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जीवित शालिग्राम : क्या आप जानते हैं इस खास मंदिर के बारे में, जहां सैंकड़ों सालों से लगातार बढ़ रहा है पिंडी का आकार

वैशाख मास: भगवान विष्णु का चमत्कारिक मंदिर...

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miracle Temple of Shaligram in INDIA

वैशाख हिन्दू कैलेंडर का दूसरा माह है। यह सभी माह में सबसे उत्तम मास माना गया है। वैशाख मास को ब्रह्म देव ने भी सभी मासों में अच्छा बताया है। इस मास में भगवान विष्णु, बह्म देव और देवों के देव महादेव को प्रसन्न करना सबसे सरल है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वैशाख मास भगवान विष्णु को सबसे प्रिय है। वैशाख मास में भगवान विष्णु अति प्रसन्न होते हैं, इसलिए वैशाख मास में सूर्योदय से पूर्व स्नान करके भगवान विष्णु को जल अर्पित करना चाहिए। वहीं दूसरी ओर वैशाख के सोमवार भी सावन व कार्तिक के सोमवार की तरह ही भगवान शिव की पूजा के लिए महत्वपूर्ण माने गए हैं।

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ऐसे में आज हम आपको भगवान विष्णु के एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं। जिसके बारे में बताया जाता है कि यहां रखी भगवान विष्णु की Shaligram Temple शालिग्राम रूपी पिंडी करीब 200 सालों से लगातार अपना आकार बड़ा रही है।

जानकारों के अनुसार हमारे देश के हर हिस्से में बड़ी संख्या में मंदिर हैं। इनमें से कई मंदिर पौराणिक कथा से जुड़े हुए भी हैं तो कई ऐसे हैं, जो दूसरी तरह से अनूठे होते हैं। ऐसा ही एक चमत्कारी मंदिर बिहार के चंपारण में भी है। इस मंदिर के संबंध में कहा जाता है कि यहां मौजूद शालिग्राम की पिंडी का आकार लगातार बढ़ रहा है।

पिंडी बनी पहेली: जानें पूरी कहानी
शालिग्राम की पिंडी का बढ़ता आकार हर किसी के लिए पहेली बना हुआ है। ये पिंडी, पश्चिम चंपारण के बगहा पुलिस जिला स्थित पकीबावली मंदिर के गर्भगृह में है। मान्यता है कि 200 साल पहले नेपाल नरेश जंगबहादुर ने इसे भेंट किया था। तब इस शालिग्राम पिंडी का आकार मटर के दाने से कुछ बड़ा था।

इसे लाकर यहां बावड़ी किनारे मंदिर के गर्भगृह में रख दिया गया। इस मटर के दाने जितनी छोटी इस पिंडी का आकार अब नारियल से दो गुना बड़ा हो गया है। और यह अब भी लगातार बढ़ रहा है।

यहां के लोग इसे जीवित शालिग्राम मानते हैं। यह मंदिर एक बावड़ी के किनारे पर है, वहीं यहां कई अन्य मंदिर भी हैं। ये सभी मंदिर काफी पुराने हो चुके हैं। जबकि शालिग्राम की पिंडी के चमत्कार की इस घटना के दर्शन के लिए यहां दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं।

ये होता है शालिग्राम...
शालिग्राम दुर्लभ किस्म के चिकने और आकार में बहुत छोटे पत्थर होते हैं। ये शंख की तरह चमकीले होते हैं। शालिग्राम को भगवान विष्णु का रूप माना जाता है। वैष्णव इनकी पूजा करते हैं। ये रंग में भूरे, सफेद या फिर नीले हो सकते हैं। आमतौर पर शालिग्राम नेपाल के काली गंडकी नदी के तट पर पाए जाते हैं। कहते हैं कि एक पूर्ण शालिग्राम में भगवाण विष्णु के चक्र की आकृति अंकित होती है।

200 साल पहले ऐसे भारत आईं पिंडी...
बताया जाता है कि करीब 200 साल पहले तत्कालीन नेपाल नरेश जंगबहादुर अंग्रेजी सरकार के आदेश पर किसी जागीरदार को गिरफ्तार करने निकले थे। तब उन्होंने बगहा पुलिस जिला में ही अपना कैंप लगाया था।

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उस वक्त यहां एक हलवाई नेपाल नरेश के ठहरने की सूचना पाकर, थाल में मिठाई लेकर उनके पास पहुंचा। राजा हलवाई की मेहमानवाजी से काफी खुश हुए और उसे नेपाल आने का न्यौता दे दिया। बाद में हलवाई के नेपाल पहुंचने पर उसका भव्य स्वागत हुआ।

उसी दौरान वहां के राजपुरोहित ने उसे एक छोटा सा 'शालिग्राम' भेंट किया था। हलवाई ने शालिग्राम लाकर एक विशाल मंदिर बनवाया और उसमें उन्हें स्थापित कर दिया।

अब इन 200 साल में शालिग्राम की पिंडी का आकार कई गुना बढ़ गया। जब स्थापना हुई थी, तब मटर के दाने से कुछ बड़े थे।

शालिग्राम कथा...
पौराणिक कथानुसार एक बार दैत्यराज जालंधर के साथ भगवान विष्णु को युद्ध करना पड़ा। काफी दिन तक चले संघर्ष में भगवान के सभी प्रयासों के बाद भी जालंधर परास्त नहीं हुआ।

अपनी इस विफलता पर श्री हरि ने विचार किया कि यह दैत्य आखिर मारा क्यों नहीं जा रहा है। तब पता चला की दैत्यराज की रूपवती पत्नी वृंदा का तप-बल ही उसकी मृत्यु में अवरोधक बना हुआ है। जब तक उसके तप-बल का क्षय नहीं होगा तब तक राक्षस को परास्त नहीं किया जा सकता।

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इस कारण भगवान ने जालंधर का रूप धारण किया व तपस्विनी वृंदा की तपस्या के साथ ही उसके सतीत्व को भी भंग कर दिया। इस कार्य में प्रभु ने छल व कपट दोनों का प्रयोग किया। इसके बाद हुए युद्ध में उन्होंने जालंधर का वध कर युद्ध में विजय पाई।

पर जब वृंदा को भगवान के छलपूर्वक अपने तप व सतीत्व को समाप्त करने का पता चला तो वह अत्यंत क्रोधित हुई व श्रीहरि को श्राप दिया कि तुम पत्थर के हो जाओ। इस श्राप को प्रभु ने स्वीकार किया पर साथ ही उनके मन में वृंदा के प्रति अनुराग उत्पन्न हो गया।

तब उन्होंने उससे कहा कि वृंदा तुम वृक्ष बन कर मुझे छाया प्रदान करना। वही वृंदा तुलसी रूप में पृथ्वी पर उत्पन्न हुई व भगवान शालिग्राम बने। इस प्रकार कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी-शालिग्राम का प्रादुर्भाव हुआ।