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इस मंच पर हर वक्ता के मुंह से प्रकृति को बचाने के लिए की गई गुहार

locationउदयपुरPublished: Sep 22, 2019 02:56:31 am

Submitted by:

Sushil Kumar Singh

साहित्य व प्रकृति संरक्षण विषयक संगोष्ठी

इस मंच पर हर वक्ता के मुंह से प्रकृति को बचाने के लिए की गई गुहार

इस मंच पर हर वक्ता के मुंह से प्रकृति को बचाने के लिए की गई गुहार

उदयपुर. विद्या भवन भाषा समूह की ओर से पॉलीटेक्निक संस्थान में आयोजित साहित्य व प्रकृति संरक्षण विषयक संगोष्ठी में जुटे साहित्यकारों व कवियों ने उनकी कृतियों की आकर्षक प्रस्तुति के साथ प्रकृति पर गहराते संकट के बादलों का बखान किया। इन कलमकारों ने बदलते पर्यावरण, कटते वृक्षों व पहाड़ों, सूखती नदियों व उसका मैलापन, पतन की ओर अग्रसर झीलों, बाढ़, सूखे जैसी आपदाओं को लेकर गंभीरता दिखाई। साथ ही समस्या से होने वाली पीड़ा का बखान किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि किशन दाधीच ने कृति व् प्रकृति के संबंध को परिभाषित किया। कहा कि ढाई आखर प्रेम का, दो गज जमीन के बीच में मानवीय मूल्य जिंदा हैं। इसलिए प्रकृति के साथ प्रेममयी व्यवहार के हम मूल स्वभाव को हमें हर हाल में जिंदा रखना चाहिए।
कवि पंडित नरोत्तम व्यास ने एक झील कहती है…मै कंहा आंसू बहाऊं,् कविता से झीलों व नदियों पर आए संकट को परिभाषित किया। डॉ. जयप्रकाश पंड्या, ज्योतिपुंज, डॉ मधु अग्रवाल, पीएल बामनिया, डॉ. करुना दशोरा, बृजराज सिंह जगावत, दीपा पन्त, आइना उदयपुरी, श्याम मठवाल, अरुण व्यास, मंजू श्रीमाली ने आकर्षक अंदाज में उनकी रचनाओं को सुंदरता के साथ पेश किया। साथ ही प्रकृति के प्रति मानवीय दुव्र्यहार को व्यक्त कर चिंता जताई। इससे पहले अतिथियों के स्वागत को लेकर प्राचार्य डॉ. अनिल मेहता ने कहा कि साहित्य के माध्यम से पर्यावरण चेतना को मजबूत बनाया जा सकता है। पर्यावरण संरक्षण की समझ को व्यापक व गहरी बनाने की आवश्यकता है। संचालन कवि विजय मारू ने किया।
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