
Situated near the Ajmeri gate in Jaipur, the salt market
ब्रह्मांड में नौ ग्रहों के नवनिधि सिंद्धांत पर वास्तु और शिल्प के तहत सलीके से बसाए गुलाबी नगर जयपुर का शिलान्यास २९० साल पहले गंगापोल दरवाजे की जगह शुभ मुहूर्त में किया गया था। विद्वान जगन्नाथ सम्राट की अध्यक्षता में हुए शिलान्यास के पेटे आमेर खजाने से १०८४ रुपए खर्चा हुआ। स्थापना की खुशी में सम्राट को हथरोई गांव की आठ बीघा भूमि दे दी गई।
वास्तु व शिल्प के महाविज्ञानी पंडित विद्याधर चक्रवर्ती और मिस्त्री आनंद राम ने सृष्टि के नव निधि सिद्धांत के आधार पर चारों ओर नौ वर्ग मील परकोटा और नौ चौकडिय़ों में नगर बसाने का प्रारूप बनाया। प्रत्येक चौकड़ी १८ बीघा की और दुकानों की संख्या भी १६२ रखी गई। जिसका जोड़ भी नौ आता है। सडक़ों की चौड़ाई भी क्रमश: ५४ गज, २७ गज, १८ और नौ गज रखी गई। इन अंकों को जोडऩे पर नौ ही आता है। तीन प्रमुख देवियों में महाकाली, महालक्ष्मी और माता सरस्वती को तीन चौपड़ों पर विराजमान किया गया।
इसके तहत रामगंज चौपड़ को महाकाली का स्वरूप मान सुरक्षा के लिहाज से योद्धाओं को बसाया। बड़ी चौपड़ उर्फ माणक चौक पर महालक्ष्मी को स्थापित कर धनाढ्य वर्ग के व्यापारियों को बसाया। बाजार का नामकरण भी जौहरी बाजार किया गया। जयसिंह की पुत्री विचित्र कंवर ने माणकचौक खंदे में लक्ष्मीनारायण का भव्य मंदिर बनवाया। छोटी चौपड़ पर विराजी मां सरस्वती के उपासक विद्वानों और ब्राह्मणों को पुरानी बस्ती और ब्रह्मपुरी में बसाया गया।
सूर्य रथ के साथ घोड़ों की तर्ज पर सात दरवाजों का निर्माण हुआ। सातों दरवाजों में सुरक्षा के हिसाब से तांत्रिक प्रयोग के प्रतीक मारुति वीर और प्राचीरों में काल भैरव की स्थापना की गई। नगर नियोजन में वर्ग और वृत्त को महत्व दिया गया। सृष्टि के समय चक्र का द्योतक वृत्ताकार एवं पृथ्वी के मुताबिक दस लाइन दक्षिण से उत्तर एवं दस लाइन पूर्व से पश्चिम तक बनने वाली वर्गाकार आकृति के सिद्धांत को आमजन का निवास बनाने के लिए शुभ माना गया। चीनी नगरों में गोटाया व बगदाद की तरह वृत्ताकार सिद्धांत को जनता के निवास के लिए अति उत्तम माना जाता है।
चौकड़ी शरहद को पर्वत का प्रतीक मानकर सिटी पैलेस का निर्माण कराया गया। राजगुरु रत्नाकर पौण्ड्रिक, जगन्नाथ सम्राट, दीवान आनंद राम, कवि आत्माराम और विद्याधर चक्रवर्ती जैसे विद्वानों का नगर बसाने में विशेष योगदान रहा। जयपुर फाउंडेशन के सियाशरण लश्करी के मुताबिक १७२३ के बाद जय सिंह चार साल तक दिल्ली के जयसिंहपुरा, मथुरा और आमेर में रहे। १७२५ में दिल्ली के जयसिंहपुरा में जंतर मंतर बनाने के दौरान वे नया नगर बसाने के बारे में सोचने लगे थे।
उन्होंने अपने शिकार करने की जगह नाहरगढ़ के नीचे तालकटोरा के पास जयनिवास उद्यान और बादल महल बनवाया। नगर बसाने के लिए क्रे मलिन, तारम्बतोर, चीन के सियान, चांगांन जैसे नगरों के मानचित्रों का सहारा लिया गया। दीवान आनंद राम की १६ जुलाई १७२६ को दी गई रिपोर्ट के अनुसार दृव्यवती नदी से चांदपोल होते हुए पानी की नहर निकाली गई।
Published on:
19 Nov 2017 09:40 am
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