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Dussehra 2017 : उदयपुर में साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल है रावण दहन, 20 सालों से मुस्लिम परिवार तैयार कर रहे दशानन

रावण ने तय किया मामूली खर्च से 7 लाख रुपए तक का सफर

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उदयपुर . शहर में बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में शनिवार को फिर रावण दहन होगा। वर्ष 1948 में सिंधी समाज के लोगों ने रावण दहन का सिलसिला शुरू किया, जो 69 वर्षों से अनवरत जारी है। इस सफर में रावण परिवार के पुतले बनाने और इन्हें जलाने को लेकर कई उतार-चढ़ाव आए। रावण परिवार को बनाने का सफर जहां मामूली खर्च से शुरू हुआ था जो आज 7 से 8 लाख रुपए तक पहुंच गया है। विशेष बात यह है कि गत दो दशक से इन पुतलों का निर्माण साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल पेश करते हुए मुस्लिम समाज के कारीगर कर रहे हैं।

सनातन धर्म सेवा समिति के सुरेश कटारिया ने बताया कि वर्ष 1948 में बिलोचिस्तान पंचायत की सनातन धर्म सेवा समिति ने पहली बार रावण का पुतला बनाया था। उस समय रावण परिवार के पुतले तैयार करने में मामूली खर्च आता था। करीब 15 से 20 वर्ष तक समाज के लोग अपने स्तर पर पुतलों का निर्माण करते रहे। तब रावण दहन का आयोजन श्रमजीवी के पास सालेटिया ग्राउंड में किया जाता था।
धीरे-धीरे पुतलों का आकार बढ़ा और इनका दहन भी गांधी ग्राउंड में होने लगा। आज पुतलों के निर्माण पर 8 से 10 लाख रुपए का खर्च आता है, जो समाज के लोग वहन करते हैं।

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दो माह में बनते थे पुतले
समिति के सचिव विजय आहूजा ने बताया कि समाज के 10 से 15 लोग करीब दो माह में पुतले तैयार कर पाते थे। धीरे-धीरे इनका आकार बढ़ा और यह कार्य अन्य कारीगरों को सौंपा जाने लगा।रावण परिवार के पुतलों को तैयार करने के लिए पहली बार श्यामलाल गिरी को नियुक्त किया गया। इनके निर्देशन में तीनों पुतले तैयार किए गए। इसके बाद कई कारीगर बदले और रावण का स्वरूप और आकार भी बदलता गया।


20 वर्ष से मुस्लिम कारीगर
रावण परिवार के पुतले तैयार करने का कार्य 20 वर्ष से मुस्लिम समाज के लोग कर रहे हैं। इस वर्ष लगातार कार्य कर रहे कारीगर ने किसी कारणवश पुतला निर्माण नहीं करने से इनकार कर दिया। ऐसे में समाज के लोगों ने आगरा से कबीर मोहम्मद और उनके कारीगर बुलवाए।


पतले हुए पुतले
इस बार कारीगर बदलने के साथ ही पुतले के स्वरूप में भी परिवर्तन आ गया है। इस बार रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले प्रतिवर्ष की अपेक्षा पतले हैं। इसका कारण यह रहा कि कारीगरों को इन पुतलों के निर्माण के लिए समय कम मिला। पुतले पतले तो हैं लेकिन इनकी ऊंचाई गत वर्ष की अपेक्षा ज्यादा है।