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टोंक व जयपुर रियासत की सीमा पर बसा था बगड़ी

हमारी विरासत: बगड़ी का ऐतिहासिक किला

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टोंक व जयपुर रियासत की सीमा पर बसा था बगड़ी

टोंक व जयपुर रियासत की सीमा पर बसा था बगड़ी



टोंक . जिले से 33 किमी. दूर स्थित पीपलू तहसील से 5 किमी. पर स्थित ग्राम बगड़ी (विजयगढ़) कस्बे की पहाड़ी पर स्थित प्राचीन एवं ऐतिहासिक किला दुर्दशा का शिकार हो रहा है, जिसकी सार संभाल नहीं की गई तो वो दिन दूर नहीं तब पुरा वैभव की कहानी बया करने वाली इमारत (किला) भग्नावेश में बदल जाए। हालांकि हर वर्ष 18 अप्रेल को पुरात्तत्व विभाग पुरात्तत्व दिवस मनाता है। इसके बाद भी इसके पुरा वैभव को जिन्दा रखने की दिशा में कोई कारगर कदम नहीं उठाए गए है।
ऐतिहासिक दृष्टि से बगड़ी किले का निर्माण टोंक रियासत के प्रथम नवाब अमीर खां ने यहां की पहाड़ी पर दो सौ फीट उंचाई पर पांच बीघा क्षेत्रफल में इस गांव को तहसील मुख्यालय का दर्जा देते हुए क्षेत्रीय शासन व्यवस्था के नियंत्रण करने को लेकर करवाया था, जो किला बंगड़ी(कंगन) के आकार का गांव के बीचों बीच बना हुआ है, जिससे ही इस गांव का नाम बंगड़ी पड़ा था। जिसका अपभं्रश नाम बगड़ी हो गया। वही कुछ लोगों का यह भी कहना था कि यह गांव जयपुर व टोंक रियासत की सीमाओं पर होने से एक बार जयपुर नरेश व टोंक नवाब के बीच अपनी अपनी रियासत में इस गांव के शामिल होने को लेकर विवाद छिड़ गया। तब जयपुर नरेश ने इस गांव का नाम जैसे ही बगड़ी सुना तो कहा कि बगड़ी जयपुर की नहीं टोंक की है। तब से बगड़ी टोंक नवाब के अधीन होकर रह गई।
वास्तु दृष्टि से इस किले में आठ बुर्ज, आमकाश, मुशायरा, बेगम महल, सुरंगे बने हुए है, जहां पर रखी हुई तोपे विशेष उत्सवों, जश्न पार्टी या राजा महाराजाओं के आगमन के समय उनकी सेनाओं के झंड़े दूर से ही दिखने मौजूद गार्ड उनके सम्मान में छोड़ते थे। मुशायरा बुर्ज पर बैठकर नवाब ठंड़ी हवाओं का लुत्फ उठाते मुशायरा का शोक फरमाते थे। यहां से हुकुमत चलाने वाले क्षेत्र पर नजरा रखते थे। वक्त के थपेड़ों से यह सभी बुर्ज सार संभाल अभाव में जीर्णशीर्ण खस्ताहाल में हो गए। सुरंगे किले की घेराबंदी के समय बाहरी राजाओं के आक्रमण से बचने में उपयोग होती थी। कहते है कि यह सुरंगे दो किलोमीटर लम्बाई में थी। वर्तमान में एक सुरंग पूर्णतया मिट्टी के भरने से विलुप्त हो गई तथा शेष रही एक सुरंग भी सार संभाल अभाव में पुरा वैभव खोती दिखी है।
संरक्षण की दरकार
किले की दुर्दशा से व्यथित बगड़ी निवासी सेवानिवृत फौजी रामकरण मीणा ने बताया कि सालाना पुरातत्व विभाग प्राचीन एवं ऐतिहासिक पुरा वैभव की सम्पदाओं को बचाने एवं संरक्षण प्रदान करने को लेकर 18 अप्रेल को प्रति वर्ष पुरातत्व दिवस मनाता है। जिस दिवस को मनाना तभी सार्थक होगा कि तब पुरात्तत्व विभाग इस किले को पर्यटन एवं रमणीक दृष्टी से उपयुक्त बनाते इसके पुरा वैभव को कायम रखने की ओर ध्यान दें।