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केसरियाजी मंदिर: सब सामान्य तो यहां सेवा-पूजा पर रोक क्यों

देवस्थान विभाग ने प्रस्ताव भेजकर भक्तों की भावनाओं से भी अवगत कराया

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केसरियाजी मंदिर: सब सामान्य तो यहां सेवा—पूजा पर रोक क्यों

केसरियाजी मंदिर: सब सामान्य तो यहां सेवा—पूजा पर रोक क्यों

संदीप पुरोहित
उदयपुर. कोविड-19 की गाइडलाइन के चलते मंदिरों में भक्तों के सीधे ही सेवा पूजा करने पर पाबंदी लगी है लेकिन बाहर के दूसरे मंदिरों पर कोई पालना नहीं हो रही है। वहीं देवस्थान विभाग के प्रमुख केसरियाजी मंदिर में सेवा पूजा नहीं होने को लेकर भक्त परेशान है। यहां प्रतिदिन 1500 भक्तों का आना होता है जो दर्शन कर जाते हैं और उसमें कई भगवान की सेवा पूजा का लाभ लेना चाहते है लेकिन निराश लौट रहे हैं।

असल में राज्य सरकार की गाइड लाइन के बाद से जिले के ऋषभदेव स्थित सबसे बड़े केसरियाजी मंदिर में अभी भी सेवा पूजा बंद है। वहां आने वाले भक्त भगवान की स्वयं सेवा पूजा करते हैं लेकिन इस रोक से वे यहां निराश लौट रहे है। सबसे अहम बात यह है कि इस तरह के अन्य गैर सरकारी मंदिरों में सेवा पूजा हो रही है। वहां ऋषभदेव के स्थानीय भक्त भी नियमित सेवा पूजा करते आए लेकिन इस रोक से वे भी नाराज है। भक्तों का तर्क है कि जब पूरे प्रदेश में कोविड गाइडलाइन में कई रियायत देते हुए स्कूल, कोचिंग सहित कई चीजें खोल दी तो फिर सेवा पूजा पर रोक क्यों है। ]

बड़ी संख्या में आते भक्त

केसरियाजी मंदिर में बड़ी संख्या में भक्त आते है। जब मंदिर पूरी तरह से बंद था तो यहां आने वाले भी रुक गए जिसका सीधा असर ऋषभदेव के व्यापार पर भी पड़ा क्योंकि यहां आने वाले दशनार्थी व पर्यटक नहीं आए तो सीधे आजीविका प्रभावित हुई। जुलाई में खुले इस मंदिर में इन दिनों औसत स्थानीय व बाहरी मिलाकर1500 भक्त प्रतिदिन आते है। इनमें से कई बाहरी भक्त भगवान की सेवा पूजा के भाव भी रखते है लेकिन वे रोक के चलते नहीं कर पा रहे है। अमूमन करीब 200 से 250 भक्त सेवा पूजा पहले करते थे। अभी मंदिर में नियमित पूजा वहां का पूजारी ही करता है।

सहायक आयुक्त ने देवस्थान को भेजा प्रस्ताव

भक्तों के आग्रह पर ऋषभदेव के सहायक आयुक्त ने उदयपुर में देवस्थान आयुक्त को पत्र लिखकर केसरियाजी मंदिर में भक्तों के भगवान की सेवा पूजा शुरू करने का प्रस्ताव भेजते हुए अवगत कराया। उल्लेखनीय है कि कोरोना की गाइडलाइन की पालना के दौरान ही मंदिर में मूर्ति के विलेपन का काम चल रहा था जो डेढ़ महीने चला था। मंदिरों में अब दर्शनों के साथ ही सेवा-पूजा की व्यवस्था शुरू करने को कहा गया।


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