
टोडारायसिंह. यहां उत्तर-पूर्व में पहाड़ी पर स्थित आस्था का केन्द्र आसन की डूंगरी स्थल प्राचीनकाल से चमत्कारिक रहा है।
अवधेश पारीक
टोडारायसिंह. यहां उत्तर-पूर्व में पहाड़ी पर स्थित आस्था का केन्द्र आसन की डूंगरी स्थल प्राचीनकाल से चमत्कारिक रहा है। पिछले दशकों से निर्जनता झेल रहा उक्त स्थल, भक्त को स्वप्न में मिली प्रेरणा व ज्योर्ति में शिवलिंग के दर्शन बाद अब श्रद्धा व आस्था के साथ पिकनिक का मुख्य केन्द्र बन गया है। कस्बे स्थित आसन की डूंगरी का स्थान कनफटे नाथ सम्प्रदाय (योगी) का है।
जहां स्थित शिव मन्दिर प्राचीनकाल से प्रसिद्ध व चमत्कारिक रहा है। इतिहास के मुताबिक आसन का स्थान 13वीं शताब्दी में गहल रावल ने ही बनवाया था। जहां प्रथम योगी भी गहल रावल ही था। गहल रावल के बारे में बताया जाता है कि अल्लाउद्दीन खिलजी ने जब रणथम्भौर पर हमला किया ओर वहा के राजा हम्मीर चौहान के मारे जाने पर किले में मौजूद स्त्रियों ने जौहर किया था।
तब राव हम्मीर की पुत्रवधू सात माह के गर्भ से थी, समय से पहले बालक को जन्म देकर उसे शिव मन्दिर में रखने के बाद सती हो गई। कुछ समय बाद जब पुजारी ने मन्दिर में प्रवेश किया तो बालक भगवान शिव की मूर्ति के पास खेल रहा था। पुजारी ने बालक का पालन पोषण किया उसे वह गहल नाम से पुकारता था। रणथम्भौर पर बादशाह का शासन रहा अत: पुजारी, पांच वर्ष तक बालक की देखभाल करने के बाद उसे लेकर रणथम्भोर से टोडा आ गया।
उस समय टोडा का नाम लाडपुरा था। यहां चौहान वंशज शासन करते थे। पुजारी ने चौहान शासक को बालक की यथां स्थिति से अवगत कराया। तो उसे हम्मीर का वंशज समझकर उन्होंने सिंहासन पर बिठा दिया। क्योकि रणथम्भोर व टोडा पर एक ही वंश का शासन था। समय के साथ गहल रावल जवान हुआ। गहल दिन में लाडपुरा में शासन कार्य देखता तथा रात्रिकाल में प्रस्थान कर उत्तर-पूर्व स्थित पहाड़़ी पर आसन लगाकर ईश्वर भजन किया करता था।
जहां शिव मन्दिर की स्थापना की तथा बाद में उसी मन्दिर केेेे सामने आसन के साथ समाधि ली जो आज भी मौजूद है। लोगो की मान्यता है कि यह स्थान रावल योगियो का हो जाने से चमत्कारिक हो गया, इसके बाद नाथ सम्प्रदाय के नो योगियो ने भी समाधि ली। उक्त स्थल पिछले कई दशको से निर्जन था। यहां पूजा करने वाले नवीं पीढ़ी भवानी नाथ के पुत्र शम्भूनाथ व सत्यप्रकाश रावल का कहना है कि यह स्थान चमत्कारी है।
जहां सेवा करते समय कई बार नाग के दर्शन होते है। तीन वर्ष पहले भक्त योगेश पारीक को स्वप्न में उक्त स्थल पर जाने की प्रेरणा मिली। जहां भक्ति के दौरान उसे ज्योर्ति में शिवलिंग के दर्शन हुए। इसके बाद अन्य भक्तों को जोडकऱ उन्होंने आसनेश्वर महादेव विकास समिति का गठन किया। जिसके तहत मन्दिर का जीर्णोद्धार के साथ फुलवारियां विकसित की जा रही है। समिति के आशीष विजयवर्गीय ने बताया कि विरान होने के बावजूद पहाड़ी पर स्थित होने से उक्त स्थल रमणीय है। यहां सावन में श्रद्धालुओं की विशेष भीड़ रहती है, तथा गोठों का आयोजन होता है।
सिद्धता से कर मुक्त हुई गाये
बुजुर्गो का कहना है कि एक समय सिद्धता से गायों को कर मुक्त किया गया था। यवन शासको के समय में इस शहर में गोचर कर लगता था। ग्रामवासियों से कर वसुलते हुए मुगल कर्मचारी आसन के आश्रम पहुंचे जहां आश्रम में सैकड़ों गाये थी। कर्मचारियों के प्रति गाय के हिसाब से गायों की चराई (कर) मांगी। तो आश्रम के साधु ने गायों को खिडक़ी दरवाजे से निकालकर कुल गायों की चराई प्राप्त कर लो।
इधर, गाये निकल ज्योहि बाहर आई दहाड़ते हुए सिंह के रूप में परिवर्तित हो गई। बाहर नियुंक्त कर्मचारी घबराकर अपने अधिकारी के पास आ गए उसने साधू से क्षमा मांगी तथा आसन की पहाड़ी की छाया डूबते हुए सूर्य के समय जितनी चली जाये। वहां तक भूमि गोचर कर मुक्त कर दी, जो उस समय 4 मील तक छाया चली गई।
Published on:
12 Feb 2018 09:47 am
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