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एक ऐसी होली जिसे देखकर आप भी रह जाएंगे दंग, यहां रातभर गरजती है बंदूकें

दुनिया भर में होली के अनेक रंग है कहीं फूलों से तो कही रंगों तो कही लठमार होली खेली जाती है लेकिन...

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चंदनसिंह देवड़ा/उदयपुर। दुनिया भर में होली के अनेक रंग है कहीं फूलों से तो कही रंगों तो कही लठमार होली खेली जाती है लेकिन उदयपूर जिले के मेनार गांव मे होली के तीसरे दिन बारूद से होली खेली जाती है। रातभर बंदूकें गरजती है। यूं तो मेनार ब्राह्मणों का गांव है लेकिन मेवाड़ में मेनार के मेनारिया ब्राह्मणों को ब्रह्मा क्षत्रिय कहा जाता है। इस बार होली के तीसरे दिन 3 मार्च को मेनार में बारूद की होली होगी।

400 साल पुरानी इस परंपरा का आज भी निर्वहन किया जा रहा है। मेवाड रियासत काल में मेनारिया ब्राह्मणों ने जमरा बीज के दिन ही मुगलों की चौकी पर हमला कर उसे तहस-नहस कर दिया था। मुगलों पर विजय के उपहार में तत्कालिन महाराणा ने मेनार को 17वें उमराव की उपाधि प्रदान की थी।

यही नही, मेनारवासियों से 52 हजार बीघा जमीन पर लगान तक नही वसूला गया। मेवाड़ के महाराणा अमरसिंह प्रथम ने मुगलों पर विजय की खुशी में मेनार के ग्रामीणों को शौर्य के उपहार स्वरूप शाही लाल जाजम, नागौर के प्रसिद्ध रणबांकुरा ढोल, सिर पर किलंगी धारण करने का अधिकार प्रदान किया। आज तक ये परंपरा कायम है।

जमराबीज पर मेवाड़ी परिधान में इस गांव के बच्चे युवा और बुजुर्ग हाथों मे तलवार बंदूके लिए सिर पर मेवाड़ी पगडी बांधे सफेद धोती कुर्ते में निकलते है। शाम ढलते ही बंदूकों के मुंह खुल जाते है जो देर रात तक खामोश नही होते। जोश और जुनुन के आगे लाखों रूपए के पटाखे फूंके जाते है। तलवारे लहराकर शौर्य का प्रदर्शन किया जाता है।

गांव के प्रमुख चौक मे ढोल बजता है और अलग-अलग मार्गो से मेनारिया ब्राह्मण टोली के रूप मे हवाई फायर करते हुए आगे बढते है। इसे देखने के लिए हजारों लोग जुटते है। पूरा गांव रोशनी से सजाया जाता है।

मशाले बढती है। वैसे यह लोग आगे बढते है और आखिर मे एक जगह आकर मिलते है और जमकर बारूद फूंका जाता है। तलावारों के गैर भी यहां पर खेली जाती है जिसे देखकर हर कोई दंग रह जाता है। मेनार का इतिहास गौरवशाली है जिसको लेकर यहां का बच्चा बच्चा अभिभूत है।

जमराबीज के दिन दोपहर 1 बजे मेवाड़ दरबार से दी हुई शाहीलाल जाजम ओंकारेश्वर चबूतरे पर बिछाई जाती है जहां मेनारिया ब्राह्मण समाज के 52 गांवों के मोतबीर पंच पारंपरिक वेशभूषा में बैठते है और फिर यहां अमल कसूंबे की रस्म अदा होती हैं। इसके बाद रात में मुख्य चौराहे से पांचों मशालें रवाना होती है।

रात करीब 9.45 बजे निर्धारित स्थानों पर अलग-अलग मोहल्ले के लोग इकट्ठा होते हैं। इसके बाद रात करीब 10 बजे से पांचो रास्तों से गांव के बीच पहाड़ी पर ओंकारेश्वर चौराहे की तरफ बंदूकें दागते हुए मशाल के साथ आगे बढ़ते है। धीरे-धीरे पांचों दल चबूतरे से दूर खड़े रहकर आतिशबाजी करते है।

बंदूक और तोप से गोले दागते है। इसके बाद फेरावतों के इशारे पर एक साथ एक समय पर बंदूकों को दागते हुए तलवारों को लहराते हुए एक साथ कूच करते है तब पांचों रास्तों से ये गांव बंदूकों की आवाज से गूंज उठता है। तब का दृश्य एक युद्ध की भांति होता है। इस शौर्य पर्व को देखने के लिए इस बार भी दूर दराज से लोग मेनार पहुंचेगे।