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ज‍िसने जीवनभर शहर को मुहैया करवाए कफन व अन्येष्टि का सामान, उसी के शव को नसीब नहीं हुआ कफन, कांधा भी नहीं दे पाए बेटे

स्वाइन फ्लू के खौफ का संवेदनहीन पहलू एमबी अस्‍पताल में आया सामने

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चंदनसिंह देवड़ा/उदयपुर . स्वाइन फ्लू को लेकर जहां शहरवासी खौफजदा है, वहीं चिकित्सा विभाग बेफ्रिक बना हुआ है। स्वाइन फ्लू के उपचार में लापरवाही के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन विभाग गम्भीर नहीं हुआ है। संवेदनहीनता का एक उदाहरण हाल ही सामने आए, जब जीवन भर लोगों को उनके घर पर कफन सहित अन्येष्टि का सामान पहुंचाने वाले राजूभाई को ही अपने अन्तिम समय में ढंग से उपचार तो दूर, कफन एवं पुत्रों का कांधा नसीब नहीं हो पाया। यह घटनाक्रम उनके बेटे की जुबानी इस प्रकार है:

मेरे पापा को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी तो मैं उनको घर के नजदीक निजी हॉस्पिटल लेकर पहुंचा। चिकित्सक ने बताया इनको शायद निमोनिया है, स्वाइन फ्लू भी हो सकता है। हम दो दिन इलाज करेंगे। निमोनिया के बाद हम स्वाइन फ्लू का उपचार करेंगे लेकिन उसमें तीन दिन लगेंगे रिपोर्ट आने में। मैंने सोचा...दो और तीन दिन यानी की पांच दिन का समय ज्यादा होते है, जल्दी से ठीक करने के लिए क्या करें, ...अन्य निजी चिकित्सा लेकर जाऊं जहां कुछ लोग मेरे परिचित हैं। मैं पापा को लेकर वहां पहुंचा तो बताया कि स्वाइन फ्लू की पहली जांच बड़े अस्पताल (एमबी हॉस्पीटल) में होगी। रिपोर्ट भी एक दिन में मिल जाएगी तो हम आपको यही सलाह देंगे।

हम घबराए हुए थे। बड़े अस्पताल पहुंचे तो वहां उन्हें सीधे स्वाइन फ्लू वार्ड में भर्ती कर दिया गया। यह नहीं बताया कि उन्हें क्या हुआ है। कोई जांच नहीं हो रही थी, बस हमें इधर से उधर दौड़ाने का काम हो रहा था। नर्सिंग स्टाफ और डॉक्टर के टेबल आमने-सामने थे, लेकिन मरीज के इलाज को लेकर आपस में बात नहीं कर रहे थे। इधर, पापा की हालत बिगड़ती जा रही थी। उनका शरीर पसीना-पसीना हो रहा था। वे तड़प रहे थे। मैं कुछ भी नहीं कर पा रहा था लेकिन वहां मौजूद स्टाफ स्वाइन फ्लू ...स्वाइन फ्लू कह रहे थे तो मुझे लगा हो सकता है स्वाइन फ्लू में ऐसा होता होगा। अभी तक स्वाइन फ्लू की पुष्टि नहीं हुई फिर भी उनके (पिता) साथ ऐसा बर्ताव होता देख.. मन बेचैन था। उनको यह पता है कि हम जूते पहनकर अंदर नहीं आना है लेकिन मास्क, गाउन हमारे पास नहीं है तो कोई बात नहीं।

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इलाज में लापरवाही देखकर अहमदाबाद ले जाने के लिए पूछा तो बोले ‘आप देख लो।’ मैंने जानना चाहा कि इनको वहां ले जाने के लिए क्या साधन सुविधा चाहिए जवाब मिला... आपकी रिस्क है। इस बीच, पापा ने उठने का प्रयास किया तो उनकी गर्दन एक ओर लटक गई। बाद में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। जब एम्बुलेंस के लिए कॉल किया तो एक भी एम्बुलेंस वाला इसलिए नहीं आया क्योंकि पापा स्वाइन फ्लू वार्ड में थे। इधर, मैंने हिम्मत कर स्टाफसे ट्रिटमेंट की हिस्ट्री मांगी तो टालमटोल करते रहे। बाद में कहा.. एप्लीकेशन देना तब मिलेगी। पापा की बॉडी को प्लास्टिक बैग में लपेट कर एम्बुलेंस में रखा दी। रिश्तेदार एवं परिजन को स्वाइन फ्लू के चलते दूर कर दिया गया। रातभर बॉडी एम्बुलेंस में रखी। सुबह काफी अनुनय-विनय के बाद बॉडी को 10 मिनट के लिए घर ले गए मगर बैग नहीं खोलने दिया। चिकित्सा स्टाफ व पुलिस की मौजूदगी में अन्तिम संस्कार करवा दिया गया। मेरी मां को मेरे पापा का अंतिम बार मुंह भी ठीक से देखने नहीं दिया गया। हम तीन बेटों को बाप को आखिरी कंधा देना भी नसीब नहीं होने दिया। हद तो तब हो गई, जब पापा की स्वाइन फ्लू रिपोर्ट नेगेटिव आई। उनको कार्डिएक अटैक आया था। यह दंश जिदंगी भर मेरे और परिवार के कलेजे से नहीं निकलेगा कि स्वाइन फ्लू का हव्वा खड़ा कर देने से हम उनको ढंग से विदा भी नहीं कर पाए।