
उदयपुर . दीपावली पर्व पर मेवाड़ में अलग-अलग रंग देखने को मिलते हैं। उदयपुर के आदिवासी बहुल कोटड़ा में सबसे ज्यादा रंगों की खरीददारी होती है। दीपावली पर्व पर कोटड़ा के सदर बाजार में आदिवासी लोगों की खूब भीड़ उमड़ी। मिठाई से ज्यादा इन लोगों ने खेंखरे पर अपने मवेशियों को सजाने के लिए चमकीले बेड़े खरीदे तो जानवरो के सींगों को रंगने के लिए पक्के रंग के साथ छापे मांडने के लिए खूब रंग खरीदा। सदर बाजार में रंगो की सैकड़ों स्टॉलें लगी जहां पर खरीददारों की रेलमपेल लगी रही। रंग खरीदने में सबसे ज्यादा यह लोग दिवाली पर बाजार पहुंचते हैं क्योंकि इनकी आमदनी का आसरा इनके मवेशी हैं और उन्हीं को सजाने संवारने के लिए यह कल यानी खेखरे पर गोवर्धन पूजा कर मवेशी रंगेंगे। सबसे बड़ी बात यह है कि इस इलाके में चाइनीज लाइटें नहीं बिकती। कोटड़ा में अधिकांश लेाग मिट्टी के दीये जलाकर ही दीवाली की रोशनी करते हैं। इसके पीछे बड़ा कारण यह है कि अधिकांश गांवों में बिजली नहीं है जिससे लाइटें नहीं जलाई जा सकती। लेकिन यहां की दिवाली का अपना ही अलग आनंद है।
यहां थाली बजाकर करते हैं लक्ष्मी का स्वागत
उदयपुर. लक्ष्मी के स्वागत को लेकर सभी अपने-अपने तरीके से तैयारियां करते हैं। लेकिन कुछ परंपराएं ऐसी हैं जो अन्य लोगों को अचंभित करती हैं। इनमें से शहर के एक समाज के लोग ऐसी ही एक परंपरा का निर्वहन करते हैं। इसमें थाली बजाकर लक्ष्मी का आह्वान करते हैं।
शहर के भट्टमेवाड़ा समाज की महिलाएं खेंखरे के दिन अल सुबह उठती हैं। घर की साफ-सफाई के साथ ही ये महिलाएं कचरा और दीपक लेकर घर के बाहर निकलती हंै। निश्चित जगह पर कचरा डालने के साथ ही वहां दीपक जलाया जाता है। इसके बाद महिलाएं थाली बजाते हुए लक्ष्मी आई, लक्ष्मी आई कहते हुए घर आती हैं। थाली बजाने और लक्ष्मी आई का उच्चारण घर में और प्रत्येक कमरे में किया जाता है। इसके बाद स्नान कर महालक्ष्मी के दर्शन के लिए निकलती हैं। इधर अन्य समाज के लोग विशेषकर महिलाएं खेंखरे को अलसुबह उठती हैं। बिना झाडू-पोंछा लगाए घर की दहलीज, जलस्रोत सहित अन्य जगहों पर दीये करती हैं। इसके बाद महालक्ष्मी के मंदिर में दर्शन करने जाती हंै।
Published on:
19 Oct 2017 06:59 pm
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