
मेनार. वल्लभनगर तहसील में मोरजाई के रमेशचन्द्र डांगी को संघर्ष के नतीजे में फूलों की क्यारियां मिली हैं। जिस जमीन पर घास भी नहीं उगती थी, वहां अब गेंदे के फूल और सब्जियों की फसल हो रही है। रमेश ने बताया, उनके पास पहाड़ी पथरीली जमीन थी। विचार आते ही इसे काटकर समतल करवाया और पीली मिट्टी का भराव करवाया। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत अनुदान से शेड नेट हाउस तैयार करवाने के साथ काम शुरू किया। फलदार पौधे और नकदी फसलों की बुवाई की। शुरुआत में नए के प्रयोग से कमाई का आंकड़ा छोटा था, लेकिन अब सालभर में लाखों मिल रहे हैं।
रमेश ने वर्ष 2013 में यह सब शुरू किया। जमीन तैयार कर चार हजार स्क्वायर मीटर पर शेड नेट हाउस तैयार किया, लेकिन यहां तक बिजली नहीं थी। सरकारी अनुदान से तीन एचपी का सोलर पम्प लगवाया। पानी की कमी महसूस हुई तो ड्रिप सिस्टम लगवाया। पहली फसल में टमाटर बोए। अगले ही साल चैरी टमाटर लगाए जो जयपुर के मॉल में खूब बिके। फिर खीरा ककड़ी भी जोड़ी और पिछले साल शिमला मिर्च पर हाथ आजमाया। रमेश बताते हैं, दो बीघा पर फैले शेड नेट हाउस में प्रतिवर्ष 2 से तीन फसलों की बुवाई करते हैं। बागवानी और फसलों से सालाना छह से सात लाख तक की कमाई हो रही है। उनके प्रयोगों में नींबू, अमरूद सहित कई किस्में शामिल हैं और अब हर्टीकल्चर में भविष्य तलाश रहे हैं। गेंदा के फूल की खेती में उन्हें मुनाफा हुआ, जिसकी डिमांड त्योहारों में रहती है।
गेंदा फूल ने बदली किस्म
गेंदा की फसल ढाई से तीन माह में तैयार हो जाती है। दो से तीन सिंचाई की जरूरत रहती है। प्रति बीघा ढाई से तीन क्विंटल उपज मिलने के साथ बाजार में यह 70 से 80 रुपये प्रतिकिलो तक बिक जाता है। इलाके के श्रमिकों को भी रोजगार मिल जाता है। वह दूसरे किसानों को भी इस राह पर ला रहे हैं, जो पारंपरिक खेती से जुड़े हैं। इसके लिए जब-तब विशेषज्ञों को भी बुलाकर किसानों से उनकी बातचीत करवाते हैं।
Published on:
23 Dec 2017 01:14 pm
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