
सूरत. जगह- सूरत के जहांगीरपुरा में आसाराम का आश्रम, तारीख- 19 मार्च, 2011, मौका- आश्रम में मनाया जाने वाला 'दिव्य होली महोत्सव'। लम्बे प्लेटफॉर्मनुमा मंच पर आसाराम रंग-बिरंगे कपड़ों में कभी अपने भक्तों की भारी भीड़ पर बड़े पाइप से रंगों की बौछार करता है, कभी मन मुदित मुद्रा में टहलता है, कभी नाचने लगता है.. भक्त रह-रहकर 'होली है' के साथ-साथ 'जय गुरुदेव' की टेर लगाते हैं। पृष्ठभूमि में एक भजन बज रहा है- 'होली जली तो क्या जली, पापिन अविद्या नहीं जली, आशा जली नहीं राक्षसी, तृष्णा पिशाची नहीं जली/ झुलसा न मुख आसक्ति का, नहीं भस्म ईष्र्या की हुई, ममता न झोंकी अग्नि में, नहीं वासना फूंकी गई..।' क्या यह भजन आने वाले समय में एक तथाकथित संत की कथनी और करनी को रेखांकित करने वाला था? इस 'दिव्य होली महोत्सव' में झूम रहे भक्तों को क्या पता था कि ढाई साल बाद 'करनी' का चक्र ऐसा घूमेगा कि उनका गुरु सलाखों के पीछे होगा और करीब साढ़े सात साल बाद उसे उम्रकैद की सजा सुना दी जाएगी।
सूरत में आसाराम के आश्रम में कभी आयोजनों की खासी चहल-पहल रहा करती थी। हर साल होली पर होने वाले महोत्सव का इस संत के हजारों भक्तों को इंतजार रहता था, क्योंकि इस मौके पर वह अपने गुरु को नजदीक से देख-सुन सकते थे। यह सिलसिला 31 अगस्त, 2013 को बलात्कार के आरोप में आसाराम की गिरफ्तारी के बाद से बंद है और बुधवार को जोधपुर की अदालत के फैसले के बाद इस सिलसिले के फिर कभी शुरू होने पर पूर्ण विराम लग गया है। कभी इस आश्रम में आसाराम के सत्संग होते थे, जिनमें भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती थी। अपने गुरु के दर्शन के लिए उन्हें कई घंटे कतार में खड़ा रहना पड़ता था। वैसी चहल-पहल आसाराम की गिरफ्तारी के बाद यहां नजर नहीं आई। बुधवार को बलात्कार के मामले में दोषी ठहराए जाने के अदालती फैसले के बाद आश्रम में सन्नाटा पसरा रहा। इक्का-दुक्का भक्त अंदर-बाहर होते रहे, लेकिन वह मीडिया से कतराते रहे। कुछ सूत्रों ने बताया कि आसाराम के भक्तों की आस 25 अप्रेल के अदालती फैसले पर टिकी थी। वह अपने गुरु की रिहाई के लिए प्रार्थना कर रहे थे, लेकिन बुधवार को अदालत के फैसले के बाद उनकी आशा निराशा में बदल गई।
आश्रम पर हुआ था 17 करोड़ का जुर्माना
पहले आसाराम और बाद में उसके बेटे नारायण सांई की गिरफ्तारी के बाद सूरत का आश्रम विवादों के घेरे में आ गया था। सन् 2015 में जिला प्रशासन ने नाजायज तरीके से जमीन पर कब्जे का आरोप लगाते हुए आश्रम पर 17 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया था। प्रशासन ने आश्रम को नोटिस भेजकर कहा था कि उसने 14 साल से सरकारी जमीन पर कब्जा कर रखा है। आश्रम का कथित तौर पर 34 हजार 400 मीटर जमीन पर कब्जा था। इस जमीन पर संत कुटीर, गौशाला, औषधालय और मंदिर का निर्माण कर लिया गया था। प्रशासन की कड़ी कार्रवाई के बाद इस अतिक्रमण को हटा लिया गया।
इसी आश्रम में बनी थी गवाहों पर हमले की साजिश
आसाराम और नारायण सांई की गिरफ्तारी के बाद इनके मामलों से जुड़े कई गवाहों पर हमले हुए और कुछ की हत्या तक कर दी गई। गवाहों पर हमलों के मामले की जांच में जुटी अहमदाबाद पुलिस ने कुछ साल पहले एक दम्पती को गिरफ्तार कर खुलासा किया था कि गवाहों पर हमले की साजिश आसाराम के साधकों ने सूरत के आश्रम में रची थी। पुलिस के मुताबिक 'मिशन गवाह' को लेकर जहांगीरपुरा के आश्रम में करीब 15 साधकों की बैठक हुई थी, जिसमें यह तय किया गया कि आसाराम और नारायण सांई के खिलाफ गवाही देने वालों को सबक सिखाया जाए। इसी बैठक में शामिल एक दम्पती को इस खास मिशन के लिए चुना गया। इनके नाम बसवराज उर्फ वासू और सेजल बताए गए। पुलिस के मुताबिक सुनियोजित साजिश के तहत सूरत में वासू और सेजल को किराए पर मकान दिलवाया गया। उन्हें एक मोबाइल फोन भी मुहैया कराया गया, जिससे यह जोड़ा गवाहों को धमकी भरे फोन करता था। क्योंकि ज्यादातर गवाह खुद कभी आसाराम के साधक या साधिका रह चुके थे, इसलिए वह भी इससे बेखबर थे कि यह फोन उनके 'गुरु' के भक्त ही कर रहे हैं।
सूरत का कार्यक्रम बना था गिरफ्तारी की वजह
आसाराम के भक्तों ने 2013 में कृष्णजन्माष्टमी पर 28 अगस्त को सूरत के आश्रम में बड़ा आयोजन किया था। यह कार्यक्रम आसाराम का आखिरी कार्यक्रम साबित हुआ। इसमें उसने सीधे तौर पर कांग्रेस की तत्कालीन प्रमुख सोनिया गांधी पर निशाना साधते हुए अपने खिलाफ मामले को विदेशी ताकतों की साजिश बताया था। उसके बाद से ही माना जा रहा था कि यूपीए सरकार आसाराम पर शिकंजा कस सकती है। आसाराम के आश्रम में उनके सेवादारों की कड़ी सुरक्षा के बीच राजस्थान पत्रिका अकेला अखबार था, जिसकी पूरी टीम आश्रम में मौजूद रही और कार्यक्रम का कवरेज किया। जहांगीरपुरा आश्रम में हजारों साधकों के सामने प्रवचन के दौरान अपनी सफाई में उम्र का हवाला देते हुए आसाराम ने कहा था कि ७५ साल की उम्र में ऐसे आरोप लगाना सही नहीं है। उस घटना के तथ्यों का जिक्र करते हुए उसने कहा था कि घटना वाले दिन जोधपुर में वह अपने आश्रम में रात को ठहरा ही नहीं था। वह तो एक किसान परिवार के फार्म हाउस में रुका था। यदि डेढ़ घंटे तक वह पीडि़ता को प्रताडि़त करता तो उसकी आवाज वहां रह रहे किसान परिवार और उसके माता-पिता को क्यों नहीं सुनाई दी। इसी कार्यक्रम में कांग्रेस की तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी पर प्रत्यक्ष और परोक्ष निशाना साधते हुए आसाराम ने पूरे मामले को विदेशी ताकतों का षडयंत्र बताया था। प्रवचन के दौरान उसने कई बार पीडि़त लड़की का नाम लेते हुए कहा था कि वह तो निर्दोष है, उससे जबरन बुलवाया गया है। इसी कार्यक्रम में दिल्ली में साधिका नीलम दुबे के बयान और पोस्टर विवाद पर भी आसाराम ने बार-बार खेद जताते हुए कहा था कि यदि सेवक गलती करता है तो स्वामी भी जिम्मेदार है। भोपाल आश्रम के संचालक के निधन के कारण अगले दिन 29 अगस्त को कार्यक्रम बीच में छोड़कर आसाराम अचानक भोपाल रवाना हो गया था। इसके दो दिन बाद 31 अगस्त को पुलिस ने उसे इंदौर में गिरफ्तार कर लिया था।
बाहर पुलिस, अंदर हवन और जप
जोधपुर में बुधवार को आसाराम को आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के दौरान सूरत में पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था के बीच शांति रही। कहीं से किसी अप्रिय घटना की खबर नहीं है। आसाराम के जहांगीरपुरा क्षेत्र में तापी नदी के किनारे स्थित आश्रम में फैसले को लेकर सुबह ही पुसिल बल तैनात कर दिया गया था। जहांगीरपुरा थाना पुलिस के अलावा पुलिस मुख्यालय के कुछ हथियारधारी सुरक्षाकर्मियों को भी तैनात किया गया। पुलिस बल दिन भर तैनात रहा। सुबह आसाराम को दोषी करार दिए जाने और दोपहर उसे सजा सुनाए जाने के समय पुलिस विशेष तौर पर सतर्क रही, लेकिन कहीं कोई हलचल नहीं हुई। बुधवार को आश्रम पर श्रद्धालुओं की आवाजाही भी कम रही। पुलिस बल आश्रम के बाहर ही था। अंदर कोई पुलिसकर्मी नहीं था। आश्रम के गेट पर बैरिकेट लगाए गए थे। सूत्रों का कहना है कि जहांगीरपुरा आश्रम में बुधवार को हवन और जप का आयोजन किया गया। सुबह शुरू हुए कार्यक्रम में आश्रम में रह रहे लोगों और अनुयायियों ने हिस्सा लिया।
Published on:
26 Apr 2018 03:03 am
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