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उदयपुर की आदिवासी बालाओं को मजदूरी के बहाने ले जाया जा रहा गुजरात लेक‍िन हकीकत में उनके साथ हो रहा ये गंदा काम..

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उदयपुर की आदिवासी बालाओं को मजदूरी के बहाने ले जाया जा रहा गुजरात लेक‍िन हकीकत में उनके साथ हो रहा ये गंदा काम..

मो. इल‍ियास/उदयपुर. दुष्कर्म या यौन उत्पीडऩ के मामलों में आदिवासी बहुल इलाके की बेटियां अब हिम्मत कर थानों व न्यायालय की चौखट तो चढ़ रही हैंं लेकिन सुनवाई के दौरान अधिकतर मामलों में उनके मुकरने से आरोपी सलाखों के पीछे नहीं पहुंच पा रहे हैं। वर्तमान में जिले में दुष्कर्म एवं पॉक्सो एक्ट के तहत मामलों में सजा का प्रतिशत करीब 30 प्रतिशत ही है। जिले के पॉक्सो एक्ट मामलों पर नजर डालें तो सर्वाधिक मामले जिले के झाड़ोल, कोटड़ा व ऋषभदेव वृत्त से सामने आए हैं। कुछ मामलों में गुजरात में मेहनत-मजदूरी के दौरान देहशोषण हुआ तो कुछ में साथी श्रमिकों या दलालों ने उन्हें शिकार बनाया। उदयपुर में अभी पॉक्सो एक्ट के 244 मामले विचाराधीन हैं। कई मामलों में सामाजिक तौर पर दबाव के चलते समझौते की बात सामने आई है।


गरीब मजदूरी करें या पेशियों पर आए?
पेट की खातिर मजदूरी के लिए पलायन करने वाली इन आदिवासी बालाओं के साथ सीमा पार गुजरात के अलावा उदयपुर जिले में भी देह शोषण व दुष्कर्म की घटनाएं हो रही हैं। उन्हें मजदूरी के बहाने गुजरात ले जाने वाले दलाल ही उनका सौदा कर मोटी रकम कूट रहे हैं। गत कुछ वर्षों में ऐसे कई मामले सामने आए, लेकिन बिचौलियों ने इन्हें दबा दिया। इनमें से कुछ पीडि़ताओं ने साहस दिखाते हुए आरोपियों के खिलाफ गुजरात व जिले में मामले दर्ज करवाए। गुजरात में दर्ज मामलों में वे गरीबी के चलते बार-बार पेशियों पर नहीं जा पाई तो उदयपुर जिले में दर्ज मामलों में अधिकतर में साक्ष्य पक्षद्रोही या वे खुद बयान से मुकर गई।


गुजरात के मामलों में नहीं मिल पाता है न्याय
गुजरात में बीटी कॉटन की खेती एवं जीनिंग के लिए दक्षिण राजस्थान के डूंगरपुर, उदयपुर व बांसवाड़ा जिले से प्रतिवर्ष पन्द्रह से बीस वर्ष की कई किशोरियां वहां जाती हैं। वहां के अधिकतर मामले पुलिस दर्ज ही नहीं करती। जो मुकदमे दर्ज होते हैं, उनमें बयान एवं अन्य कानूनी कार्य के लिए बार-बार थाने बुलाने के कारण वे जा नहीं पाती हैं।

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मुकदमा दर्ज होने या कड़ी सजा का प्रावधान कर लेने से ही इस समस्या का निवारण नहीं हो सकता है। सामाजिक पंचायत में अधिकतर मामलों में दबाव में समझौते करवा देते हैं, जिससे वे साक्ष्य में नहीं आ पाती है। समाज के लोग अपराध को अपराध की तरह से देखें, अपराधी को दंडित करने का प्रयास करे तभी समाधान होगा।
अरुण व्यास, वरिष्ठ अधिवक्ता

15 से 20 प्रकरण प्रति माह होते हैं दर्ज
244 प्रकरण विचाराधीन
8-10 प्रकरणों का प्रतिमाह निस्तारण
30 प्रतिशत मामलों में ही आरोपी को सजा