
राकेश शर्मा 'राजदीप' / उदयपुर- शहर में एक बार फिर आमजन को यातायात नियमों के प्रति जागरूकता जगाने के प्रयोजन से यातायात सप्ताह का आगाज हो चुका है। पिछले कई वर्षों की तरह सात दिन की प्रशासनिक और विभागीय समझाइश के बाद हालात फिर जस के तस हो जाएंगे। ऐसे में बरसों से उपेक्षा झेल रहे यातायात सुरक्षा के बुनियादी नियम कायदे एक बार फिर ठंडे बस्ते की भेंट चढऩा तय है।
यानी, स्मार्ट सिटी के स्मार्ट सिटीजन्स की सेहत और सीरत पर तनिक भी असर नहीं होने वाला है। वे तो हर बार की तरह ऐसे आयोजनों को विभागीय खानापूर्ति मानकर या थोड़े समय चालान के डर से सिर का बोझ (हेलमेट) घर से साथ लेकर चौराहों पर पुलिसकर्मी को देखकर लगा लेंगे। मन ही मन यातायात विभाग, प्रशासन और अखबार वालों को कोसते हुए बेमन से कभी-कभार सीट बैल्ट भी कस लिया करेंगे।
बाकी, दुपहिया वाहन पर मुंह पर रुमाल या स्कार्फ बांधकर तीन-चार-पांच सवारी बैठकर फर्राटा भरते, बिना नंबर प्लेट, वाहन चलाते हुए मोबाइल पर बात करते, लोडर टेम्पो की तरह सामान लादे, दूध के ड्रम और गैस सिलेण्डर लटकाए, बहुत बार विपरीत (गलत) दिशा में शान से वाहन चलाते शहरवासी बारह महीने देखे जा सकते हैं।
कमोबेश, चारपहिया वाहन चालकों के हाल भी इनसे जुदा नहीं हैं। बहुत बार तो वे कानून अपनी जेब में रखकर बेखौफ काली फिल्म वाले वाहनों में बिना सीट बैल्ट लगाए मोबाइल पर बतियाते तेज रफ्तार से बहुत बार लाल बत्ती में ही चौराहा पार कर जाते हैं। ऐसे लोगों को यातायात कर्मियों के रोके जाने पर उल्टे वे रौब गालिब करते या ‘देख लेने’ की धौंस बताते नजर आते हैं।
कुछ ऐसा ही हाल सिटी ट्रांसपोर्टेशन का भी है। बिना वजह होर्न बजाते, मनचाहे तरीकों से कहीं भी रोक कर सवारियां बिठाते और मनमानी जगह उतारते, ओवरलोडेड धुआं उगलते वाहनों में छोटी उम्र के ड्राइवर बहुत बार धूम्रपान करते और राह चलते पान-गुटका थूकते टेम्पो, सिटी बस, स्कूल वैन या ऑटो यहां-वहां हैरानी का मंजर पैदा करते हैं।
मजे की बात तो यह भी है कि चैकिंग के नाम पर गाड़ी रोके जाने या इनसे लाइसेंस या इंश्योरेंस अथवा मूल कागजात मांगने पर ये लोग अपनी ‘पहुंच’ का हवाला देने से भी बाज नहीं आते।
प्रशासन और विभागीय जिम्मेदारी भी
प्रशासन, विभाग और आमजन, सभी जानते हैं कि यातायात नियम और कानून क्या है और इनकी अवहेलना कितनी भारी हो सकती है? बावजूद इसके, बरसों से इसकी पालना नहीं होने का बड़ा कारण प्रशासनिक व्यवस्थाओं का लचीलापन है। इसी कारण सुरक्षा अभियान बहुत बार असरकारी नहीं होते। यह सच है कि कई बार तो विभाग और प्रशासन इन अभियानों को बिना तैयारी के शुरू कर देता है, ऐसे में अपेक्षित परिणाम नहीं आ पाते। मसलन, चौराहों पर समुचित यातायात कर्मियों का अभाव, जेब्रा कॉसिंग अथवा संकेतक लाइटों (लाल-पीली-हरी बत्ती) का संचालन न होना, टूटी सडक़ें और मार्ग में जगह-जगह बने गडï्ढे, व्यवस्थित पार्किंग का जिम्मा आदि मसले सरकार और प्रशासन को संजीदगी से हल करने चाहिए।
क्या कहता है कानून
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति वर्ष करीब 1 लाख 20 हजार लोग सडक़ दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं तो लगभाग 12 लाख 70 हजार से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल होते हैं। ऐसे में अभिभावकों सहित अध्यापकों का दायित्व बनता है कि वे स्वयं यातायात नियमों का पालन करते हुए बच्चों को प्रेरित करें।
अपराध और दंड
मोटर यान संशोधन विधेयक के पारित हो जाने से देश भर में शराब पीकर या नशीली दवा सेवन कर गाड़ी चलाने पर 10 हजार जुर्माने सहित बिना इंश्योरेंस के वाहन चलाने पर 2 हजार, बिना लाइसेंस के 5 हजार, दुपहिया वाहन पर दो से अधिक सवारी बिठाने पर 2 हजार, खतरनाक ढंग से वाहन चलाने पर 5 हजार, ओवरलोडिंग पर 20 हजार, सीट बैल्ट नहीं पहनने पर एक हजार, बिना हेलमेट वाहन चलाने पर 500 से 5 हजार, मोबाइल पर बात करते गाड़ी चलाने पर अधिकतम 5 हजार, रजिस्ट्रेशन पेपर बिना वाहन चलाने पर 20 हजार जुर्माना या दो साल कैद, रॉन्ग साइड या वन वे में वाहन चलाने, गलत तरीके से वाहन पार्र्किंग करने, कम उम्र या बिना लाइसेंस के वाहन चलाने और आपात सेवा व्यवस्था में लगे वाहनों (दमकल या एम्बूलैंस) को जानबूझकर रास्ता नहीं देने पर जुर्माने या सजा के प्रावधान हैं। इसके अलावा वाहन चालकों को ओवरटेकिंग, साइड या लेन अनुशासन, यू टर्न, हाथ सिग्नल, गति नियंत्रण, सिटी सहित हाइवे पर यातायात संकेतकों की पालना के प्रति भी सावचेत रहना चाहिए।
Published on:
27 Apr 2018 04:07 pm
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