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364 दिन बाद खुलेगा इस मंदिर का द्वार, कर लें दर्शन वरना फिर करना होगा 364 दिन इंतजार

यहां है देश की एकमात्र अद्भुत प्रतिमा

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भोपाल

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Tanvi Sharma

Jul 31, 2019

nagchandreshwar mandir

हिंदू धर्म में नागों की पूजा सदियों से चली आ रही परंपरा है। नागों को भगवान का आभूषण भी माना जाता है। इसके साथ ही साल में एक बार नागपंचमी ( nag panchami 2019) के दिन नागों की पूजा की जाती है। नागदेवता की पूजा करने के लोग मंदिरों में जाते हैं। हमारे देश में कई नाग देवता के मंदिर हैं, उन सभी मंदिरों में से एक सबसे प्राचीन व प्रमुख मंदिर मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में है।

यह मंदिर नागचंद्रेश्वर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। खास बात तो यह है की यह मंदिर प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर ( mahakal mandir ) की तीसरी मंजिल पर स्थापित है। नागचंद्रेश्वर मंदिर ( Nagchandreshwar mandir ) साल में सिर्फ एक दिन श्रावण शुक्ल पंचमी यानी नागपंचमी के दिन खुलता है। इस बार नागपंचमी 5 अगस्त को पड़ रही है। इसी दिन मंदिर के कपाट खुलेंगे।

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mahakaleshwar mandir ) के शिखर पर विराजमान हैं नागचंद्रेश्वर
[typography_font:14pt;" >महाकालेश्वर मंदिर के शिखर पर स्थित श्रीनागचंद्रेश्वर मंदिर के पट नागपंचमी के दिन साल में एक बार 24 घंटे के लिए खुलते हैं। इस साल नागपंचमी 5 अगस्त, सोमवार के दिन पड़ रही है, वहीं मंदिर के कपाट रविवार की रात को 12 बजे खोल दिए जाएंगे। मान्यताओं के अनुसार यहां मंदिर में नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं।

देशभर की एकमात्र अद्भुत प्रतिमा

नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है। पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं।

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नाग चंद्रेश्वर मंदिर की यह है पौराणिक मान्यता

सर्पराज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सा‍‍‍न्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया. लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो अत: वर्षों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं। शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है। इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है।