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उदयपुर में जगन्नाथ रथयात्रा में देखने को मिलता है सांप्रदायिक सौहाद्र्र, जाति-धर्म से परे कर रहे नि:स्वार्थ सेवा

भगवान जगन्नाथ रथयात्रा में देखने को मिलती है मिसाल, कोई किसी भी धर्म का हो कर रहा सेवा

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Madhulika Singh

Jun 22, 2017

शहर के जगप्रसिद्ध जगदीश मंदिर में वर्षों से पारम्परिक रथयात्रा निकल रही है। बताते हैं कि मंदिर से जो पारम्परिक रथ निकलता था, उसे तब तत्कालीन महाराजा रथ को खिंचते थे। मंदिर में चारों देवरियों पर रथ कुछ देर रुकता था। इस दौरान मंदिर में भजन कीर्तन होता था। रथ के आगे उस समय नर्तकियां नृत्य करती थी। मंदिर में रथयात्रा के दौरान बढ़ती भक्तों की श्रद्धा के कारण वर्ष 1996 में पहली बार भगवान जगन्नाथराय का रथ नगर भ्रमण पर निकला। उस समय रथ को ऊंटगाडी में रखा गया व लकड़ी के हाथी को हाथ गाड़ी में रखा गया। यह रथ चार साल तक नगर भ्रमण पर निकला। 1999 में रजत रथ बनाकर रथयात्रा निकाली गई।

22 वर्षों से सेवा

धर्मोत्सव समिति के दिनेश मकवाना ने बताया कि 1996 में जब पहली बार भगवान जगन्नाथ का रथ मंदिर से बाहर नगर भ्रमण पर निकला, तब पारम्परिक रथ के साथ धर्मोत्सव समिति की दो झांकियां थी। बाद में विभिन्न समाजों व संगठनों को जोड़ा गया।

गिरफ्तार भी हुए

रथ समिति के घनश्याम चावला बताते हैं कि जब पहली बार पारम्परिक रथ नगर भ्रमण पर निकाला गया, तब रथ यात्रा में लोगों की संख्या कम थी और इसका मार्ग भी छोटा था। तब प्रशासन ने हमें गिरफ्तार भी किया क्योंकि बिना अनुमति रथ यात्रा निकाली थी। समिति के रमेश लालवानी भी वर्षों से रथ यात्रा से जुडे़ हुए है व सिंधी समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं।

साम्प्रदायिक सद्भाव

इकबाल खान बताते हैं कि उनका जन्म जगदीश चौक क्षेत्र में ही हुआ है और छोटे से बड़ा जगदीश चौक में ही हुआ। शुरू से रथ यात्रा से जुड़ा हूं, जो साम्प्रदायिक सदभावना की एक अलग ही मिसाल है। रथ यात्रा से वह धर्मोत्सव समिति के कार्यकर्ता के रूप में जुड़े हुए हैं। रथयात्रा की व्यवस्था की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि जब मोबाइल नए-नए आए थे, तब उन्होंने लोगों से मोबाइल मांगकर रथयात्रा के कार्यकर्ता को दिए ताकि रथयात्रा के दौरान किसी भी प्रकार की जरूरत पर आपस में बात कर सकें।

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बरसों से जुड़ाव

कैलाश सोनी बताते हैं कि मंदिर से पारम्परिक रथ के नगरभ्रमण से इस आयोजन में सेवा दे रहा हूं। पहली बार जब रथयात्रा निकली तो मार्ग में स्वागत करने वाले कम लोग थे। अब जगह-जगह स्वागत होता है। लोग पेयजल सहित अल्पाहार से आवभगत के लिए स्टॉल्स लगाते हैं।

सभी का आयोजन

लाला वैष्णव बताते हैं कि रथयात्रा के आयोजन से वर्षों से जुड़ा हूं। रथयात्रा आज किसी एक संगठन की नहीं, बल्कि पूरे हिन्दू समाज का आयोजन बन गया है। आज कई समाजों व संगठनों के जुडऩे से रथयात्रा करीब तीन किलोमीटर लम्बी हो गई है।

राजेश पंचोली भी धर्मोत्सव समिति के कार्यकर्ता के रूप में रथ यात्रा में कई बरसों से सेवा कर रहे हैं।

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