6 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

वापी के संजाण में 1300 वर्ष पुराना आम का पेड़ बना अजूबा

चालतो आंबो : कई मीटर दूर पहुंच गया है आम का पेड़ - 25 वर्षों में ही 10 फीट दूर तक पहुंचा, ढाई सौ साल में 200 मीटर चलने का लगा है सरकारी बोर्ड - कई विशेषताओं के चलते 2011 में हैरिटेज वृक्ष घोषित किया - लाल रंग के लगते हैं आम

2 min read
Google source verification

सूरत

image

Pradeep Joshi

Apr 11, 2023

वापी के संजाण में 1300 वर्ष पुराना आम का पेड़ बना अजूबा

वापी के संजाण में 1300 वर्ष पुराना आम का पेड़ बना अजूबा

राजेश यादव. वापी. राज्य के अंतिम छोर पर बसा वलसाड़ जिला आम की वाडिय़ों का प्रदेश कहा जाता है। यहां हापुस और केसर की विभिन्न प्रजातियां पाई जाती हैं, जो यहां से विश्वभर में भेजी जाती है। वलसाड़ के संजाण में आम का एक पेड़ वर्षों से अजूबा बना हुआ है। चालतो आंबा (चलने वाला आम) के नाम से मशहूर इस पेड़ की खासियत यह है कि यह अपने मूल स्थान से कई मीटर दूर तक खिसक चुका है। कई विशेषताओं को देखते हुए इस पेड़ को 2011 में हैरिटेज वृक्ष घोषित किया गया था। वनीकरण विभाग द्वारा सुबह, शाम इसका निरीक्षण भी किया जाता है। 1200 साल से पुराना होने की चर्चा : क्षेत्र के बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि आम का यह पेड़ 1200 साल से ज्यादा पुराना है। वे दावा करते हैं कि शताब्दियों से यह मूल स्थान से दूर खिसक रहा है। वर्तमान में इस पेड़ के मालिक मोहम्मद ओसेफ वली मियां अच्छू ने बताया कि उनके जन्म के पहले से यह पेड़ वाड़ी में है। अपने पिता वली मियां अहमद से भी सुना था कि यह सदियों से आगे बढ़ रहा है। चर्चा है कि अभी तक यह पेड़ अपने मूल स्थान से करीब तीन किमी तक आगे बढ़ चुका है। वन विभाग ने भी माना है अजूबा : पेड़ के पास सामाजिक वनीकरण विभाग ने एक बोर्ड लगाकर इसके हेरिटेज होने की जानकारी देते हुए इसे करीब 1300 साल पुराना बताया है। लिखा है कि करीब ढाई सौ साल में आम का पेड़ दो सौ मीटर तक चला है और बीते 20 से 25 वर्ष में ही तीन-चार मीटर तक पूर्व दिशा में बढ़ता गया है। पकने पर आम लाल रंग के हो जाते हैं, जो तीन-चार दिन में खराब भी हो जाते हैं। सामाजिक वनीकरण विभाग ने इस पर शोध भी किया था, लेकिन कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाया। box 0 ऐसे चलता है पेड़ : सामान्यत: पेड़ ऊपर की ओर बढ़ता है। परंतु यह पेड़ ऊपर के साथ जमीन के समानांतर भी बढ़ता है। टहनियां जमीन से कुछ ऊपर उठकर तिरछी दिशा में बढ़ती है। धीरे-धीरे ये जमीन के अंदर धंसती हैं और पेड़ बन जाती है। इसके बाद इसमें आम लगते हैं और पुराने पेड़ की टहनी सूखती जाती है। आदिवासी इसकी पूजा करते हैं। स्थानीय विनोद माछी ने बताया कि कई पीढ़ियों से इसके बारे में सुनते आ रहे हैं। लोगों में यह श्रद्धा का केन्द्र है। कोई भी इसे नुकसान नहीं पहुंचाता। वाड़ी मालिक मोहम्मद ओसेफ के अनुसार स्थानीय लोग आम के पत्ते को डायबिटीज तथा पेड़ के छिलके का उपयोग पेटदर्द में करते हैं। दूर-दूर से लोग इसे देखने आते हैं।