौरान चाकू से गले की मुख्य नस कट गई थी, जिसे न्यू सिविल अस्पताल के इएनटी अस्पताल के चिकित्सकों ने ऑपरेशन करके नया जीवन दिया है। चिकित्सकों के मुताबिक यह नस दिमाग से हृदय तक खून को लेकर जाती है। इस नस में चोट लगने के बाद मरीज का ऑपरेशन कर जान बचाना काफी मुश्किल होता है। न्यू सिविल अस्पताल से मिली जानकारी के अनुसार भागल कांसड़ीवाड़ निवासी रुषी विपिन पोलाई (२५) किराना की दुकान में नौकरी करता है। पिछले सप्ताह दोस्तों के साथ हुए झगड़े में उसके गले की नस कट गई थी।
उसके दोस्तों ने छाती, पेट और गले पर चाकू से अनेक घाव कर दिए थे। उसे गंभीर हालत में न्यू सिविल अस्पताल के ट्रोमा सेंटर लाया गया। जहां इएनटी विभाग के चिकित्सकों ने गले से होकर गुजरने वाली मुख्य नस का सफल ऑपरेशन कर मरीज को नई जिंदगी दी है। इएनटी विभाग के साथ सर्जरी विभाग के चिकित्सकों को भी ऑपरेशन में साथ में रखा गया था। चिकित्सकों ने बताया कि बहुत कम ऐसे ऑपरेशन सफल हो पाते हैं। गले में इतनी गहराई तक चोट लगने के बाद मरीज को जिंदा बचाना काफी मुश्किल होता है। कुछ केस में ही मरीज बच पाते हंै। यह नस दिमाग से रक्त को हृदय तक ले जाती है।
कानों से ही मनुष्य के हृदय में सीधे प्रवेश करते हैं परमात्मा
पथमेड़ा गोधाम महातीर्थ, सूरत इकाई की ओर से नवरात्र पर्व के उपलक्ष में आयोजित श्रीसुरभि शक्ति आराधना महोत्सव के दूसरे दिन गुरुवार को दिव्य अनुष्ठान की शुरुआत सुबह वेदज्ञ ब्राह्मणों द्वारा यज्ञधेनु की पूजा-अर्चना से की गई। इसके बाद दोपहर में श्रीमद्देवी भागवत कथा का श्रवण लाभ श्रद्धालुओं को त्र्यम्बकेश्वर चैतन्य महाराज के मुखारविंद से मिला। महाराज ने बताया कि कानों से मनुष्य के हृदय में परमात्मा प्रवेश करते हैं।
परंतु वह मानव अभागा है जो कान वाला होकर भी कथा श्रवण का लाभ नहीं ले पाता। मानव शरीर का आधार कान है। नवधा भक्ति में श्रवण का विशेष महत्व है। महाराज ने गुरु-शिष्य की महिमा में बताया कि जिस प्रकार प्रत्येक काष्ठ में निराकार अग्नि होती है, उसी प्रकार प्रत्येक प्राणी में सुषुप्त ज्ञान विराजमान है। प्रभु की कृपा से गुरु उस ज्ञान को जगा देता है। गुरु की आज्ञा का पालन करना सबसे बड़ी सेवा है। कानों पर शास्त्रों की दिव्यता का पहरा लगा दो नहीं तो वह सुनना पड़ेगा जो कोई भी सुनना नहीं चाहता।
पूरे समर्पण के साथ गो सेवा, प्रभु सेवा, जनसेवा में लग जाना की मानव जीवन की सार्थकता है।कथा के दौरान मौजूद रहे संत कृपाराम महाराज ने भी आशीर्वचन में बताया कि शक्ति के पास शक्ति बनकर नहीं, बल्कि समर्पित होकर जाना चाहिए। भवसागर से तरने के लिए स्वयं को हल्का बनाना चाहिए। कथा के दौरान कथा मनोरथी गजानंद कंसल समेत अन्य गोभक्त बड़ी संख्या में मौजूद थे।
Published on:
25 Oct 2018 12:12 am
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