
Ram Mandir जब हम रात-रातभर दीवारों पर राम नाम के उद्घोष लिखते थे। तब मन में भाव आए कि हमें राम के लिए अयोध्या जाना है। मैं 9वीं कक्षा में पढ़ता था और कोचिंग सेंटर में पढऩे जाता था। राम के काज का संदेश 29 नवंबर 1992 को मिला। शाम 5 बजे की ट्रेन थी और मैं घर पर बताए बिना 3 बजे निकला और मदद मांगकर रेलवे स्टेशन पहुंचा। आयु 14 वर्ष ही थी, इसलिए कार सेवा में जाने की अनुमति नहीं थी। संघ की ओर से विशेष अनुमति के साथ जा पाया। उस समय मेरे पास ना कपड़े थे और ना रुपए। इसकी व्यवस्था संगठन ने की।
यह कहना है कार सेवा में जाने वाले उदयपुर के डॉ. भारत भूषण ओझा का। 45 वर्षीय ओझा अभी सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय में गेस्ट लेक्चरर हैं। उन्होंने बताया कि वे जब अयोध्या पहुंचे तब नगरी मानो राम की नगरी थी। अयोध्यावासियों ने कारसेवकों के लिए घर के द्वार खोल दिए थे। हमारा दल अयोध्या के एक घर पहुंचा। वहां परिवार घर के एक कमरे में सिमट गया और बाकी कमरे कार सेवकों को सौंप दिए। अयोध्या के स्कूल, कॉलेज, धर्मशालाएं और घर सब कार सेवकों के लिए थे। हम अयोध्यावासियों के प्रति कृतज्ञ हैं, जिन्होंने अपने घर हमारे लिए खोल दिए।
सरयू से मिट्टी लानी थी
हमें सूचना केवल यह थी कि सरयू नदी से मिट्टी लाने का काम करना है। हम इस काम में जुटे थे, लेकिन 6 दिसंबर की सुबह साधु-संतों ने मंच संभाल लिया। विवादित ढांचे को हटाकर रामलला को अपने घर में पहुंचाने का काम किया। विवादित ढांचे को गिराने का काम कार सेवकों ने अपने हाथों से किया।
Published on:
12 Jan 2024 10:00 am
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