
ऊपर आसमां नीचे पानी, सर्दी में पतवार के सहारे गुजरते दिन-रात
राजमहल. तेज हवाओं के छोंके हो या फिर कड़ाके की सर्दी गांव व घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर रात-दिन पानी में पतवार के सहारे जिंदगी गुजारने वाले मछुआरों के लिए सरकार की ओर दी जा रही योजनाओं का लाभ जानकारी के अभाव में नहीं मिल पा रहा है।
बांध या फिर नदी तालाब में मछली पकडऩे के दौरान मछुआरे कभी-कभी हादसे का शिकार हो जाते है तो कभी तेज लहरों के बीच अकाल मौत का ग्रास बन जाता है, लेकिन अन्य दुर्घटनाओं की भांति इन्हें सहायता राशि उपलब्ध नहीं हो पाती है।
गांव के बाद नाव ही बन जाता घर
बीसलपुर बांध सहित राज्य के कई छोटे-बड़े तालाबों व बांधों में हर वर्ष बिहार, उत्तर प्रदेश, केरल आदि जगहों से हजारों की संख्या में मछुआरे के दल यहां आते है। बीसलपुर बांध के मछुआरों ने पत्रिका को बताया कि वो सैकड़ों किमी दूर रोजी रोटी के लिए पहुंचते है। परिवार से दूर यहां आने के बाद उनका घर नाव ही होता है।
उसी में खाने-पीने के सामान सहित मछलियां पकडऩे की जालें रहती है। पानी के बीच जहां शाम ढल जाती है, वहीं नाव को किनारे लगाकर खाना बना लिया जाता है। वहीं खुले आसमान के नीचे पानी के किनारे पर ही विश्राम कर लेते है। सुबह होते ही वापस पानी में मछली पकडऩे का कार्य शुरू कर देते है। जहां इनके लिए कोई सुविधाएं नहीं होती है।
ठेकेदार से यह मिलती सुविधाएं
बीसलपुर बांध में इन दिनों मछली पकडऩे के लिए अन्य राज्यों से आए मछुआरों ने बताया कि बांध पर पहुंचने के बाद मछली ठेकेदार की ओर से मछुआरों को नाव व नाव पर सामानों के रख-रखाव के लिए तिरपाल दिया जाता है। इसी के साथ गांव से बांध तक पहुंचने के लिए आने-जाने का किराया सम्बन्धित ठेकेदार की ओर से दिया जाता है। वहीं नाव में राशन सामग्री मछुआरों को अपने स्तर पर लानी पड़ती है।
अभी यहां के शिकारी कर रहे काम- बीसलपुर बांध पर इन दिनों लगभग तीन सौ शिकारी अलग-अलग नावों पर मछली के शिकार का कार्य कर रहे है, जिनमें उत्तर प्रदेश के बनारस व बलियां जिले सहित बिहार के सुखपुरा, शक्करपुरा, मिरजापुर, रैपुरिया, चुनार आदि गांवों के मछुआरे है। यह मछुआरे श्याम बिहारी, गोरखदास, कांता, कंचन, अमरनाथ आदि गु्रपों के है। इनके मुखियां भी यही है, जिनका ठेकेदार से सीधा सम्बन्ध होता है।
जितना काम उतना दाम- नदी तालाब व बांधों मेंं मछली पकडऩे का कार्य करने वाले मछुआरों को दिनभर की मजदूरी नहीं दी जाती है। उन्हें सिर्फ जितना काम उतना दाम दिया जाता है। एक मछुआरा पूरे दिन में जितने वजन में मछली पकड़ता है, उसको तोल के हिसाब से प्रतिकिलों दर से दाम मिलता है।
इनका कहना है- मछुआरों के साथ होने वाली दुर्घटनाओं आदि के दौरान सरकार की ओर से जारी योजनाओं का लाभ जांच के बाद समय-समय पर मत्स्य विभाग की ओर से दिया जाता रहा है। वहीं मछुआरों का लेबर परमीट, आय प्रमाण आदि रखा जाता है, जिससे पानी में रात-दिन दौड़ती नावों व मछुआरों का रिकॉर्ड ठेकेदार व विभाग के पास जानकारी रह सके।
राकेश देव मत्स्य विकास अधिकारी टोंक।
Published on:
30 Nov 2019 10:00 am
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