
उदयपुर . पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के तत्वावधान में आयोजित दस दिवसीय शिल्पग्राम उत्सव का शनिवार को रंगारंग समापन हुआ। लोकरंग उत्सव की अंतिम शाम दिलों के तारों को झंकृत करने वाले दो दर्जन से ज्यादा वाद्य यंत्रों से सजी। भावातिरेक प्रस्तुति के साथ सैकड़ों लोक कलाकार अगले साल तक के लिए विदा हो गए।
मुक्ताकाशी मंच पर पारम्परिक लोक-संस्कृति के विविध रंगों से सजे कार्यक्रम का आगाज़ महाराष्ट्र के मंगल वाद्य ‘सुंदरी’ वादन से हुआ। इसके बाद दादरा नगर हवेली के कलाकारों ने ‘बोहाड़ा’ नृत्य की प्रस्तुति से आदिम संस्कृति को दर्शाया। ठाणे जिले से आए कोंकणा कलाकारों की यह रोचक प्रस्तुति दर्शकों को खूब रास आई। इनके अलावा मणिपुरी कलाकारों की स्टिक परफोरमेन्स, आेडीशा का संबलपुरी नृत्य, गुजरात के सिद्दी धमाल, उत्तराखण्ड का छापेली, महाराष्ट्र की लावणी, पंजाब के भांगड़ा और अलवर के भपंग वादन ने खचाखच भरे कलांगन में उपस्थित दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया।
लोकवाद्यों के सुरों की मधुर ‘झंकार’
केन्द्र की ओर से विशेष रूप से परिकल्पित तथा दो दर्जन से ज्यादा लोक वाद्यों से सजी ‘झंकार’ के रूप में अंतिम प्रस्तुति में लयताल और कलाकारों के जोश ने कलांगन में सुरों की रस वर्षा का अपूर्व संसार रच दिया। पारम्परिक वाद्यों में बांसुरी, सुंदरी, कमायचा, सिन्धी सारंगी, ढोलक, डिमड़ी, तुनतुना, सम्बळ, त्वतरी, मुरली, अलगोजा, मटकी, मोरचंग, खड़ताल, निशान, ढोल, पुंग चोलम, रणसिंगा, असमी ढोल, पंबई, टपटी, सुरपेटी, मुगरवान, शहनाई, भपंग जैसे कई वाद्य सम्मिलित थे। इन तमाम वाद्यों की लयकारी पर नृत्य करती लावणी, चकरी, संबलपुरी, हिमाचली, बिहू की नर्तकियों ने अविस्मरणीय नजारा प्रस्तुत कर शाम को यादगार बना दिया। इसका संयोजन केन्द्र निदेशक फुरकान खान तथा कार्यक्रम अधिकारी तनेराज सिंह सोढ़ा द्वारा किया गया।
इससे पूर्व उत्सव के अंतिम दिन शहरवासियों सहित शिल्पग्राम पहुंचे हजारों देशी-विदेशी सैलानियों ने मित्रों-परिजनों संग हाट बाजार में जमकर शिल्प उत्पादों की खरीदारी की। कई मेलार्थी मेला परिसर में कार्यक्रम के दौरान देश के कोने-कोने से आए लोक कलाकारों संग फोटो-वीडियो शूट कर यादें संजोते नजर आए।
Published on:
31 Dec 2017 01:13 am
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