मु यमंत्री अशोक गहलोत के पूर्व कार्यकाल में नि:शुल्क दवा जांच योजना की शुरुआत की गई थी, जैसे ही कांग्रेस सरकार सत्ता में आई तो पूरे प्रदेश के स ाी चिकित्साधिकारियों को स्पष्ट कर दिया गया है कि इस योजनाओं को मजबूत करना है। किसी ाी मरीज को बाहर की दवा नहीं लि ाी न जाए। बावजूद इसके चिकित्सक अपने कमीशन के लिए सब कुछ ताक पर र ा बाहरी दवाएं व जांचे लि ाने से बाज नहीं आ रहे।
टीबी व अस्थमा की दवाई लि ाी बाहरी टीबी व अस्थमा की दवाई बाहर की लि ाी गई है। जबकि टीबी क प्यूनिकेबल डिजिज में शुमार है। इस कारण में बाहरी दवाई लि ाी ही नहीं जा सकती। लेकिन उदयपुर के बड़ी स्थित टीबी हॉस्पिटल में इन दिनों टीबी की दवा ाी बाहर की लि ाी जा रही है, जबकि स ाी दवाइयां चिकित्सालय में उपलब्ध है। पत्रिका के पास जून से लेकर फरवरी तक की कई पर्चियों में बाहर की दवाइयां लि ाी गई हैं। इसे लेकर जिस चिकित्सक से बात की उनकी दलील है कि कुछ दिन पहले ये दवाइयां उपलब्ध नहीं थी, इसलिए लि ाी थी।
यहां तो शर्म ही नहीं ोमराज कटारा राजकीय सेटेलाइट चिकित्सालय के एक सर्जरी विशेषज्ञ ने न केवल बाहर की दवाइयां लि ाी बल्कि एक निजी डायग्नोस्टिक सेन्टर से जांचे ाी लि ाी। जबकि सरकारी चिकित्सालयों में दवाइयां व जांचे उपलब्ध हैं। हालात ये है कि सरकारी आदेशों का किसी को डर नहीं तो अधिकारियों को ाी किसी की परवाह नहीं। ये केवल बानगी ार है, इस तरह से बाहरी मेडिकल स्टोर्स व डायग्नोस्टिक सेन्टर से कमीशन लेने के लिए कई चिकित्सक काम कर रहे हैं।
(समाचार से जुडे़ दस्तावेज पत्रिका के पास उपलब्ध हैं। यदि कोई ाी मरीज या परिजन इसे लेकर ाविष्य में कोई शिकायत दर्ज करवाना चाहता है तो चिकित्सक द्वारा लि ाी गई पर्चियां पत्रिका कार्यालय में पहुंचाएं।)
सरकार के स त निर्देश है कि सरकारी स्तर पर कार्यरत कोई ाी चिकित्सक बाहरी दवाएं नहीं लि ोगा, शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्र का ाी यदि कोई चिकित्सक है तो उसे नि:शुल्क दवाइयां व जांचे सरकारी चिकित्सालय की ही लि ानी हैं। यदि वहां उपलब्ध नहीं है तो उससे बडे़ समीपस्थ सरकारी सेन्टर के लिए मरीज को ोजा जा सकता है।