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दक्षिण भारत में शाकाहारी भोजन की विविधता, हर जगह का स्वाद भी अलग

घूमने के साथ लें खाने का स्वाद दक्षिण भारत में तथा भारत के तटवर्ती क्षेत्र में ऐसी जगहों की कमी नहीं जो पर्यटकों को चुम्बक की तरह आकर्षित करती है। पहली बात तो यह है कि देश के दक्षिणी भू-भाग में झुलसा देने वाली लू नहीं चलती और भले ही कभी-कभी उमस परेशान करती है पर यह दौर भी ज़्यादा देर नहीं टिकता।

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दक्षिण भारत में शाकाहारी भोजन की विविधता, हर जगह का स्वाद भी अलग

दक्षिण भारत में शाकाहारी भोजन की विविधता, हर जगह का स्वाद भी अलग

दक्षिण भारत में बहुत सारे खूबसूरत हिल स्टेशन है। इनमें ऊटी,कोडाईकनाल, पूनामूडी, मुन्नार और नीलगिरि पर्वतमाला में बहुत सारी जगह हमें बुलाती हैं। देखने को बहुत कुछ है, भव्य मंदिर, प्राचीन किले, चाय-कॉफी के बागान आदि।

चखने को हैं 56 भोग

केरल में आप कहीं भी समुद्र या बड़ी झीलों से बहुत दूर नहीं रहते। यही बात गोवा के बारे में भी कही जा सकती है। ओडिशा में भी दर्शनीय देवालय हैं, बेमिसाल अभयारण्य और चखने को 56 भोग। यदि हम ओडिशा से बात शुरू करें तो यहां का छेनापूड, खाजा और श्रीजगन्नाथ धाम का महाप्रसाद सबसे पहले याद आते हैं। मगर ऐसा नहीं कि इस राज्य का खाना सिर्फ सात्विक और शाकाहारी ही होता है। चिल्का झील वाले इलाके में बड़े आकार के झींगे और बेहद स्वादिष्ट केकड़े स्थानीय ग्रामीण शैली में पकाए जाते हैं जिनकी ताजगी बेमिसाल होती है। ओडिशा के राजघरानों में शादी-ब्याह के जरिए देश के दूसरे हिस्सों के स्वाद और खाना बनाने के तरीके पहुंचते रहे हैं और थोड़ी सी ही कोशिश करने पर आप कुछ ऐसी चीजें चख सकते हैं जो और कहीं नहीं मिलती। सडक़ पर मिलने वाले चटपटे अल्पाहार की बात करें तो कटक में दही-बड़े और आलूदम की जुगलबंदी साधी जाती है जो वास्तव में बड़ी दिलचस्प है। भुवनेश्वर और कटक में प्याजी का चलन भी काफी है जिसका कलेवर और स्वाद प्याज की पकौड़ी या भजिया से बहुत अलग होता है। यदि आप पुरी, कोणार्क या कटक की यात्रा पर निकले हों तो दालमा (अनेक सब्जियों के साथ पकी दाल) को आज़माए बिना ना लौटें।

इडली और डोसा तो टिफिन के आइटम हैं

तमिलनाडु के भोजन के बारे में अधिकांश लोगों को यह भ्रांति है कि इडली, डोसा, वड़ा ही यहां का भोजन है। जबकि हकीकत तो यह है कि यह सब टिफिन के आइटम हैं, अल्पाहार के। इसी तरह की दूसरी ग़लतफ़हमी है कि तमिलनाडु का भोजन सिर्फ शाकाहारी होता है। यहां के चेटिनाड नामक अंचल के वणिक-व्यापारी बड़े चाव से नॉनवेज खाते हैं। इन व्यंजनों में मसालों के नाम पर काली मिर्च, लौंग व इलायची का इस्तेमाल होता है। दक्षिण में शाकाहारी व्यंजनों में जितनी विविधता देखने को मिलती है उन सब का आनंद एक छोटी यात्रा में लेना संभव नहीं मगर हमारा आग्रह है कि आप भले ही तीर्थाटन के लिए निकले हों या देशाटन के लिए जहां भी पहुंचें वहीं के खाने का आनंद लें।

भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन होने के पहले तमिलनाडु और इसके पड़ोसी राज्यों केरल, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक के कुछ हिस्से भी मद्रास प्रेसीडेंसी में शामिल थे। इसलिए यह स्वाभाविक ही है कि संलग्न इलाको में खान-पान में बहुत साम्य है।

हर शहर के सांभर की अपनी खासियत

केरल में चीनाचट्टी नामक मिट्टी के पात्र में पकाए जाने वाले अप्पम को सामिष या निरामिष इस्टू के साथ जरूर खाएंं। अप्पम का किनारा लेस की झालर जैसा खूबसूरत और कुरकुरापन लिए होता है और बीच वाला हिस्सा मुलायम जो शोरबा आसानी से सोखता है। केले के पत्ते में मसालेदार चटनी से लपेटकर तवे पर सेकी गई कारीमीन पोलिचट्टु, पारसी पातरानी मच्छी या बंगाली पतूरी की याद दिलाती है पर उन से कहीं अधिक चटपटी होती है। नारियल के दूध में मिलीजुली सब्जियों से जो शोरबेदार तरकारी पकाते हैं वह अवियल कहलाती है। यदि आप तमिलनाडु के एक से अधिक शहर की यात्रा कर रहे हो (जैसा कि अधिकांश पर्यटक करते हैं) तो आप खुद ब खुद इस बात को महसूस करेंगे कि हर शहर का सांभर अपनी खासियत लिए होता है। चेन्नई, तन्जावुरू और मदुरई में सांभर और रसम का अलग स्वाद पहचाना जा सकता है।

घर का रूख करने के पहले दक्षिण भारतीय बिरयानी को भी परखें। आमतौर पर हैदराबाद की दम वाली बिरयानी ही सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है पर केरला की मोपला बिरयानी या तेलिचेरी और चेरी की बिरयानी इनका मुकाबला बख़ूबी कर सकती है।

गोवा में पर्यटक उत्तर-दक्षिण, पूरब- पश्चिम सभी जगह से पहुंचते हैं और अधिकांश सीधे सागर तट पर बसे ढाबानुमा खोखों का रूख करते हैं जिन्हें स्थानीय मुहावरे में शैक कहा जाता है। समुद्री मछलियां आदि विभिन्न मसालों में अनेक तरीकों से पकाए जाते हैं। यहां के खाने पर पुर्तगाली औपनिवेशिक प्रभाव है। चिकन जाकूती जैसे क्रियोल शैली के व्यंजन ऐसे हैं जो पुर्तगाल में नहीं सिर्फ उसके उपनिवेशों में मिलते हैं। यह बात रेखांकित करने की ज़रूरत है कि गोवा में सिर्फ मांसाहारी ही नहीं बसते। छोटे हरे कटहल से बनाई जाने वाली सब्जी हो या नारियल, गुड़ से बनाए जाने वाले केक अथवा यहां के सारस्वत ब्राह्मणों के पारंपरिक व्यंजन सभी आप को उस खानपान की विरासत से परिचित कराते हैं जो समावेशी होने के कारण बेहद संपन्न है।