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बनने के बाद से अब तक केवल पांच बार छलका Bisalpur Dam, बांध के डूब क्षेत्र में आते हैं 68 गांव

Bisalpur Dam History: जयपुर, अजमेर, भीलवाड़ा, टोंक और दौसा की लाइफ लाइन कहे जाने वाले वाले बीसलपुर बांध का निर्माण बीसलपुर गांव के करीब अरावली पर्वतमाला की श्रृंखलाओं के बीच बनास, खारी व डाई नदियों के संगम पर किया गया है।

टोंकAug 18, 2022 / 02:54 pm

santosh

13 जिलों में कल से फिर शुरू होगी झमाझम बारिश।

13 जिलों में कल से फिर शुरू होगी झमाझम बारिश।

Bisalpur Dam History: जयपुर, अजमेर, भीलवाड़ा, टोंक और दौसा की लाइफ लाइन कहे जाने वाले वाले बीसलपुर बांध का निर्माण बीसलपुर गांव के करीब अरावली पर्वतमाला की श्रृंखलाओं के बीच बनास, खारी व डाई नदियों के संगम पर किया गया है। बांध का शिलान्यास 25 जनवरी 1985 को तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर ने किया था। बांध निर्माण का मुख्य उद्देश्य जयपुर व अजमेर में जलापूर्ति करना था, वहीं शेष पानी से सिंचाई कार्य करना था। बांध का निर्माण कार्य 1987 में शुरू हुआ, जो 1996 में पूरा हुआ, जिसमें करीब 300 करोड़ रुपए की लागत आई थी। बांध का कैचमेंट एरिया लगभग 28 हजार 800 वर्ग किमी है। इसमें कुल जलभराव क्षेत्र में 21 हजार 300 हेक्टेयर भूमि है। बांध के डूब क्षेत्र में कुल 68 गांव आते हैं, जिसमें 25 गांव पूर्ण रूप से तथा 43 गांव आंशिक रूप से है।

जयपुर, अजमेर, टोंक व भीलवाड़ा की लाइफ-लाइन है बांध:
बीसलपुर बांध से वर्तमान में राज्य की करीब एक करोड़ की आबादी की प्यास बूझा रहा है। बांध बनने के बाद से लगातार अजमेर शहर के साथ ही जिले के गांव कस्बों में जलापूर्ति चालू है। वहीं 2009 से जयपुर शहर में पेयजल दिया जा रहा है। 2018 से टोंक, देवली, उनियारा शहरों में जलापूर्ति चालू कर दी गई। इसके बाद जिले के 438 गांव व कस्बों में जलापूर्ति हो रही है। अभी बांध से रोजाना 480 एमएलडी पानी जयपुर शहर, 330 एमएलडी अजमेर, 52 एम एल डी मालपुरा-दूदू,53 एमएलडी चाकसू व 50 एम एल डी बीसलपुर टोंक उनियारा पेयजल परियोजना के तहत देवली, टोंक व उनियारा शहरों व इससे जुड़े 436 गांव व कस्बों में पानी दिया जा रहा है।

दो चरणों में बिछी जयपुर के लिए पाइपलाइन:
बीसलपुर बांध का निर्माण होने के बाद 1998-99 में सिंचाई विभाग से बीसलपुर परियोजना को सुपुर्द कर दिया। 2001 में पीएचईडी के तहत बीसलपुर इंटेक व थड़ोली में पम्पिंग स्टेशन तैयार कर अजमेर, ब्यावर समेत जिले के सबंधित जिलो में जलापूर्ति शुरू की गई। इधर, 2005-06 में थड़ोली के निकट सूरजपुरा में प्रदेश का सबसे बड़ा फिल्टर प्लांट का निर्माण शुरू हुआ। सूरजपुरा फिल्टर प्लांट व जयपुर जलापूर्ति पाइप लाइनों का करीब 11 सौ करोड़ का प्रोजेक्ट तैयार हुआ। प्रथम चरण में सूरजपुरा (थड़ोली) में 2005 से प्रोजेक्ट की शुरुआत कर 556 करोड़ की लागत से बीसलपुर इंटेक पम्प से 2400 एमएम की रॉ पाइप लाइन, सूरजपुरा फिल्टर प्लांट, 400 एमएलडी सीड्ब्ल्यूआर तथा प्लांट से बालावाला (जयपुर) तक जलापूर्ति पाइप लाइन का निर्माण कराया गया। कार्य पूर्ण होने के बाद अप्रेल 2009 में जलापूर्ति शुरू की गई।

इधर, द्वितीय चरण में बीसलपुर ग्रामीण जलापूर्ति परियोजना में मालपुरा-दूद जलापूर्ति पाइप लाइन (टीएम-1) व झिराना-निवाई चाकसू पाइप लाइन (टीएम-2) का कार्य पूरा होने के बाद सन् 2011-12 में ग्रामीण जलापूर्ति शुरू की गई। इधर, पानी की मांग बढऩे के बाद सन् 2018-19 में सूरजपुरा फिल्टर प्लांट परिसर में करीब 122 करोड़ की लागत से 200 एमएलडी का सीडब्ल्यूआर का निर्माण करवांकर प्लांट की क्षमता 400 एमएलडी से 600 एमएलडी की गई। वर्तमान में सूरजपुरा फिल्टर प्लांट से जयपुर के लिए 480 एमएलडी तथा ग्रामीण क्षेत्र में मालपुरा-दूदू जलापूर्ति पाइप लाइन (टीएम-1) में 53 व झिराना-निवाई चाकसू पाइप लाइन (टीएम-2) में 52 एमएलडी की जा रही है।

पांच बार छलका बांध:
बांध बनने के बाद पहली बार 2001 में 311आरएल मीटर का भराव हुआ। वहीं 2004, 2006, 2014, 2016 व 2019 में पूर्ण जलभराव 315.50 आरएल मीटर होने के बाद बनास नदी में पानी की निकासी करनी पड़ी है। वहीं 2010 में बांध बनने के बाद सबसे कम गेज 298.67 आरएल मीटर दर्ज किया गया है, जिससे बांध पूर्ण रूप से सूखने के कगार पर पहुंच गया था। बीसलपुर बांध से सिंचाई के लिए दायीं व बायीं दो मुख्य शहरों का निर्माण किया गया है, जो मुख्य शहरों के साथ माइनर व वितरिकाओं सहित सम्पूर्ण नहरी तंत्र 700 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।दायीं मुख्य नहर से जिले की 69393 हेक्टेयर व बायीं मुख्य नहर से 12407 हेक्टेयर भूमि सिंचित होती है दोनों नहरों की कुल 81 हजार 800 हेक्टेयर भूमि सिंचित होती हैं।

पांच जिलों से आता है पानी:
बीसलपुर बांध बनने के बाद से लेकर अब तक बांध में पानी की सबसे अधिक आवक अगस्त माह में ही हुई है। वहीं बांध पूर्ण जलभराव होकर अब तक अगस्त माह में ही छलका है। स्कोडा सिस्टम से लैस होने के बाद से बांध पर जयपुर में बैठे अधिकारी भी पानी की आवक से अपडेट रहते है। उल्लेखनीय है कि बीसलपुर बांध में पानी की आवक राजसमंद, चित्तौडगढ़़, भीलवाड़ा, अजमेर व टोंक जिले से होती है, जिसे कैचमेंट एरिया माना गया है। बांध परियोजना के अभियंताओं के अनुसार बांध में पानी की मुख्य आवक चित्तौडगढ़ व भीलवाड़ा जिलों से होना माना जाता है, जिसमें बनास नदी मुख्य आवक का स्रोत है। वहीं खारी व डाई नदियां भी पानी के भराव में सहायक है। बनास नदी में बीसलपुर बांध से पूर्व मातृकुंडिया, गोवटा, कोठारी, जैतपुरा मुख्य बांध है।

बनास में पानी की मुख्य आवक का स्रोत प्रसिद्ध मेनाल झरने का पानी गोवटा बांध में आता है। गोवटा बांध के ओवरफ्लो होने के बाद पानी मेनाली नदी में मिलकर त्रिवेणी तक पहुंचता है। त्रिवेणी में बनास, बेड़च एवं मेनाली नदी मिलकर त्रिवेणी संगम बनाता है। और यही प्राचीन महादेव का मंदिर बना हुआ है, जो लोगों की आस्था का केंद्र है। त्रिवेणी नदी से आगे पानी बनास नदी के रूप में शुरू होता है, जिसमे कोठारी नदी, ऊवली नदी, नगदी नदी सहित अन्य छोटी सहायक नदियां मिलती है। बनास नदी का यह पानी बीसलपुर बांध तक पहुंचता है। बीसलपुर बांध में पानी की मुख्य आवक का स्रोत त्रिवेणी को माना गया है। यहां बांध परियोजना की ओर से मानसून सत्र के दौरान वायरलेस सेट स्थापित कर कार्मिक की ड्यूटी लगाई जाती है। जो त्रिवेणी में पानी की आवक होने पर बांध परियोजना को सूचना देता है।

https://youtu.be/1Zg1Yrt3BT0

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