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shivpataleshvar temple in UP: इस मंदिर में अंतिम आस लगाए पहुंचते हैं गंभीर रोगी, भक्तों को सेहत पर दिखता है चमत्कारिक असर

Published: Jan 24, 2023 12:56:50 pm

Submitted by:

Sanjana Kumar

दरअसल यह मंदिर देशभर में इसीलिए जाना जाता है कि यहां आकर शिव जी को झाड़ू चढ़ाने भर से आपको गंभीर से गंभीर रोगों से मुक्ति मिल जाती है। हालांकि पत्रिका.कॉम इसकी पुष्टि नहीं करता है, लेकिन लोक मान्यताओं में प्रचलित हो चुकी इन चीजों से आपको अवगत जरूर कराता है।

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भगवान शिव को खुश करने के लिए उनके भक्त उन्हें धतुरा, बेल पत्र आदि अर्पित करते हैं उनके मंत्रों का जाप करते हैं। लेकिन यूपी के मुरादाबाद में एक ऐसा भी मंदिर है, जहां भगवान शिव को खुश करने के लिए दही, शहद, घी, धतूरा या बेल पत्र नहीं बल्कि झाड़ू चढ़ाई जाती है। चौंक गए न! दरअसल यह मंदिर देशभर में इसीलिए जाना जाता है कि यहां आकर शिव जी को झाड़ू चढ़ाने भर से आपको गंभीर से गंभीर रोगों से मुक्ति मिल जाती है। हालांकि पत्रिका.कॉम इसकी पुष्टि नहीं करता है, लेकिन लोक मान्यताओं में प्रचलित हो चुकी इन चीजों से आपको अवगत जरूर कराता है।

यहां है यह मंदिर
मुरादाबाद जिले में एक गांव है बीहजोई। इस बीहजोई गांव में ही भगवान शिव का ये नायाब मंदिर स्थित है। इस मंदिर का नाम है शिव पातालेश्वर मंदिर। इस मंदिर में भक्तसोना-चांदी नहीं, बल्कि अपने भोलेनाथ को झाड़ू चढ़ाते हैं। यहां मान्यता है कि झाड़ू चढ़ाने वाले भक्तों से शिव प्रसन्न होते हैं और अपने आशीर्वाद से त्वचा संबंधी गंभीर से गंभीर रोगों से छुटकारा मिल जाता है। भगवान शिव का यह मंदिर इसीलिए मशहूर भी है।

 

150 साल पुराना है मंदिर
मंदिर के पुजारी और सहायक बताते हैं कि यह मंदिर करीब 150 साल पुराना है। यहां प्राचीन समय से ही झाड़ू चढ़ाने की प्रथा परम्परा है। वहीं अपने रोगों से परेशान लोग दूर-दूर से यहां आते हैं और सेहत प्राप्त भी करते हैं।


कब से शुरू हुई झाड़ू चढ़ाने की परम्परा
असल में इस मंदिर में झाड़ू चढ़ाने के पीछे एक कथा प्रचलित है, जिसके मुताबिक इस गांव में भिखारीदास नाम का एक व्यापारी रहता था, जो बहुत धनी था। लेकिन उसे त्वचा संबंधी एक गंभीर रोग था। वह इस रोग का इलाज करवाने जा रहा था कि अचानक उसे प्यास लगी। वह भगवान के इस मंदिर में पानी पीने आया और तभी वह झाड़ू लगा रहे महंत से टकरा गया और उसके शरीर पर झाड़ू भी लग गई। लेकिन वह क्या देखता है कि झाडृ़ू शरीर से लगने के बाद बिना इलाज के ही उसका रोग धीरे-धीरे दूर हो गया। इससे खुश होकर सेठ ने महंत को अशरफियां देनी चाहीं, लेकिन महंत ने अशरफियां लेने से इनकार कर दिया। इसके बदले उसने सेठ से यहां मंदिर बनवाने की प्रार्थना की।

माना जाता है कि तभी से यहां झाड़ू चढ़ाने की बात कही जाने लगी। स्थानीय लोग भी मानते हैं कि जिसे त्वचा संबंधी रोग हों, वे यहां आकर भोलेनाथ को झाड़ू चढ़ाएं और उनसे अपने रोग ठीक होने की कामना करें, तों गंभीर से गंभीर त्वचा रोग भी धीरे-धीरे दूर हो जाते हैं। आपको बता दें कि यहां सावन के दिनों में प्रत्येक सोमवार को झाड़ू चढ़ाने वालों की लंबी-लंबी कतारें लगती हैं। लोग दूर-दराज से बड़ी उम्मीद और अंतिम आस के साथ यहां पहुंचते हैं।

https://youtu.be/ID4Hrn_EE9M

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