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अतिशय क्षेत्र पपौरा : प्रतिमाओं के दर्शन मात्र से ही हो जाते है पाप दूर

अतिशय क्षेत्र पपौरा एक ऐसा पुरातन तीर्थ क्षेत्र है,जहां एक से बढकर एक जैन मंदिर समतल भूमि पर स्थित है। उन मंदिरों में हजारों वर्ष प्ररानी प्रतिमाएं वि

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Pappura is an ancient pilgrimage area

Pappura is an ancient pilgrimage area

अखिलेश लोधी.टीकमगढ़.अतिशय क्षेत्र पपौरा एक ऐसा पुरातन तीर्थ क्षेत्र है,जहां एक से बढकर एक जैन मंदिर समतल भूमि पर स्थित है। उन मंदिरों में हजारों वर्ष प्ररानी प्रतिमाएं विराजमान है। ऐसी प्रतिमाओं के दर्शन मात्र से पाप दूर हो जाते है। ऐसे पावन मनोरम बुंदेल खण्ड के हदय स्थल पपौरा में मधन मपस्वी महान योगी राष्ट्रसंत आचार्य विद्यासागर महाराज 19 दिनों से पपौरा की भूमि को पुण्याजित कर रहे है। ऐसे महान संत के दर्शन करने के लिए हजारों लोग पपौरा आ रहे है। बुधवार की सुबह सूर्य की किरणे पडऩे से पहले 5.30 बजे आचार्य भक्ति हुई। लोगों ने गुरूवर की आराधना का पुण्य लिया। 8.30 बजे आचार्यश्री के दर्शन करने के लिए हजारों भक्तों पहुंचे। इसके साथ ही लोगों ने आचार्यश्री को शास्त्र भेंट किए। आचार्यश्री ने मंगल पेशना में कहा कि स्मृति किसी-किसी को जल्दी होती है। किसी को बहुत देर में होती है। स्मृति वर्तमान में ही होती है। यह स्मृति वर्तमान को भुला देती और अतीत को लाकर रखती है। कम समय में किसी प्रकार के प्रश्नों का उत्तर देना बहुत कठिन होता है।प्रसन्नता संबंधी जिसे हम चाहते है। वह बड़ी कठिनाई से प्राप्त होती है। सरलता आ जाए तो हम स्मृति को भूल जाते है। आचार्य श्री ने बताया कि काल ऐसा पदार्थ होता है,जिसके साथ हम अपने अतीत को जोड़ लेते है।

लेकिन काल जुडता नहीं है। इसके साथ ही आचार्यश्री ने कहा कि हमारा मन वस में नहीं है। हम दूसरों को अपने वस में लाना चाहते है। इससे अच्छा वह खुद अपने आप को वस में कर ले,इससे उसको किसी को अपने वस में करनी की जरूरत नहीं होगी। कार्यक्रम के दौरान हजारों लोगों ने आचार्यश्री के दर्शन किए। आज वह वज्र के समान कठोर होती जा रही है और काली खिलने के पूर्व ही कली को मसल देते है। अपने ही लाल को काल के गाल में दे देते हैं। जबकि जो भी जीव आया है वह अपना भाग्य लेकर आता है। जो परिवार इस पाप को करते हैं वास्तव में देखा जाए तो उस परिवार को प्रभु की पूजन करने का अधिकार नहीं जिन हाथों से ऐसा कुकृत्य किया है। वह हाथ प्रभु की पूजन और अहार देने के अधिकारी नहीं है। अपने बच्चों के प्रति करूणा भाव रखने को श्रेयस्कर बताते हुए आचार्य श्री ने कहा वर्तमान मे जैसी क्रियाए करोगे वैसे ही आपके भाव रहेंगे ।